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बचपन और विचारधारा का विकास

1986-87 का समय होगा, रिलायंस क्रिकेट विश्वकप के आसपास का समय। हम कक्षा 6 में थे। स्कूल से वापिस आने के बाद अंधेरा होते तक झालिया गांव में चौक के पास खेलते थे।
चौक पर एक बड़ा बरगद का पेड़ है, वही बसे रुकती है, कुछ चायपान की दुकान, साइकल मरम्मत केंद्र थे।
खेलो में वालीबॉल, कबड्डी प्रमुख होते थे, लेकिन अब विश्वकप बुखार की चपेट में आकर क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। अंधेरा होने के बाद सारी मंडली बतियाते हुए तालाब या पास की नहर तक जाते थे, वहां मित्र मंडली नहाने , शौच जैसे काम निपटाती थी। वापस आने के बाद सब अपने अपने घर।
गांव में एक पटले गुरुजी थे, जो आमगांव में संघ से जुड़े स्कूल में अध्यापक थे। उन्हें शायद निर्देश था कि गांव मे शाखा लगाई जाए। उनकी बहुत दिनों से हमारी मंडली पर नजर थी, क्योंकि गांव में कोई और उन्हें गंभीरता से लेता नही था।
एक दिन हम क्रिकेट खेल रहे थे, पटले गुरुजी ने क्रिकेट की जमकर बुराई की। जैसे ये बच्चो का खेल नही है, बॉलर के कंधे खराब होते है, बैट्समैन की कमर वगैरह बगैरह। बाल मन डर गया, पुछा कि क्या करे। उनको मौका मिल गया, कहा कि देशी खेल खेलना चाहिए, वैचारिक विकास के लिए बौद्धिक चर्चा करना चाहिए वगैरह। कल इसी समय आओ, मैं सब सीखाता हूँ।
दूसरे दिन सब जमा हुए। गुरुजी ध्वज लेकर आये थे, साथ में एक पूर्णकालिक सेवक को भी लाये थे। पूरे विधि विधान से शाखा लगी। कुछ खेल खेले गए, बौद्धिक(?) चर्चा के अंतर्गत कथाकथान हुआ, जिसकी प्रस्तावना आतातायी, आक्रमणकारीयो के अत्याचारों से रखी गई। पुरे गांव में आक्रमणकारी समाज से संबधित दो शिक्षिकाये थी, जो स्कूल मे सरस्वती पूजा, व्यास पूजा भी कराती थी, तो मित्र मंडली में किसी को हजम नही हुई। मित्र मंडली क्रिकेट ना खेले जाने से भुनभुना रही थी अलग से।
अगले दिन शाम को पटले गुरुजी , और वाघाये(पूर्णकालिक) महोदय फिर से आ गए। क्रिकेट की बलि चढ़ी। कुछ खेलो के बाद कथाकथन आरंभ हुआ। आज का विषय विश्वगुरु प्राचीन भारत और वेदों मे विज्ञान था। वाघाये साहब ने महानता के गीत गाये, वैमॉनिक शास्त्र, परमाणु बम के असली स्रोत बताये, मैक्समूलर, मैकॉले निन्दा पुराण का वाचन किया। हम ज्ञान के ओवरडोज से अभिभूत थे।
दूसरे दिन हमारे प्रिय शिक्षक टाटी गुरूदेव विज्ञान की कक्षा ले रहे थे आक्सीजन के बारे में पढ़ा रहे थे, विदेशी वैज्ञानिक जोसेफ प्रिशले द्वारा आक्सीजन की खोज के बारे में बताया। नव प्राप्त ज्ञान के ओवरडोज से अभीभूत और भारतीय ज्ञान की चोरी से किसी विदेशी को श्रेय दिए जाने से हम भड़क गए। और पूरी कक्षा में नव प्राप्त ज्ञान का वमन कर दिया। गुरुदेव थोड़े हत्प्रभः होगये। कक्षा समाप्त होने पर बुलाया, बाहर लेकर गए और सारी जानकारी ली। हम थोड़े डरे हुए थे, गुरुदेव से नही, उनकी तीन फुट वाली हरे बांस से बनी विद्यादायनी से। लेकिन गुरुदेव ने कुछ नही कहा, मुस्कराते हुए चले गए।
हमारा शाम को ध्वज तले विश्वगुरु माहात्म्य, आतातायी निन्दापुराण का श्रवण जारी रहा। मित्र मंडली क्रिकेट ना खेलने और ज्ञान के ओवरडोज से अब कसमसाने लगी थी, लेकिन हमारे कारण विद्रोह नही कर रही थी।
अगले रविवार को सुबह 6 बजे टाटी गुरुदेव अपनी साइकिल से घर आये। पापा से मीले , सामान्य हाल चाल पूछा गया। मैं डर रहा था कि टाटी गुरुदेव शिकायत करेंगे और उसके बाद पापा सुताई करेंगे। लेकिन आशंका निर्मूल निकली। टाटी गुरुदेव ने पापा को कहा कि मैं आशीष को आज आमगांव ले जा रहा हूँ, दोपहर तक घर छोड़ दूंगा। पापा ने क्यो कैसे कुछ नही पूछा, बोले ठीक है ले जाइए।
टाटी गुरुदेव की साइकल के कैरियर पर बैठकर आमगांव पहुंचे। गुरुदेव एक पुस्तकालय ले गए। पुस्तकालय की वार्षिक फी 12 रूपये देकर मुझे सदस्य बनाया। ऋग्वेद की भारीभरकम पुस्तक मेरे नाम पर इश्यू करवाई। और कहा कि कल से आधा घण्टा पहले स्कूल आ जाना।
दूसरे दिन से गुरुदेव ने पाठ्यक्रम की रट्टू संस्कृत के बाहर संस्कृत पढ़ाना शुरू किया। हम ऋग्वेद हिंदी अनुवाद के सहारे पढ़ रहे थे। तीन चार महीने बीतते बीतते सीधे संस्कृत से समझने लगे थे, गुरुदेव सहायता के लिए थे ही। लेकिन गुरुदेव ने कभी भी अपने विचार नही थोपे, कहते थे पढो और जानो कि वेदो में क्या है। नही समझो तो मुझसे सहायता लो , मैं अनुवाद में सहायता करूँगा, व्याख्या नही। गुरुदेव ने पूरे दो साल संस्कृत सिखाई।
अब वापिस आते है हमारी शामो पर। सुबह सुबह टाटी गुरुदेव द्वारा मतिभ्रष्ट होने के रास्ते पर भेज दिए जाने का असर अब शाम को दिखने लगा था, हम अब प्रतिवाद करने लगे थे। मित्र मंडली पर क्रिकेट विश्वकप का बुखार था। वाघाये महोदय पर अन्य स्थानों पर ज्ञान प्रासार का दबाव था, मंदिर आंदोलन भी आरम्भ हो रहा था। आजकल कम आते थे। बस एक दिन विद्रोह हो ही गया, सारी मंडली ध्वज के नीचे ना आकर बाजू के खेत मे क्रिकेट खेलने लगी।
पटले गुरुजी ने हार नही मानी, वे हमारे शाम नहर/तालाब के विहार में हमारा साथ देने लगे। उनका बौद्धिक कथाकथन कार्यक्रम जारी रहा...
मैंने गुरुजी और गुरुदेव शब्द का प्रयोग किया है वह अनायास नही है। इस कथा के सारे पात्र वास्तविक है। पटले गुरुजी रिटायर हो चुके है। 

टाटी गुरुदेव अब हमारे मनमस्तिष्क में ही है।

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