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रविवारीय भोजन गाथा

2000-2002 दिल्ली युग


हम कालकाजी में अलकनंदा अपार्टमेंट्स के पास एक 1 BHK फ्लैट में छह मित्रो के साथ रहते थे। इनमें से तीन कमाने वाले तीन नौकरी की तलाश में लगे थे। रहने, खाने और बेरोजगार दोस्तो की नौकरी तलाश का खर्च कमाने वाले ही सम्हालते थे।

एक मेड रखी थी जो सुबह नाश्ता, दोपहर का खाना और शाम को रात का खाना बनाने के साथ बर्तन, और घर की सफाई कर जाती थी।

समस्या यह थी कि वह रविवार को छूट्टी लेती थी। उस अपार्टमेंट में हमारे आविर्भाव से पहले रविवार को खाना बनाना का काम अरविंद लाल के पास था, बाकी बर्तन धोने का काम करते थे।

अरविंद लाल का खाना बनाना बड़ी नफासत का काम था। पूरी फुरसत में नफासत से सब्जी काटेगा, क्या मजाल की सब्जी के दो टूकड़ो का आकार अलग हो। उसके बाद धीमी आंच में खाना पकाएगा। धीमी आंच में प्याज भूनेगा, नापकर तेल मसाले डालेगा, प्यार से चम्मच चलाएगा। छह व्यक्ति के लिए दाल, चावल, सब्जी बनाने में तीन से चार घण्टे लगते थे। ऊपर से तुर्रा यह कि उन्हें खाना बनाने में किसी का दखल बर्दाश्त नही। कहता था कि मैं दिल से खाना बनाता हूँ।

हम पहुंचे तो पहले रविवार को 12 बजे तक खाना बनने का इंतजार करना पड़ा। लाल साहब आठ बजे से किचन में घुसे हुए थे। हमे बैचेन देख राजेश ने बोला कि चिंता मत कर लाल खाना अच्छा बनाता है। खैर खाना मस्त था, लपेट कर खाया गया।

ऐसा तीन चार सप्ताह चला। उसके बाद हमारा धैर्य चूक गया। एक शनिवार की शाम हमने लाल साहब को बोला कि कल खाना हम बनाएंगे। लाल साहब का हम पर भरोसा नही था। राजेश मेरे साथ कालेज में भी पढ़ा था, कॉलेज के दिनों में उसने मेरे बनाया खाना भी खूब खाया था। उसने अब लाल को कहा कि एक बार इसके हाथ का खाना खा कर देख ले। लाल कुनमुनाते हुए माने।

दूसरे दिन हम आठ बजे उठे। नहा धोकर सब्जी लाने गए। नौ बजे वापस आये। उसके बाद मटरगस्ती के लिए निकले। लाल साहब परेशान खाना कब बनाएगा। हमने लाल को कहा टेंशन मत ले 12 बजे तक खाना बन जायेगा।

साढ़े दस बजे वापिस आये और किचन में घुसे। लाल के लिए 'नो एंट्री' का बोर्ड लगाया।

बारह बजे तक रोटी, दाल, चावल, सब्जी और सलाद तैयार था। सबको ख़ाने के लिए बुलाया। लाल साहब चौंक गए, इतनी जल्दी खाना कैसे बन गया। किचन में देखा, दाल, रोटी सलाद भी था। चावल, सब्जी की मात्रा देखी तो बोले कि सारा मोहल्ले को न्योता है क्या ?

हम और राजेश मुसकराये। खाना शुरू हुआ। आम दिनों से लगभग दुगुना खाना सफाचट हो गया था।

इसके बाद लाल साहब का नाम भी बर्तन साफ करने वालो में आ गया था।

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