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वो ४८ घन्टे

अमरीका से वापिस आये हुये २ सप्ताह हो चुके थे, दीपावली पर घर जाने की पूरी तैयारी थी।  भला हो भारतीय रेलवे का जो उन्होने इन्द्रजाल के द्वारा यात्रा टिकट उपलब्ध करवा दिये है| अमरीका से निकलने से पहले ही मै अपने टिकट खरीद चुका था। वापिस चेन्नई आने पर टिकट मेरा ईंतजार कर रहे थे। सोचा था कि अब घर जाकर कुछ आराम किया जाये। मेरे साथ मुसीबत यह है कि यदि मै रेल से घर जाउं तो 18 घन्टे लगते है और वायुयान से 14 घन्टे ! चेन्नई से नागपुर सीधी उड़ान नही है, जिससे मुझे मुम्बई होते हुये जाना होता है। नागपुर से मुझे मार्ग बदल कर मुम्बई हावडा मार्ग पर गोंदिया जाना होता है जो मेरा गृह नगर है। इसलिये मै रेलमार्ग ही पसन्द करता हुं। कम पैसो मे ज्यादा सफर।

लेकिन मुसीबत मेरा पीछा कर रही थी, मुझे क्या मालूम था कि अमरीका के हरीकेन(कैटरीना/रीटा/विल्मा) अब नाम बदल कर मेरे साथ चेन्नई चक्रवात के रूप मे पहुंच गये है। मुझे 28 अक्तूबर शुक्रवार को तमिलनाडु एक्सप्रेस से निकलना था, लेकिन बारिश बुधवार से ही शुरू हो गयी। चेन्नई मे बारिश एक आश्चर्य होता है। लेकिन इस बार बारिश मुसलाधार हो रही थी, बिना रुके लगातार। मैने चेन्नई मे इतनी बारीश कभी देखी और सुनी नही थी जो अब देख ली। मै अड्यार मे रहता हुं, जो ऊंचाई पर स्थित है, बारिश का पानी जमा नही होता। इस बार मेरे कमरे(घर नही) के सामने 4 फुट पानी था।

गुरूवार सुबह दोस्तो ने फोन कर बता दिया कि आज कार्यालय बन्द है, सडको पर पानी जमा हो गया था। कार्यालय जाने के लिये नाव के अलावा और कोई साधन नही था। मै और मेरे साथी परेशान क्या करें ! कमरे मे खाने और पीने के लिये कुछ नही। इससे ज्यादा परेशान इसलिये कि सभी का घर जाने का कार्यक्रम पर पानी फिर रहा था। मै सबसे ज्यादा परेशान,मुझे हर हालत मे घर जाना था। मै पहली बार घर से पूरे ८ महिने के लिये दूर था।

शाम तक बारिश नही रूकी ,पता चला चेन्नई आनेवाली और जानेवाली सारी की सारी रेले रद्द कर दी गयी है। मै और परेशान। हवाईअड्डे पहुंचा, उडान पट्टी पर पानी, उड़ाने रद्द। फिर भी मैने सोचा शुक्रवार ना सही, शनिवार, रविवार या सोमवार का टिकट मिल जाये ताकि मै मंगलवार दीपावली से पहले घर पहुंच जाउंगा। लेकिन जेट/सहारा तो दूर ढक्कन वाले(एअर डेक्कन) भी भाव खा रहे थे। फरमाया कि 5 नवंबर तक किसी भी विमान सेवा मे किसी भी श्रेणी मे स्थान उपलब्ध नही है !

शुक्रवार सुबह, बारीश रूक गयी और धुप निकल आयी। थोडी आशा जगी। सडको पर से पानी छंट गया था। मै अपना सामान बांध चुका था। रेलवे पूछ्ताछ फोन किया पता चला कि दोपहर तक की सारी रेले रद्द है और बाकी रेलो के बारे मे शाम को विचार किया जायेगा। विमान सेवा के बारे मे पता किया, हालात वही थे, कोई जगह खाली नही थी। मेरा एक रूममेट शाम 4:30 की जीटी से जा रहा था उसने पता किया की जीटी और तमिलनाडु दोनो जा रही है लेकिन मार्ग बदल दिया गया है। मैने सोचा ठीक है,कैसे भी पहुंचाओ लेकिन पहुंचाओ तो !

मेरा एक और सहयोगी जो मेरे साथ मेरी ही रेल से जा रहा था, उसने फोन किया कि तमिलनाडु एक्सप्रेस रद्द कर दी गयी है और वो अपने टिकट रद्द करवा चुका है। मेरा दिमाग चकराया। मैने फिर से रेलवे मे पूछताछ की , जवाब आया की स्थिति पूर्ववत है, याने बदले हुये मार्ग से तमिलनाडु एक्सप्रेस जा रही है। बस समझ मे आ गया कि हमेशा की तरह अफवाहो का बाजार गर्म है। समझ मे नही आता, कि हम लोग अफवाहे फैलाने मे सबसे आगे कैसे रहते है ! अब तो विश्वव्यापी अफ़वाह भी(गणेश जी का दूध पीना) फैलाते है !

सोचा रेल के समय पर स्टेशन पहुंच जाओ, जो होगा देखा जायेगा। कमरे से निकल कर वापिस नही आऊंगा। रेल रद्द तो बस से हैद्राबाद और वहा से घर जाउंगा। वो नही हुवा तो कार किराये से लेकर जाउंगा, बस घर जाना है। कैसे भी।


4:30 शाम, मेरा रूममेट रेल्वे स्टेशन पहुंचा, पता चला उसकी रेल जी टी रद्द कर दी गयी है ,लेकिन मेरी तमिलनाडु एक्सप्रेस जा रही है। मन थोडा घबराया, लेकिन आशा अभी जवान थी। राम राम करते 9 बजे रेलवे स्टेशन पहुंचा। 9:30को को रेल प्लेटफार्म पर आ गयी। थोडी आशंका अभी भी थी। लेकिन ठिक 10 बजे रेल चल दी। अब मन शांत हुवा, चलो चल तो दिये , देर से सही पहुंच तो जायेंगे।

हर डिब्बा खचाखच भरा हुवा था, एक एक शायिका पर 5-5 लोग यात्रा कर रहे थे। 2 दिनो का कम से कम 5 रेलो के यात्री एक रेल से जा रहे थे। लेकिन सभी खुश थे, कोई किसी से शिकायत नही कर रहा था। जिसे जहां जगह मिल गयी वहां जम गया था। मेरी कुपे मे 7-8 आइ आइ टी के छात्र जा रहे थे, एक के पास वैध टिकट था, बाकि उस के भरोसे जा रहे थे। ऐसा हर जगह था। मेरी साथ कोई नही था, लेकिन वो लोग हो लिये।

रेल चल तो दी, रेल की पैन्ट्री का दो दिन का खाना एक दिन मे साफ हो गया! दुसरे दिन 2 बजे दोपहर मे नागपूर पहुंचने वाली रेल शाम के 8 बजे सिकंदराबाद पहुंची थी। मै भूख से परेशान था। मै सामन्यतः रेल यात्रा मे कुछ नही खाता। सिकंदराबाद मे कुछ केले खाये। आइ आइ टी के छात्र साथ मे थे जिससे लम्बी और उबाउ यात्रा मनोरंजक हो गयी थी। वो लोग मस्ती कर रहे थे, हर किसी को छेड रहे थे। जिसका सभी आनंद उठा रहे थे। और मुझे अपना कालेज जमाना याद आ रहा था। 16 घन्टो का सफर 32 घन्टो मे तय कर मै नागपूर पहुंचा। थका था लेकिन खुश था कि घर पहुंच गया।
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1 टिप्पणी »
1.अनूप शुक्ला उवाच :
नवम्बर 6, 2005 at 11:41 pm • संपादन करें
बधाई, लौट के घर आये।

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