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ऐसे बीता हमारा 42 वा जन्मदिन

19 अक्टूबर को जन्मदिन होने से होता यह है कि हमेशा किसी ना किसी त्योहार के दिन या उसके आसपास आता है। 2017 मे दिवाली को था तो इस बरस दशहरे के दिन।

गार्गी के आने बाद हर बरस दशहरे को रावण का पुतला बनाकर दहन करते है। रावण के बनाने और दहन मे पूरा दिन बीत जाता है, गार्गी के साथ सब का अच्छा खासा मनोरंजन हो जाता है। अब जन्मदिन के साथ रावण दहन मे समय का संयोजन मुश्किल काम। एक दिन पहले ही रावण का ढांचा बना कर रख लिया।

सुबह अलेक्सा की बजाय गार्गी ने जगाया, और पूरा "हैप्पी बर्थडे" गीत गाकर सुनाया।

इसके बाद काफ़ी विरोध के बाद भी हम "Its just an another day" कहते हुये, रोज की तरह हम अपनी जागींग के लिये निकल लिये। लक्ष्य छह किमी का था लेकिन पांच किमी ही दौड़ कर लौट आये। फ़ोन बज रहा था और दौड़ने मे व्याधान आ रहा था। जागींग के समय ही छोटे भाई और दोनो बहनो के फ़ोन आ गये थे।

घर आये, नहाये, वैसे तो रोज नहाते है, जागींग के बाद नहाना ऐसे भी मजबूरी होता है, तो सोचा कि आज भी नहा ही लेते है।



नाश्ते मे मेथी के परांठे बने थे, लाल मिर्च और टमाटर की चटनी के साथ भोग लगाया। नाश्ते के दौरान पता चला कि गार्गी ने निवेदिता से गुब्बारे भी फ़ुलवाये है। हमारे लिये गिफ़्ट मे चाकोमनी लेकर आई है। शाम तक का सारा कार्यक्रम हमसे बिना पुछे दोनो मा बेटी ने तय कर रखा है।

इसके बाद आदेश आया कि मंदिर जाना है। हमने नानकुर की फ़ार्मेलिटी निभाई। पता था कि डांट डपट कर, धकिया कर मंदिर ले जाया ही जायेगा। पास के वेंकेटेश्वरा मंदिर पहुंचे। विजयादशमी होने से अच्छी खासी भीड़ थी। मंदिर के अंदर पहुंचे, कपाट खूले थे लेकिन भगवान पर्दे के पीछे थे। पता चला कि भगवान स्नान कर रहे है। स्नान के बाद अलंकरण , वस्त्र पहनाने के बाद ही पर्दा खुलेगा।

अब पता नही भगवान नहाने मे आलस कर रहे थे या भगवान को नहलाने वाले, पूरा एक घंटा लग गया। एक घंटे बाद पर्दा खुला। एक फ़ुलों का थाल घुमाया गया कि सब उसे छूं ले तो भगवान को चढ़ा देंगे। पुष्पार्पण के बाद आरती हुई। आरती के बाद सभी को एक दूसरे बाजु वाले रास्ते से जाने कहा गया। हम भूनभूना रहे थे कि पूरे दो घंटे लग गये। निवेदिता कह रही थी कि दिन अच्छा है, पूरी पूजा मे रहने का मौका मिला।

दूसरे दरवाजे से बाहर आये , तो सामने महाप्रसाद की तैयारी थी। महाप्रसाद के नाम से हम खुश हो गये, कतार मे लगे। एक बड़ी थाली उठाई, और चक्रपोंगल, बेसीबेले बाथ, दहीचावल और पुलीहोरा लिया। महाप्रसाद से मन, आत्मा और पेट तीनो तृप्त हो गये। परोसने वालो ने दोबारा के लिये पुछा, हमने विनम्रता से मना कर दिया। पेट मे थोड़ी जगह और होती तो दोबारा तो लेते ही। अपनी अपनी थाली स्वयं धोने की व्यवस्था थी, थाली धोई। नही होती तो भी अपनी थाली तो स्वयं ही धोते।

अब घर की ओर चले, पता चला कि काम वाली बाई , आधा घंटा इंतजार के बाद वापस चली गई। गनिमत थी कि डीशवाशर था, बर्तन धोने लगा दिये।

इस जन्मदिन हम तीनो ही थे। तो टीका लगाने का काम हुआ। निवेदिता और गार्गी ने टीका लगाया, आरती हुई। फ़ोटोसेसन हुआ। टाईमर वाला कैमरा धन्य हुआ, ऐसे मौको पर ही बाहर निकलता है।

अब अपने अधूरे प्रोजेक्ट को पूरा करना था। इसके बाद आटे की लई बनाई और रावण बनाने मे लग गये। रावण तो बना हुआ था, बस उसे कपड़े पहनाने ने थे। गिफ़्ट रैप काट काट कर चिपकाते गये। फ़ोन आते जा रहे थे, बाते करते हुये काम मे जुटे रहे। कपड़े पहना दिये, मुकुट बना दिया। अब चेहरा बनाना बचा था, वो काम निवेदिता और गार्गी को आउटसोर्स कर दिया। गार्गी ने रावण को लिपस्टिक भी लगा दी।

रावण महाराज अब तैयार थे, सूखने धूप मे रख दिया।


रावण के पेट मे भरने के लिये सारे घर से कबाड़ निकाला। अमेजान और फ़्लिपकार्ट की मेहरबानी , छः फ़ीट के रावण के पेट मे भरने लायक कबाड़ निकल आया।

ऐसे मे शाम हो गई। शाम की चाय बनी। चाय पी रहे थे कि बाहर तेज हवा शुरु हो गई। कुछ ही मिनटो मे बारीश शुरु हो गई। आपातकालीन रावण बचाओ अभियान शुरु करना पड़ा। रावण उठाकर घर मे लाये। 30 मिनट अच्छी खासी बारीश हो गई। हम चिंतित बारीश नही रुकी तो रावण महाराज तो रात भर घर मे ठहरेंगे।  लेकिन ऐसी नौबत नही आई।

हमने आनन फ़ानन मे रावण को बाहर निकाला, उनके पेट मे कबाड़ भरा। और रावण दहन हो गया ...



इसके बाद केक बाहर निकाला गया। केक काटने का कार्यक्रम और फ़ोटोसेसन फ़िर से हुआ। इस बार गड़बड़ यह हुई कि कुछ फ़ोटो मे निवेदिता और कुछ मे गार्गी हिल गई थी। कटा हुआ केक दोबारा काटा गया कि जिससे फ़ोटो दोबारा ढंग से ली जा सके। केक के आर्डर मे भी बहुत सी समस्या आई थी। हम जहाँ से केक लेते है उसने विनम्रता से मना कर दिया था कि उसके पास केक बनाने कोई नही है, सारे लोग विजयादशमी के आर्डर मे व्यस्त है। वो नया केक बना नही पायेगा और हमे पुराना केक तो  देगा नही। एक दूसरे केक की दुकान मे आर्डर दिया तो केवल वनीला केक ही उपलब्ध था।

केक काटने का कार्यक्रम निपटा। रात का खाना बाहर खाने का प्लान था। सुबह एक नया रेस्तरां देखा था, सोचा कि नया रेस्तरां है तो खाना अच्छा होगा। उसी रेस्तरां की ओर चल दिये। पहुंचे तो पता चला कि रेस्तरां खुला तो है लेकिन आज बंद है।

अब क्या करें ? चल दिये पुराने भरोसे वाले रेस्तरां रागीनाडु की ओर। यह रेस्तरां अच्छा है लेकिन इसमे कोयले की आंच मे खाना बनता है तो रेस्तरां मे धुंआ भर जाता है। तो हमने आंध्रा की दो तीन डीश का आर्डर दिया और पैक करने बोल दिया। खाना लेकर घर आये। सारा खाना उठाकर छत पर पहुंच गये।

छत पर खूले आसमान के नीचे चांद की रोशनी मे खाना खाया।  सोचा था कि चलो फ़ेसबुक पर आये संदेशो का जवाब दे दे, लेकिन दिन भर की सर्कस के बाद बहुत थक गये थे। सुबह ही उत्तर देने की सोची और सोने के लिये चल दिये।

सूरज महाराज की 42 परिक्रमा पूरी हो गई है, अब 43 वी आरंभ कर दी है ....



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