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आधुनिक अर्जुन की ज्ञान प्राप्ति


आधुनिक अर्जून कुरूक्षेत्र मे निराश बैठे थे। अर्जुन ने अपनी युवावस्था मे अनेको युध्द लडे थे और जीते थे। जिवन के संध्याकाल मे उनका पराक्रम चुक गया था और ये हालत हो गयी थी की महारथी अर्जुन को एक पैदल भी हरा देता था। महाराजा के दरबार मे उनकी पहले जैसी इज्जत नही बची थी, लोग अब उनकी उम्र का लिहाज कर चुप रहते थे।

आधुनिक अर्जुन ने एक सपना देखा था, धर्मराज को उनका खोया राज्य दिलाने का नही, अपने लिये चक्रवर्ती राज्य प्राप्त करने का। इसके लिये उन्होने अथक परिश्रम भी किया था, अपने छोटे से राज्य का बलीदान कर वह हस्तिनापूर नगर मे आये थे। यह बात और है कि जिसे वह अपनी राज्य की बागडोर सौंप कर आये थे, वह उनसे बडा महारथी दिगविजयी साबीत हुआ और उसने उनकी वापसी के रास्ते बंद कर दिये।

अर्जुन के सत्ता प्राप्ति के मार्ग मे अनेक अवरोध थे, उनके पास जब सबसे पहले महाराजा की कुर्सी प्राप्त करने का अवसर आया, तब उन्होने पाया मौनीबाबा नामक महारथी ने उनहे टंगडी मारकर सत्ता प्राप्त कर ली। अर्जुन निराश नही हुये, उन्होने अपने प्रयत्न जारी रखे। उनकी पूरी कोशीश रही की मौनी बाबा का राज मे प्रजा संतुष्ट ना रहे। इतना ही नही उन्होने मौनीबाबा के मंत्रीयो की भी आलोचना जारी रखी, उनकी नितीयो को जनविरोधी बता कर असतोंष की चिंगारी फैलायी । महारथी अर्जुन का मौनीबाबा को एक साधु समझना भारी साबित हुआ, मौनी बाबा ने अपना रूद्र रूप दिखाकर उन्हे अपने राज्य से निर्वासीत कर दिया।

मौनीबाबा की राज्य के अवसान के बाद जब महारथी अर्जुन के सामने महाराजा बनने का अगला अवसर दिखायी दिया, वे एक पैदल सैनीक से मात खा गये। उनका सपना फिर से अधुरा रह गया। महारथी अर्जुन निराश हो चुके थे। एक साधारण सा राज्य का सेवक महाराजा बन चुका था, और महारथी अर्जुन भिष्म पितामह की तरह महाराजा की कुर्सी की सेवा करने से बंधे हुये थे।

अपनी दूरावस्था पर अर्जुन क्रंदन कर रहे थे, तब एक आकाशवाणी हुयी। अर्जुन ने आंखे खोल कर देखा सामने जग के स्वामी पार्थसारथी खडे थे।

पार्थसारथी उवाच ” हे पार्थ, तुम्हारे जैस महारथी योद्धा को ऐसे क्रंदन करना शोभा नही देता। तुम अपने दुखो का वर्णन करो , हम उसका निवारण करेंगे”


अर्जुन उवाच “हे विश्वनाथ आप तो जग के स्वामी है। आपको हमारे कष्टो का ज्ञान है। पिछ्ले युद्ध मे जित मे हमारा योगदान नगण्य था, जिस कारण हमारी हालत दयनिय हो गयी है। हमारी स्थिती गली के कुत्ते से गयी गुज़री हो गयी है, जिस पर तो कोई भी पत्थर मार जाता है। मुझे तो कोई भी उस लायक नही समझता ।”

पार्थसारथी उवाच “हे पार्थ , तुम्हे निराश होने की जरूरत नही है। तुम अपना खोया हुवा वैभव प्राप्त कर सकते हो।”

अर्जुन उवाच “हे स्वामी मुझे इसके लिये क्या करना होगा?”

पार्थसारथी उवाच “तुम्हारी दूरावस्था का कारण है कि वर्तमान महाराज के शाशन मे प्रगती हो रही है. विकास दर बढ रही है। पार्थ, तुम्हे संकंट मोचक बनना होगा।”

अर्जुन उवाच “हे विश्वानाथ मै संकट्मोचक कैसे बन सकता हूं।”

पार्थसारथी मुस्कराये और कहा ” इसके लिये सबसे पहले जरूरी है संकट पैदा करना|”

अर्जुन उवाच ” हे भगवन मै आपका मंतव्य नही समझा।”

पार्थसारथी उवाच “हे पार्थ तुमने इतिहास से कुछ नही सीखा है। कुछ वर्षो पहले एक फतेहगढ राज्य के एक राजा थे, जिन्होनें तत्कालीन हस्तिनापूर के महाराजा राजीव का सिंहासन पलट दिया था। तदोपरांत वह खुद उस सिहांसन पर आसीन हुये थे। जब उनका खुद का सिंहासन एक सहयोगी राजा की रथयात्रा से डोलने लगा था तब उन्होने मंडल रूपी समाज विघटक अस्त्र चलाया था।”

अर्जुन उवाच ” लेकिन भगवन उस अस्त्र के कारण अनेको युवा जलकर मर गये थे।”

पार्थसारथी उवाच “अर्जुन तुम कर्म करो फल की चिन्ता मत करो। लोगो को जीवन मै देता हूं, लोगो का जीवन मै लेता हूं, तुम तो एक निमित्त मात्र हो। तुम्हे याद होगा कि उस अस्त्र के चलाने के बाद तत्कालिन महाराज ने कुछ नही किया था।”

अर्जुन उवाच “लेकिन महाराज इस शस्त्र का प्रयोग किया जा चुका है, शासन की नौकरीयो मे जातिगत वैमन्श्य फैल चुका है। शासन मे अब प्रतिभा की कद्र नही होती है। शासन मे उन्नति के लिये अब जाति विशेष के होना ही आवश्यक है किसी प्रतिभा को होना नही।”

पार्थसारथी उवाच “हे पार्थ तुम मे दूरदृष्टी का अभाव है। अभी भी काफी सारे ऐसे क्षेत्र है, जंहा प्रतिभा का सम्मान किया जाता है। जंहा जातिगत वैमन्श्य नही है। तुम्हे हर ऐसे क्षेत्र का चुनाव करना होगा जंहा पर समानता और उन्नति मे भेदभाव नही होता है। हर ऐसी जगह पर तुम्हे मडंल अस्त्र का प्रयोग करना होगा।”

अर्जुन उवाच ” लेकिन भगवन ऐसे क्षेत्र तो राज्य की शान है, कुछ क्षेत्रो से अलौकीक प्रतिभाये निकलती है, कुछ क्षेत्र शासन की उन्नती के लिए विदेशी मुद्रा का प्रंबध करते है, यह वह क्षेत्र है जिन पर सारा राज्य गर्व करता है।”

पार्थसारथी उवाच ” हे अर्जुन गर्व पतन का कारण है। उसे तुम्हे नष्ट करना होगा। अर्जुन तुम अपने लक्ष्य पर ध्यान दो, बाकि सब मिथ्या है, माया है।”

अर्जुन उवाच ” भगवन मै ऐसा ही कंरूंगा। भगवन क्या आप मुझे कुछ ऐसे क्षेत्र का वर्णन दे सकते है, जंहा मै इस शस्त्र का प्रयोग कर सकता हूं?”

पार्थसारथी उवाच “तुम अपने युद्ध की आरंभ आई आई टी और आई आई एम से करो। उसके बाद निजी क्षेत्र पर संधान करो। चित्रपट सृष्टी मे भी आजकल प्रतिभा का सम्मान होता है जो कि प्रगतिशील समाज के लिये अपमान है। तुम्हारा अगला निशाना वह होना चाहिये। इसके बाद सशस्त्र सेना है। अर्जुन लक्ष्य की कमी नही है।”

और आगे क्या हुवा आप सब जानते है।


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4 टिप्पणीयां “आधुनिक अर्जुन की ज्ञान प्राप्ति” पर
आशीष भाई
बहुत जबरदस्त व्यंग और सुंदर लेखनी के लिये बहुत बधाई।
वर्णन और बहाव ने समा बांध दिया।
समीर लाल
समीर लाल द्वारा दिनांक अप्रैल 12th, 2006

बड़ा बढ़िया लेख लिखा।बधाई!
अनूप शुक्ला द्वारा दिनांक अप्रैल 12th, 2006

छींटे और बौछारें » आरक्षण - वैचारिक संघर्ष द्वारा दिनांक अप्रैल 15th, 2006

बहुत बढ़िया।
रजनीश मंगला द्वारा दिनांक अप्रैल 30th, 2006

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