३१ जुलाई हिन्दी के उपन्यास सम्राट और कहानीकार प्रेमचंद का १२६ वां जन्मदिन है। उनके जन्मदिन पर मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि।
दसवी मे पढा था कि उनका असली नाम नवाबराय था। उनकी पहली रचना सोजे-वतन थी जिसमें देशभक्ति पूर्ण कहानियां थीं। छपते ही इसे अंग्रेजों ने जब्त कर लिया। तत्पश्चात वे प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे।
प्रेमचंद मेरे प्रिय लेखक रहे हैं, उनके लगब्भग सभी उपन्यास और ढेरो कहानिया पढी है।प्रेमचंद को पढना तो बचपन से ही शुरू हो गया था। कक्षा दूसरी मे बालभारती मे उनकी कहानी पढी…
निधीजी के चिठ्ठे पर एक मजनू के बारे मे पढा, मेरे आस पास तो मजनूओ की भरमार रही है। सोचा चलो एक के बाद एक मजनूओ के किस्से लिखना शुरू कर दे।
ये किस्सा है उन दिनो का जब मै नया नया दिल्ली पहुंचा था। हम लोग कुल आठ लोग एक ही फ्लैट मे काल्काजी मे रहते थे। सभी के सभी नागपूर और उसके आसपास के क्षेत्र से थे। कुछ नौकरी करते थे, कुछ सघर्ष कर रहे थे। फ्लैट का खर्च नौकरीशुदा लोगो की जिम्मेदारी थी। जो संघर्ष कर रहे थे, उनका एक काम था, दिन मे अपना बायोडाटा बांटना, साक्षात्कार देना और रात मे…
अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाये
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये,
घर से मस्जिद है बहुत दूर ,चलो यू टर्न ले
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये ।
निदा फाजली की ये गजल मै कल फिर एक बार “वाह वाह″ मे सुनी। जब उन्होने ये शेर पाकिस्तान मे एक मुशायरे मे पढे थे,उसके बाद कुछ श्रोताओ ने उनसे पूछा कि
“मस्जिद किसी बच्चे से बडी कैसे हो सकती है।
उनका जवाब था
"मस्जिद तो इंसान के हाथ बनाते है, लेकिन बच्चो को तो खुदा के हाथ बनाते है !"
ये पंक्तिया फिर याद आ गयी जब गढ्ढे मे गिर…
मेरा गांव जहां मेरा सारा बचपन और किशोरावस्था बीता एक आम भारतीय गांव था। गांव के पश्चिम मे पाठशाला थी ,उसके बाद एक बड़ा सा मैदान। इस मैदान को ‘झंडा टेकरा’ कहा जाता था। पाठशाला के पीछे एक पहाड़ी, पहाड़ी और ‘झंडा टेकरा’ को विभाजित करती हुयी एक नहर। गांव के उत्तर मे था एक बडा बरगद का पेड़ और उसके पिछे एक बड़ा सा तालाब। बरगद के पेड़ और गांव को अलग करती एक पक्की सडक।
ये बरगद का पेड़ गांव का हृदय-स्थल था, ये बस स्थानक तो था ही साथ मे चौपाल का भी कार्य करता था। गांव के सारे के सारे…
लालु और सूअर का बच्चा
लालुजी अपने ड्रायवर के साथ एक बार कार से जा रहे थे। एक गांव से पहले उनकी कार के निचे एक सूअर का बच्चा कुचल कर मर गया। लालुजी दुखी हुये। ड्रायवर को कुछ पैसे दिये और कहा कि “गांव मे जाओ और सूअर के मालिक को मुआवजा दे आओ”
ड्रायवर पैसे लेकर गांव चला गया। एक घंटा बीत गया, दो घंटे बीत गये ड्रायवर वापिस नही आया। लालुजी बैचेनी से टहलते रहे। तिसरे घंटे के आखिर मे ड्रायवर एक बोरा सिर पर लादे आते दिखा। पास आने पर लालुजी ने पूछा “का रे ड्रायबर , अतना देर काहे लगा दि…
ये किस्से उस समय के है जब मै प्राथमिक पाठ्शाला मे था। हम महाराष्ट्र के गोंदिया जिले मे एक गांव झालिया मे रहते थे, गांव के बाहर थी हमारी पाठशाला। पाठशाला के ठीक सामने एक बडा सा मैदान और एक कुंआ। एक तरफ ध्वजस्तंभ,जिसका प्रयोग साल मे दो बार १५ अगस्त और २६ जनवरी को होता था। पाठशाला के एक तरफ थी,पानी की नहर, पीछे एक छोटी सी पहाड़ी।
पाठशाला की इमारत का निर्माण इस तरह से किया गया था कि किसी भी कक्षा मे प्रवेश करने के लिये तीन सीढीया चढनी होती थी। पाठशाला का समय होता था ११ बजे सुबह…
आज गुरु पूर्णिमा है, वेद व्यास का जन्मदिन ! गुरु पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है जिसमें हम अपने गुरुजनों, श्रेष्ठजनों व माता-पिता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं तथा उनका आदर करते है।
इस दिन के साथ बचपन की काफी सारी खट्टी मीठी यादे जुड़ीं हुयी हैं। मुझे याद है कि मेरा स्कूल मे प्रवेश इसी दिन कराया गया था। सुबह कलम -पाटी पूजा हुयी थी, तिलक लगाया गया था। पाटी पर एक बड़ा सा ॐ बनाया गया था। एक मंत्र भी पढ़ा गया था
ॐ नमः सिद्धम ।
ॐ नमः सिद्धम । इस मंत्र से याद आया कि हमारे गांव मे एक …
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