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आयुर्विज्ञान और गांधी दर्शन


पिछले सप्ताहांत को मैं अपने गृह नगर गोंदिया गया था, हमेशा की तरह द्वितीय श्रेणी शयनयान से। मेरे कुपे मे मेरे अलावा एक तमिळ परिवार था, मम्मी-पापा और एक १६-१७ साल की कन्या।

शाम के १० बजे रेल-यात्रा शुरू हुयी, मैं कमलेश्वर जी का उपन्यास “कितने पाकिस्तान” पढ रहा था। पढ़ते पढ़ते सो गया। सुबह जब मैं सो कर उठा, तब देखा कि वह लड़की कुछ पढ रही थी। मैने मुंह हाथ धोने के लिये चला गया। जब वापिस आया तो पाया कि उस लड़की और उसके माता पिता मे किसी बात पर बहस हो रही है। बहस तमिळ मे थी , मेरी समझ मे नही आ रहा था, लेकिन वे लोग गाँधीजी का नाम ले रहे थे। कुल मिलाकर मामला मेरी समझ से बाहर था।

कुछ समय बाद उसके पापा ने मुझसे पूछा कि ये रेल सेवाग्राम मे रूकेगी क्या ? मैने कहा तमिलनाडु एक्सप्रेस सेवाग्राम मे नही रूकती लेकिन कभी कभार असामान्य कारणों से रूक भी जाती है। तब उन्होने मुझे बताया कि उस लड़की का सेवाग्राम के महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज मे प्री मेडिकल टेस्ट है इसलिये वे यहां आयें है। अब एक बार बाते शुरू हुयी तो चलती गयीं।

इतने मे कन्या ने हाथ मे रखी पुस्तक पटक दी और अपनी मम्मी से कुछ कुनमुनाने लगी। उसकी मम्मी उसे कुछ समझा रही थी। मै थोड़ा असमंजस मे आ गया। उसके पापा ये भाँप गये,उन्होने मुझे बताया कि सेवाग्राम के प्री मेडिकल टेस्ट मे एक प्रश्न पत्र गाँधी दर्शन पर होता है जिसमे ४०% अंक प्राप्त करना अनिवार्य होता है। वह लड़की गांधी दर्शन जैसे नीरस विषय पढ़कर बोर हो रही थी !

मेरी समझ मे नही आया कि आयुर्विज्ञान और गांधी दर्शन का क्या संबंध है ? गांधी दर्शन पर परीक्षा पास करना और उसे जिवन मे अंगीकार करना अलग बाते है। इससे अच्छा तो यह होता कि प्रवेश के बाद आप एक विषय रख दो गांधी दर्शन पर ,लेकिन प्रवेश पात्रता के लिये गांधी दर्शन जानना आवश्यक हो मेरे पल्ले नही पढ रहा था।
लेकिन अब परीक्षा थी तो पढ़ना तो पड़ेगा ही !

मेरे पास एक आइडिया आया, मैने उस लड़की से कहा “तुम्हें इसे पढ़ना नीरस लग रहा है,कोई बात नही मैं पढ़ता हूं और तुम्हें सुनाता हूं।”

वो इसके लिये तैयार हो गयी। अब पढना एक चर्चा मे तब्दील हो गयी। मै पुस्तक पढ रहा था, और अपनी टिप्पणियाँ भी देते जा रहा था। उसके मम्मी पापा भी इसमे शामिल हो गये थे। पढायी की पढायी हो रही थी और मेरे लिये समय काटने का एक बेहतरीन ज़रिया भी हो गया था। इस मे ५ घंटे कैसे बीते पता नही चला और नागपुर आ गया।

मैं उसे परीक्षा मे सफलता की शुभकामना देते हुये चल दिया अगली ट्रेन के लिये !
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2 टिप्पणीयां “आयुर्विज्ञान और गांधी दर्शन” पर
वाह, अच्छा अनुभव बताया आपने। तो क्या यह आज़माया हुआ नुस्खा है कि नीरस विषय पर चर्चा आरम्भ कर दो तो वह रूचिकर बन जाता है? कई विषयों के बारे में यह सही हो सकता है पर कदाचित् गणित पर यह टोटका काम न करे।
Amit द्वारा दिनांक अप्रैल 21st, 2006

:
अपनी तो सारी रेलयात्रायें एकदम नीरस ही कटी..!!
एक काश हमारे कुपे में भी कोई कन्या - सुकन्या आती,
भाषा की दीवार होती तो हम गिरा देते…….!!!!
:
विजय वडनेरे द्वारा दिनांक अप्रैल 21st, 2006

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