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ऐसे बीता मेरा जन्मदिन

आज मैने अपनी जिन्दगी के उन्तीस साल पूरे कर लिये। बचपन मे मेरा जन्मदिन काफी धुमधाम से बनता था। घर मे सबसे बड़ा था उपर से पूरे मुहल्ले मे अकेला लड़का। काफी आनन्द आता था। हमेशा इंतजार रहता था, हम एक दिन के शंहशाह होते। हर फरमाईस पूरी की जाती। घर मे उपहारो का ढेर लग जाता था। पापा मम्मी और बहने तो रह्ते ही थे, साथ पापा के स्कुल से सभी शिक्षक सहकर्मी भी आते थे।

ये सिलसीला खत्म हुवा मेरे कालेज मे पहुंचने के बाद। उसके बाद तो कुछ ऐसा हुवा कि जन्मदिन पर घर पहुंचना मुश्किल जाता था। लेकिन मै कैसे भी , हर हालत मे शाम तक घर पहुंच जाता था। पांरपरिक तरिके से टिका किया जाता था,। कुल मिला कर परिवार मे मेरा जन्मदिन एक तरह से त्योहार ही था।

कालेज के बाद जब नौकरी की जद्दोजहद मे ऐसा हुवा कि जन्मदिन मनाना  लगभग बंद हो गया। ऐसे भी जब से पापा नही रहे थे तो कोई उत्साह नही रहता था। बस यदि दोस्तो को याद रहा तो शाम को पार्टी हो जाती थी, किसी होटल/रेस्टारेंट मे जाकर शाम का खाना खा लिया बस।

वैसे भी मै पिछले 7-8 सालो से अकेला रह रहा हुं, एक जगह पर टिक कर कभी नही रहा तो मम्मी को साथ मे रखने की सोच नही पाया छोटा भाई सरकारी नौकरी मे जमा हुवा है तो मम्मी और छोटी बहन उसी के साथ रहते है। बस तब से तो जन्मदिन पर उन लोगो से बात कर लो बस दिल खुश हो जाता है।

जब मैने चेन्नई मे विप्रो मे काम करना शुरू किया था, यहां भी कुल मिला कर हाल वही था, वही भटकती जिन्दगी, कभी भी 3-4 महीनो से ज्यादा एक जगह ना रह पाना। साल मे 6 महिने से ज्यादा बाहर। जन्मदिन तो दूर किसी भी त्योहार मनाने के लिये तरस जाता था। नये दोस्त बन नही पाये, एक जगह टिक कर रहो तभी तो दोस्त बनेंगें!

लेकिन इस साल बात कुछ और थी। पिछले प्रोजेक्ट के लिये मुझे दिसंबर 2004 मे कुछ रूकी(नये कालेज स्नातक प्रोग्रामर) दिये गये थे। उन लोगो ने अपना कैरीयर की शुरूवात मेरे मार्गदर्शन मे की थी, और मैने उन लोगो को एक अच्छी शुरूवात देने की कोशीश की थी। इन लोगो को मै मस्ती मे मेरे बच्चे ही कहता था। और वे मुझे बास इन बच्चो का मुझे बास कहना, अपने मार्गदर्शक/गाईड/मेंटर को सम्मान देने के जैसा ही था।

इस टीम के साथ मैने 3-4 महीने कार्य किया। बच्चो का कार्य अच्छा रहा था, मेरा यह प्रोजेक्ट अब कंपनी के लिए एक उत्पाद बन चुका था। मेरा कार्य समाप्त था, मेरे बच्चे अब इसे आगे बढ़ाने मे सक्षम थे। प्रोजेक्ट का ठोस आधार खडा कर मै चल दिया फिर से अमरीका, अगले प्रोजेक्ट के लिये।

और मैं वापिस पहुचां अपने जन्मदिन(19 अक्टूबर) से 2 दिन पहले। 19 अक्टूबर आया। सुबह मंदिर जाकर भगवान जी को पिछले साल के लिये धन्यवाद बोला और अगले साल के आने के लिये समय ले लिया। घर फोन कर मम्मी , छोटी बहन और भाई से बाते की और सोचा हो गया अपना जन्मदिन !

शाम तक काम मे लगा रहा। ऐसे भी काफी काम पडा था… भारत वापिस आने के बाद नये वातावरण मे, फिर से सब कुछ व्यवस्थित करना मुश्किल हो जाता है। हर बार जब भी वापस आता हुं सब कुछ बदल चुका होता है। नये लोग, नया वातावरण, नये सहकर्मी…। पूरा दिन कैसे गया पता नही चला…।

शाम को जब घर(मेरा कमरा, घर तो वो होता है जिसमे घरवाले हों) जाने की तैयार था, एक मिटिंग के लिये बुलाया गया। अंदर पहुंचा तो पता चला कि मेरे जन्मदिन मनाने की पूरी तैयारी है। केक, बधाई पत्र लेकर पूरी जनता तैयार थी। दिल खुश हो गया। बचपन के सारे जन्मदिन याद आ गये।

मैने तो सपने मे भी नही सोचा था कि भारत आने के बाद कार्यालय मे मेरा जन्मदिन इतने अच्छे से मनाया जायेगा। और मेरे साथ काम करने वाले मेरे ये बच्चे, मेरे लिये ये सब ताम झाम करेंगे।

कुल मिला कर याद रहेगा ये जन्मदिन!


5 टिप्पणीयां »

1.अनूप शुक्ला उवाच :
अक्तुबर 21, 2005 at 6:43 am
जन्मदिन मुबारक हो मेरे बच्चे। दुआयें कि भगवान तुझे टिकाकर रहने वाली साथी टिकायें।

2.eswami उवाच :
अक्तुबर 21, 2005 at 6:55 am
जन्मदिन की बहुत-बहुत मुबारकबाद आशीष!

3.जीतू उवाच :
अक्तुबर 22, 2005 at 6:23 pm
भई आपको जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई। देर से ही सही, लेकिन हम आ ही गये।
अक्सर होता ये था, कि जो परमालिंक आपका बनता था, वो काम नही करता था, पता नही क्यों। लेकिन आज कर गया, इसलिय सारी पिछली पोस्ट एक साथ पढ रहा हूँ।

4.पंकज नरुला उवाच :
नवम्बर 25, 2005 at 3:36 am
आशीष भाई,
थोड़ा लेट कह रहा हूँ पर बधाईयाँ तो समय की मोहताज नहीं होती। जिंदगी के नए साल की बहुत बहुत बधाईयाँ। आशा करते हैं कि आपका नया प्रोजेक्ट इधर सैन होज़े साइड लगे व आप कम से कम चार अटैची लेकर यहाँ पधारे।
पंकज




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