एक शाम मैं अपने रूम पर अकेला ही था। बादल घिरे हुये थे। मौसम ठंडा हो गया था। अंधेरा छा रहा था। देखते देखते ही बुंदाबांदी शुरू हो गयी। बालकनी पर खडा बारिश की भटककर आती हुये बुंदो का आनंद लेते हुये रीम झीम बारिश के निनाद का आनंद ले रहा था।
कुछ देर बाद ऐसे ही टीवी चालू किया हिमेश बाबू नाक दबा कर गा रहा था
“एक बार आजा आजा.. झलक दिखला जा……"
गुस्से मे आकर टी वी बंद कर दिया और आकाशवाणी की शरण ली…
विविध-भारती के क्या कहने….. सुभा मुदगल गा रही थी…..
“अब के सावन ऐसे बरसे……”
पूरा म…
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