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मेरे अधूरे सपने


सपने, हां सपने तो मैने खूब देखे है, बचपन से लेकर जवानी तक ! सपने देखना कब शुरू किया , याद नही, शायद होश संभालने के साथ ही, सपने देखना शुरू कर दिया था। सपने , खुली आंखों के सपने !

बचपन नंदन ,चंदामामा और इंद्रजाल कामिक्स पढ़ते हुये बीता। परिया, जादू की छडी, चमत्कारी शक्तियों और जादू की छडी से सराबोर वो कहानियां ! इन कहानियो के मायाजाल मे लिपटे सपने ! जो यथार्थ के धरातल पर असंभव थे, लेकिन बाल-मन उन्ही सपनों के मग्न रहता था। इसी दौरान दूर-दर्शन पर विक्रम बेताल और सिहांसन बत्तीसी जैसे धारावाहिक भी देखे ! बस सपनों पर एक तिलिस्मी धुंध छा गयी थी। सपने देखा करता था कि बस एक जादू की छडी मिल जाये और दूनिया मेरे कदमों मे ! इस छडी की आवश्यकता उस समय ज्यादा महसूस होती थी जब सर्दियो मे सुबह सुबह उठकर २ किमी दूर पैदल स्कुल जाना होता था । देर से स्कुल पहुंचने पर मास्टरजी मुर्गा जो बनाते थे।

खैर थोडे बड़े हुये, तिलीस्मी धुंध छटी । धीरे धीरे पता चला परियां, जादू की छडीयां सिर्फ कहानियो मे होती है। हाईस्कूल मे आ गये थे,पापा के ही स्कूल मे पढ़ना शुरू किया । पापा विज्ञान शिक्षक थे, रूचि बदली। अब विज्ञान प्रगति, आविष्कार और चकमक ज्यादा पढ़ते थे। नंदन ,चंदामामा भी पढ़ते थे लेकिन यथार्थ के धरातल पर रहकर। इन्ही दिनो स्टार ट्रेक, सिग्मा और टर्निंग पॊईंट देखना शूरू किया। बस फिर क्या था , सपना देखा कि बड़े होकर वैज्ञानीक बनेंगे। उन दिनो “विज्ञान प्रगति” मे सौर मंडल की उत्पत्ती और ग्रहों की जानकारी पर एक श्रंखला प्रकाशित हो रही थी, जिसके लेखक देवेन्द्र मेवाडी थे। स्टार ट्रेक, सिग्मा और विज्ञान-प्रगति ने, अंतरिक्ष यात्री बनने का सपना दिखा दिया ! उन्ही दिनो डिस्कवरी अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण भी हुआ था। राकेश शर्मा अब मेरे नायक थे।

इन्ही दिनो मे गर्मियों मे ननीहाल गया, मेरे नाना जी चित्रकार थे। उनके बनाये चित्र देखे। वहाँ चित्र-कला का भूत चढ़ा। नाना तो थे नही लेकिन मामा थे। उन्होने चित्र-कला की बारीकी सिखाया। बिना किसी स्केल या साधन के पेंसील से सरल रेखा खींचना , ये मेरा पहला पाठ था। वापिस घर आने के बाद कुछ दिनो तक चित्र-कला का भूत सवार रहा, कुछ इनाम भी जीते। ये भूत अभियांत्रीकी के दिनो तक रहा ,उसके बाद छूट सा गया।
दसंवी अच्छे अंकों से पास की। हाईस्कूल पास करने के बाद विज्ञान लेना तय था। मेरा सपना भी था, विज्ञान मे ही आगे बढ़ने का। लेकिन मेरे सपनो मे अब मम्मी पापा के भी सपने थे। पापा की इच्छा मुझे डाक्टर बनाने की थी। सच कहूं तो मेरी इच्छा उस समय पता नही क्या बनने की थी , मुझे आज तक नही मालूम। मेरे सपनो मे अंतरिक्ष यात्री, पायलट, चित्रकार और डाक्टर सभी शामिल थे।

पापा ने ११ वी मे मुझे भौतिकी, रसायन , जीव विज्ञान के साथ गणित भी दिलवा दिया था। गणित मेरे खून मे है, मेरे पापा, ताउजी दोनो गणीत मे एम एस सी हैं। मै बिना मेहनत किये इसमे १००% अंक ले लेता था। सिलसिला आगे भी जारी रहा जब मैने बिना किसी विशेष मेहनत के १२ वी मे गणित ने फिर से एक बार शतक लगाया।

१२ वी का परिणाम आया, अच्छे अंक थे लेकिन इतने अच्छे भी नही थे कि मेडिकल मे प्रवेश दिला सकें। ९४% अंक लाने के बाद मुझे एम बी बी एस मे प्रवेश नही मिल पाया। [मेरा एक मित्र जिसे ४२% अंक थे , उसे प्रवेश मिल गया। ये बात और है कि ३ सत्र लगातार असफल होने के बाद वह मेडीकल कॉलेज छोड़ आया]
मेरा डाक्टर बनने का सपना चकनाचूर हो चुका था। मैने निराशा मे बी एस सी मे भौतिकी , गणित और रसायन विषय लेकर प्रवेश ले लिया । अब मेरा सपना स्नातक हो कर नागरी सेवा (सिविल सर्विस) मे जाने का था।

लगभग २ महीनों तक बी एस सी की कक्षा पूरे मन से की। एक दिन शाम को पापा ने कहा कि कल से अभियांत्रिकी के प्रवेश शूरू हो रहे है, तुम्हारा नाम प्रथम सूची मे है। कल जाकर प्रवेश ले लो। मैं चकराया। पापा ने मुझे बताये बिना अभियांत्रिकी मे प्रवेश के लिये अर्जी डाल दी थी। उन्हे मालूम था कि मैं मेडिकल मे प्रवेश ना मिलने से निराश हूं और अभियांत्रिकी प्रवेश के लिये तैयार नही होंउंगा। दो महीने बाद मैं निराशा से उबर चुका था, और अभियांत्रिकी प्रवेश के लिये तैयार था।

दूसरे दिन मैने संगणक अभियांत्रिकी मे प्रवेश ले लिया और अपने विज्ञान महाविद्यालय को अलविदा कहा । इस दिन एक ऐसी घटना घटी जिसे मै आज भी नही भुला पाया हूं। ये एक लम्बा किस्सा है फिर कभी…।

मैने संगणक विज्ञान क्यो चुना, यह मैं आज भी नही जानता। यह मेरी सूची मे नही था। वैसे भी १९९४ मे यह वरीयता सूची मे यह रसायन अभियांत्रीकी , यांत्रीकी, इलेक्ट्रानिक, दूर संचार अभियांत्रीकी, विद्युत अभियांत्रीकी आदि के बाद आता था। जब मैं प्रवेश के लिये लिपिक के पास खड़ा था तब मेरे सामने सभी विकल्प थे। लेकिन पता नही क्या हुआ और मैने संगणक अभियांत्रीकी मे प्रवेश ले लिया। मेरे सभी मित्रों को आश्चर्य था। मैने उन दिनो एक लेख पढ़ा था “कम्प्युटर रिवोल्युशन“, शायद ये उसका असर था।

अभियांत्रीकी प्रवेश के बाद भी मेरा पढ़ना जारी रहा। राहुल सांकृत्यायन को पढा। “वोल्गा से गंगा तक” ने मुझे काफी प्रभावित किया। राहुल सांकृत्यायन ने मुझे यायावरी का सपना दिखाया ! नागरी सेवा का सपना अपनी जगह था।

खेलो मे मै क्रिकेट खेलता था, लेकिन सचिन बनने का सपना नही देखा था । कालेज की टीम के एक छ्ठे सातवें क्रमांक के बल्लेबाज को सपने देखना भी नही चाहिये। शतंरज मे भी रूची थी लेकिन एक सीमा तक ही ! कुल मिला कर खेलो की दूनिया मे मैने कोई सपना नही देखा था।

समय अपनी रफ्तार से चलता रहा, कालेज के पाठ्यक्रम के साथ और भी बहुत कुछ पढते रहे। अभियांत्रिकी के अंतिम वर्ष मे कुछ ऐसी परिस्थितियां बन गयी कि मुझे एक नौकरी हर हालत मे चाहिये थी। संगणक अभियांत्रिकी का अच्छा समय आ चुका था, ढेर सारी नौकरियाँ थी। अच्छा खासा वेतन था। बिना किसी संघर्ष के नौकरी मिल गयी।

जिन्दगी के संघर्ष मे कुछ ऐसा फंसा कि नागरी सेवा का सपना, सपना ही रह गया। ऐसे भी मै जो नौकरी कर रहा था वो मुझे पसंद थी। नौकरी छोडकर परिक्षा की तैयारी की हिम्मत नही थी, साथ कुछ आलस भी था। यदि मैने नागरी सेवा की परिक्षा दी होती तो मेरे विषय इतिहास और अर्थशास्त्र होते !

अब मै सोचता हूं कि मैने इतने सपने देखे(अंतरिक्षयात्री, चित्रकार, वैज्ञानिक,डाक्टर,नागरी सेवा) लेकिन करियर ऐसे क्षेत्र (कम्प्युटर प्रोग्रामिंग) मे बना जिसके बारे मे कभी सोचा ही नही था! लेकिन आज मुझे अपने वर्तमान करियर से पूरी संतुष्टि है।

बाकी सपने जो अधुरे है, हो सकता है कि भविष्य के गर्भ मे छिपे है, शायद धीरे धीरे पूरे हो जायें । यायावरी का जो सपना था, आज सपना नही है। हर सप्ताह मेरी यायावरी जारी है। काफी घूम चुका हूं देश मे विदेश मे, लेकिन बहुत कुछ बाकी है। एक और छिपा हुआ सपना पढ़ते रहने का जो कभी ना तो रुका था ना रुकेगा ! चित्रकारी के लिये हो सकता है भविष्य मे कभी समय निकल आयें।
मैने जो सपने देखे, कुछ पूरे हुये। कुछ टूटे लेकिन सपने देखना जारी है…..

आये हो तो आँखों में कुछ देर ठहर जाओ
इक उम्र गुज़रती है ,इक ख़्वाब सजाने में।

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6 टिप्पणीयां “मेरे अधुरे सपने” पर
आशीष, बहुत अच्छा भी लिखा है और दिल भी लिखा है.
सभी सपने पूरे हो जायें और देखने को सपने ही न रहें, उससे बुरा क्या हो सकता है? जो सपने अभी तक पूरे नहीं हुए वे भविष्य के लिए तुम्हारा इंतजार करेंगे.
मैं सोचता था कि ऐसी जादू की छड़ी हो जिससे मुझे गणित आ जाये, पर मुझे भी गणित नहीं आया, जब तक गणित का विषय रहा, उसमें मुश्किल से ही पास हो पाया. शायद इसी लिए मेरे मन में डाक्टर बनने की छायी कि इसमें गणित नहीं पड़ना पड़ेगा!
पर यह सच है कि जीवन की एक राह चुनो तो अन्य सब राहें छोड़नी ही पड़ती हैं!
सुनील द्वारा दिनांक मई 20th, 2006

बहुत ही अच्छा लिखा है। सच में मै खो गया और मजा भी आ गया।
e-shadow द्वारा दिनांक मई 20th, 2006

बढ़िया लिखा,हमेशा की तरह!
अनूप शुक्ला द्वारा दिनांक मई 20th, 2006

बहुत अच्छा लिखा है, आशिष भाई.
समीर लाल द्वारा दिनांक मई 21st, 2006

ख्वाब सजते रहें,सपने सवंरते रहें
दुआ है आप आगे बड़ते रहें ।
ratna द्वारा दिनांक मई 21st, 2006

बहुत अच्छा
रजनीश मंगला द्वारा दिनांक मई 22nd, 2006

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1 टिप्पणियाँ

shravan ने कहा…
हर चीज जो हम चाहते हैँ यदि पुरा हो जाये, तो हम उसे रखेँगे कहाँ......?
aapki sayari hame bahut pasand aai, ye aapke dil se nikli hai ya kahi se liya gya hai......?