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अनुगूँज १६: (अति)आदर्शवादी संस्कार सही या गलत?


आदर्शवादी संस्कार सही या गलत इस पर विचार करने से पहले यह निश्चीत कर लिया जाये की, आदर्श की परिभाषा क्या हो ?

आदर्श परिवर्तनशील है। आदर्श भी सामाजिक मान्यताओ परंपराओ की तरह काल, व्यक्ति , परिस्थीती और समाज के अनुरूप बदलता रहता है। जो कल आदर्श था, आवश्यक नही कि वह आज आदर्श हो। आवश्यक नही कि जो किसी एक व्यक्ति के लिये आदर्श हो, दुसरे के लिये आदर्श हो।

पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्म्द गौरी को २१ बार क्षमा किया था, यह व्यव्हार पृथ्वीराज चौहान के लिये उस समय की मान्यताओ के लिये आदर्श हो सकता है। लेकिन क्या आज यह आदर्श हम पाकिस्तान के लिये रख सकते है ? हमने पृथ्वीराज चौहान का हश्र देखा है, क्या आदर्श इतिहास से सीख लेकर परिवर्तित नही होगा ? यह परिवर्तन नही है, यह आदर्श का विकास है।

महाभारत और रामायण भारतीय जिवन और समाज के लिये एक आदर्श माने जाते हैं। शुर्पनखा ने लक्षमण से प्रणय निवेदन किया था, जिसका प्रत्युत्तर लक्ष्मण ने उसके नाक कान काट कर दिया था। जबकी उस समाज का आदर्श यह था कि कामातुर स्त्री की इच्छा का सम्मान किया जाना चाहिये। अब इस घटना से क्या साबित होता है ? प्रणय निवेदन के प्रत्युत्तर मे नाक कान काट्ना ,यह ना तो उस समय आदर्श हो सकता है था ना आज हो सकता है।

जुआ खेलना यह एक सामाजिक बुराई है ! पर एक क्षत्रिय जुवे का निमंत्रण अस्वीकार नही कर सकता (महाभारत मे युद्धीष्ठीर द्वारा निमंत्रण स्वीकार करना)। अब इन दोनो मे आदर्श किसे माना जाये ?
महाभारत को धर्मयुद्ध कहा जाता है। अब धर्मयुद्ध मे तो आदर्शो का पालन होना चाहिये। लेकिन कौरव पक्ष के किसी भी महारथी का वध जिस तरीके से किया गया , क्या वह आदर्श हो सकता है ? चाहे भिष्म हो जिनके लिये शिखंडी को सामने रख दिया गया, यहां तो भिष्म पितामह अपने आदर्श का शिकार हो गये। द्रोणाचार्य के लिये धर्मराज ने असत्य(कथीत अर्धसत्य) कहा, धर्मराज अपने आदर्श से डिग गये। कर्ण को निशस्त्र मारा गया जबकि क्षत्रिय निहत्थे पर शस्त्र नही उठाता, दुर्योधन को युध्द नियमो के विरूद्ध जांघ पर वार किया गया ! कहां गये पांडवो के आदर्श जो भगवान श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन मे लढ रहे थे? यहां पर परिस्थितियों के अनुकुल आदर्शो को ढाल दिया गया। कहने का तात्पर्य यही है कि जो जीवन मूल्य काल और परिस्थीतीयो के अनुसार ढल सके वही आदर्श है।

मर्यादा पुरूषोत्तम राम मर्यादा पुरूषोत्तम द्वारा एक धोबी द्वारा लाछंन लगाने पर पत्नी को वनवास देना आदर्श है ? क्या सीता की अग्नी परिक्षा एक आदर्श है ? शुद्र द्वारा तपस्या पर उसका वध एक आदर्श है ? ये सब तो मर्यादा पुरूषोत्तम राम का व्यवहार है !

बहुत हो गयी पौराणीक बाते, कुछ आज की बात कर ली जाये। आदर्श वादी संस्कार और जीवन मुल्यो को आज के परिपेक्ष मे देखें। आप कोई भी कार्य कर रहे हो और बाद मे आपको ग्लानी हो उस कार्य पर ! यह आप के मन पर आपके आदर्शो का संस्कार है, आपका आदर्श है। आपके लिये आदर्श वह है जिसको ना मानने पर जिस पर आपकी अंतरात्मा आपको धिक्कारे और आपको ग्लानी हो। लेकिन कोई जरूरी नही वह किसी और के लिये या किसी और परिस्थिति मे लागु हो।।

आदर्श किसी भी व्यक्ती के लिये एक जीवन मुल्य होता है और वह उन जीवन मुल्यो के लिये जीता है। किसी भी संस्कृति में अनेक आदर्श रहते हैं, लेकिन यदि कोई व्यक्ति किसी आदर्श को अपना लक्ष्य बनाता है तो उसे अन्य आदर्शों का परित्याग करना पड़ सकता है। आदर्श मूल्य है, और मूल्यों का मुख्य संवाहक संस्कृति होती है । किसी संस्कृति में परस्पर व्याघाती मूल्यों की उपस्थिति उसकी जीवन्तता का प्रतीक है ।

1 टिप्पणी » 
1। इस्वामी उवाच :
दिसम्बर 9, 2005 at 10:45 pm ·
आशीष,
मैने तो आपके पहले लेख से ले कर आपका चिट्ठा पढा है। आपके लेखन की धार हर लेख के साथ तेज हो रही है - बहुत सुँदर लिखा है। बधाई!

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