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कहानी तो पूरी फिल्मी है !

अब मेरी तो समझ मे नही आ रहा है कहां से शुरू करें ! कहानी पूरी फिल्मी है, फ्लैश बैक मे ले जाउं या सीधे शुरूवात से ले जाउं। ऐसे भी इस मामले मे हम थोडे अनाडी है। वैसे ठीक ही है वर्ना अब तक बर्बाद(शादी) हो गये होते !

अब किस्सा कुछ ऐसा है कि चेन्नै मे मै दो और छडो(सुखी/क्वांरो) के साथ रहता हुं। जब इन दोनो महाशयो को मेरी कम्पनी (विप्रो) मे नौकरी मिली थी, तब मै इन दोनो का बास था। तब मै अकेला रह रहा था। इन लोगो की खुशकिस्मती या बदकिस्मती समझे, मैने इन लोगो से पूछा कि क्या वे मेरे साथ रहना पसन्द करेंगे। अब वे तो बास को ना करने से रहे। दोनो मान गये। अब मै बास था तो थोड़ा नाजायज फायदा तो उठा लेता था जैसे खाना मै बनाउंगा, वे तैयारी करेंगे(सब्जी काटना/बर्तन साफ करना वगैरह वगैरह..)। वे बेचारे मेरा बनाया खाना झेल कर भी तारीफ करते थे।

बाद मे पता चला उनमे से एक अन्ना मेरे ही कालेज से है, दुसरा नन्दी है। दोनो बन्दे अपने आप मे मस्त है, थोडे लापरवाह, हर आती जाती कन्या को घुरना उनका जन्मसिद्ध अधिकार। कभी कभी किसी कन्या के कारण अपने बस स्थानक के आगे 4-5 बस स्थानक आगे तक जाकर वापस पैदल आयेंगे। वैसे बन्दे शरीफ है, लेकिन अन्ना का सबसे बडा सपना है कि जिन्दगी मे कम से कम उसकी एक “महिला मित्र” हो जिसके साथ वो कम से कम एक फिल्म देख सके। उससे शादी तक का उसका कोई इरादा नही है क्योंकि उसे मालूम है कि अगर उसने प्रेम विवाह की बात भी की तो उसके मां बाप घर से निकाल देंगे।

नन्दी का फंडा थोडा अलग है, शर्मीला है, बिल्कुल “छोटी सी बात” के अमोल पालेकर के जैसे। वैसे तो बातो का शहंशाह है लेकिन किसी लड़की से बात नही कर सकता।

अन्ना जो मेरा कालेज का कनिष्ठ था, मुझसे कुछ ज्यादा खुल गया था। उसकी नजरो मे मै हर चीज (तकनीकी हो या खेल-कूद या चिड़ीमारी या कुछ भी) मे उसका “बाप” लगता था। और तो और उसने मुझे “पापा” कहना शुरू कर दिया था।

हिन्दी फिल्मो की तरह कहानी मे मोड़ आया, एक कन्या के प्रवेश से। अब कम्पनी की मेरी टीम मे एक ख़ूबसूरत सी कन्या आयी। कन्या सीधी-सादी घरेलु सी थी, मृदुभाषीणी थी। कन्या इन दोनो को भा गयी। एक प्रेम त्रिकोण बन गया जिसमे तीसरा कोण(कन्या) शांत था, मतलब कि उसे कुछ मालूम ही नही था। कभी कन्या ने एक से “हाय” कर दी, उसका सारा दिन अच्छे से गुजरेगा। दूसरा सारा दिन झल्लाता रहेगा। एक बन्दे की मुस्कराहट दूसरे के जख्मो पर नमक का काम करती थी उसपर जिसे “हाय” मीली थी वह शाम को पार्टी दे देगा, जो तेज मिर्च काम करती थी।

मै इन सब चीजो से अंजान था, लेकिन मुझे कुछ शक हो रहा था। एक दिन ऐसे ही जब रूम पर हम लोग बाते कर रहे थे, उस कन्या का जिक्र निकल आया। मैने ऐसे ही कह दिया “अच्छी लड़की है”। मेरा मतलब था, लड़की काम मे अच्छी है। लेकिन अन्ना को लगा कि मै अपना नंबर लगा रहा हुं और मैने अपना नंबर लगाया तो उन दोनो को पत्ता साफ ! वो छूटते ही बोला:


“पापा! आप ये क्या बोल रहे हो, आप अपनी उमर देखो और उसकी उमर देखो। वो आपके बेटी जैसी है।”

और अन्ना ने अपनी जिन्दगी की सबसे भयानक भुल कर दी। मैने कहा

“अबे मै उसको लाईन नही मार रहा, तु बोल रहा है तो ठीक है वो मेरी बेटी है।” 

नन्दी को मौका मिल गया। ऐसे भी बाल की खाल निकालने मे उस्ताद। बोला

“तब तो वह लडकी अन्ना की बहन हो गयी क्योकि बास(मै) तो अन्ना और कन्या दोनो के बाप है”। 

नन्दी उछलने लगा,और रूम मे नाचना शुरू कर दिया। बेचारा अन्ना सर पीट रहा था, कहां मुझे फंसाने चला था खुद ही अपने जाल मे फंस गया।

कुछ ही दिनो बाद मै चल दिया, एक दुसरे प्रोजेक्ट मे मिनियापोलिस, उसके बाद क्लीवलैण्ड पूरे ८ महीने बाहर रहा। जब भारत वापिस आया तो नया नजारा देखने मिला। अन्ना की उस दिन की गलती उसके लिये गले का फांस बन चुकी थी। नन्दी उसे ब्लैकमेल कर रहा था और कहते रहता था,

“अबे अन्ना अपनी बहन को बूरी नजर से मत देख”।

मैने पाया कि नन्दी कुछ ज्यादा ही गम्भीर है, उसने अपनी मां को उस लड़की के बारे मे बता रखा है। लेकिन बन्दा पूरा “छोटी सी बात” वाला अमोल पालेकर है, अपनी मां से बात कर ली, लेकिन उस लड़की से नही। प्रेम प्रस्ताव तो दूर की बात साधारण रोज़ाना के काम वाली प्रोग्रामिंग की तकनीकी बात भी नही की है ! लेकिन महाशय ने उस लड़की के बारे मे हर चीज पता कर रखी है, उसके खाने के समय पर खाना खाने जायेगा, उसके पिछले वाली सीट पर बैठेगा।ऒफीस मे सबसे पहले पहुँचेगा ताकि वह जब आये तो हाय बोल सके। अन्ना उससे यदि बात करने की कोशिश भी करे तो शाम को उसे धमकायेगा। बोलेगा
“अबे , साले बहन पर लाइन मारता है”। 

अन्ना को तो साला बना लिया है लेकिन वाह रे नन्दी महाराज , लड़की सामने आयी  कि बोलती बन्द !

उसका जन्मदिन आया नन्दी सुबह छः बजे आफीस मे , अन्ना को बाथरूम मे बंद करने के बाद ! सुबह सबसे पहले उसको जन्मदिन की बधाई दी, हाथ मिलाया। उसके बाद सारे दिन उसने वो हाथ किसी से नही मिलाया और शाम को अन्ना को एक रेस्तरां मे डीनर पार्टी दे डाली। अन्ना शायद पिछले जन्म मे कालाहांडी मे पैदा हुवा था, खाने के नाम से सब भुल जाता है ! जन्मदिन किसी और का, पार्टी  दे रहा है नंदी और वह भी किसी और को!

मैने नोट किया कि वो लडकी दोनो को पसंद है लेकिन अन्ना अपने सपने तक के लिये ही गम्भीर है। जबकि नन्दी ने अपने घर मे भी बात कर रखी थी, मेरा झुकाव नन्दी के लिये हो गया था। अब उनकी टीम(मेरी भूतपूर्व टीम) से एक कन्या की शादी तय हुयी। उस लड़की ने भी अपनी सहेली की शादी मे जाने का तय किया। शादी चेन्नई से ५ घंटे की दूरी पर कुंभकोणम मे थी। शादी रविवार की थी, लेकिन वह कन्या शुक्रवार को जा रही थी ताकि वह वहां पर शनिवार को आसपास घूम-फिर सके। अपने दोनो हीरो ने शनिवार को जाने कि योजना बनाई।

अब गुरूवार की रात को हम लोग ऐसे ही बाते कर रहे थे, उन लोगो ने मेरे से पूछा आप इस स्थिति मे क्या करते, मैने कहा

”करना क्या है? जब वह शुक्रवार को जा रही है, तब मै भी उसी दिन जाता । उसके साथ मे पूरे दिन घूमने फिरने का पूरा जुगाड तो कर ही लेता। आखिर पहले बातें होगी साथ मे घूमेंगे, तब ही तो मामला आगे बढ़ेगा”

अन्ना थोड़ा निश्चिंत था, उसे अपने पर तो नही लेकिन नन्दी पर पूरा भरोसा था, कि ये कुछ नही कर सकता। अब नन्दी ने पूरी योजना बदल दी और अन्ना को हवा नही लगने दी। शुक्रवार शाम को 9 बजे बस के समय 15 मिनट पहले उसने अन्ना को जोर का झटका धीरे से दिया। कहा

”मै आज ही उसी बस से, उसके साथ ही जा रहा हूं।”

और हीरो ने अपना बैग उठाया और चल दिया। बेचारा अन्ना ऐन वक्त पर कुछ नही कर पाया। पूरी रात भुनभुनाता रहा और नन्दी को गालियां देता रहा। और मै अपने लैपटोप पर “हम -तुम” देखता रहा और अन्ना के मजे लेते रहा अभी तक तो नन्दी है अभिषेक बच्चन और अन्ना सैफ अली खान। यहां तो अभिषेक बच्चन मेहमान भूमिका मे नही, नायक की भूमिका मे नजर आ रहा है।

और हां इस “अमोल पालेकर” को “अशोक कुमार” तो नही लेकिन ‘आशीष कुमार” जरूर मिल गया है। आगे देखते है क्या होता है।
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3 टिप्पणीयां »
1.अनूप शुक्ला उवाच :
अक्तुबर 24, 2005 at 11:56 pm
कहानी तो बढ़िया है लेकिन भइये ये मन शक के घेरे में आ रहा हैकि
कहीं नंदी के बहाने अपनी कहानी तो नहीं कह रहे हो।

2.आशीष श्रीवास्तव उवाच :
अक्तुबर 25, 2005 at 7:11 pm
अनुप भईया,
इस कथा मे जितनी भी घटनायें घटी है, उसमे से अधिकांश घटनाओ के समय हम भारत भुमी पर थे ही नही !
आशीष

3.सारिका सक्सेना उवाच :
अक्तुबर 26, 2005 at 6:55 pm
कहानी के साथ-साथ कहने का अंदाज़ भी अच्छा है। आगे की कहानी का इंतज़ार रहेगा।


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