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चल उड जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना

चल उड जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना
खतम हुवे उस डाली के जिस पर तेरा बसेरा था
आज यहां और कल हो वहां ये जोगी वाला फेरा था
सदा रहा है इस दुनिया मे किसका आबो दाना
चल उड जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना

भारत वालो मै आ रहा हुँ, अमरीका वालो मै जा रहा हूँ। यहाँ क्लीवलैंड मे मेरा काम खत्म हो गया है, और हमने अपना बोरीया बिस्तर बांध लिया है। बस कुछ दिनो का और इंतजार 15 अक्तुबर को हम चल दिये वापिस।

वैसे मै अमरीका अक्सर आते जाते रहता हुं लेकिन ज्यादा समय के लिये नही, 6 सप्ताह से लेकर 8 सप्ताह तक। इस बार कुछ ज्यादा ही खिंच गया पूरे 8 महीने हो गये। जैसे ही हाथ का काम निपटाता , दुसरा काम हाजिर हो जाता। लग जाओ फिर से। इस बार भी फिर से नया काम आ गया था, लेकिन मै अड़ गया, बहुत हो गया अब हर हाल मे वापिस जाना है। रही काम की बात भारत जा कर अपनी जगह किसी को भेज दुंगा। वैसे भी मेरा विसा नवम्बर मे खत्म हो रहा था।

वैसे भी मालुम है कि कम्पनी भारत पहुचने के बाद चैन से नही रहने देगी, कहीं ना कहीं भेज देगी। वो तो भला हो अमरीकी दुतावास का अगले 3 महीनो तक विसा साक्षात्कार के लिये समय उपलब्द्ध नही है, अमरीका वापिस आने का कम से कम मार्च तक कोई मौका ही नही है। ऐसे भी सर्दियो मे कौन आना चाह्ता है यहां ? और यदि युरोप जाने का अवसर आया तो क्या कहने ! काफी कुछ है घुमने के लिये, वेनिस, रोम ,प्राग , पेरीस…

इस बार भारत मे ज्यादा टिक गया तो इतना निश्चित है कि भविष्य मे इतनी स्वतत्रंता से आवारागर्दी नही कर पाउंगा ! इस बार घरवाले छोडेगे नही। मेरा सुख चैन छीन जायेगा।

कैसी दुविधा है? एक तो घर जाने की जल्दी है और घर से भागने की योजना भी तैयार ।

चलो कोई बात नही पहले भारत तो पहूचों !
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टिप्पणीयाँ

1.अनूप शुक्ला उवाच :
अक्तुबर 11, 2005 at 12:52 pm
आओ स्वागत है तुम्हारा.लगन-साइत बडी जोरदार चल रही है.


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