१९९७-१९९८, संगणक अभियांत्रीकी का अंतिम वर्ष। इस समय तक हम डेनिस रिची के परम भक्त बन चुके थे, यशवंत कान्हेटकर हमारे दूसरे देवता थे । ‘सी’ कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा पर मेरा अच्छा खासा अधिकार हो गया था। मै इस भाषा का उपयोग सामान्य प्रोग्रामिंग के अतिरिक्त ,वायरस बनाने, टी एस आर(टर्मिनेट एंड स्टे रेसीडेन्ट प्रोग्राम), सिस्टम प्रोग्रामिंग के लिये भी करता था। यह वह दौर था जब कंप्यूटर प्रोग्रामिंग मेरे लिये एक दीवानगी बन चुकी थी, मैं गर्व से कहता था ‘कंप्यूटर’ मेरा पहला प्यार है।
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पिछली पोष्ट मे मैने कहा था:
दूसरे दिन मैने संगणक अभियांत्रीकी मे प्रवेश ले लिया और अपने विज्ञान महाविद्यालय को अलविदा कहा । इस दिन एक ऐसी घटना घटी जिसे मैं आज भी नही भुला पाया हूं। ये एक लंबा किस्सा है फिर कभी…।
ये चिठ्ठा वही किस्सा है….
ये पढने के बाद ये तो शर्तिया है कि आप लोग मुझे कोसना शुरू कर देंगे, कुछ गालीयां देंगे, हो सकता है कि कुछ खतरनाक सी टिप्पणियां भी आयें। वैसे मैं इस प्रतिक्रिया के लिये तैयार भी हुं ।
सन १९९४, उम्र लगभग १७ वर्ष । वही किशोरावस्था और युवावस्था …
सपने, हां सपने तो मैने खूब देखे है, बचपन से लेकर जवानी तक ! सपने देखना कब शुरू किया , याद नही, शायद होश संभालने के साथ ही, सपने देखना शुरू कर दिया था। सपने , खुली आंखों के सपने !
बचपन नंदन ,चंदामामा और इंद्रजाल कामिक्स पढ़ते हुये बीता। परिया, जादू की छडी, चमत्कारी शक्तियों और जादू की छडी से सराबोर वो कहानियां ! इन कहानियो के मायाजाल मे लिपटे सपने ! जो यथार्थ के धरातल पर असंभव थे, लेकिन बाल-मन उन्ही सपनों के मग्न रहता था। इसी दौरान दूर-दर्शन पर विक्रम बेताल और सिहांसन बत्तीस…
मैं एक घुमक्कड किस्म का व्यक्ति हूं, एक जगह पर रहना पसंद नही आता। यायावरी का ऐसा भूत सर पर सवार है कि तकरीबन हर सप्ताह कही ना कही चला जाता हूं। यायावरी भी ऐसी कि कभी रेल से , कभी बस से, कभी अपनी फटफटिया से । कुछ यात्राये मेरी पूर्व नियोजित होती है जो कि मै रेल से करता हूं लेकिन अधिकांश पूर्व नियोजित नही होती है।
मेरी यात्राये जो पूर्व नियोजित नही होती अच्छी खासी रोमांचक होती है। एन समय पर रेल आरक्षण मिल गया तो ठीक , नही मिला तो बस से, वह भी नही हुआ तो रेल के अनारक्षित डिब्ब…
आज का युग विज्ञापन और बाजार का है, इसे सभी मानेंगे. अस्पताल भी अब अपना विज्ञापन दे रहे है । अस्पतालो के कुछ विज्ञापन ऐसे भी हो सकते है :-
आईये आईये हमारे अस्पताल मे “बाय-पास” करवाईये। आपके द्वारा दो बायपास करवाने पर तिसरा मुफ्त ! बायपास के बाद यदि आप अपने संसमरण ना लिखने का वादा करे तो बिल मे १०% छूट।प्रतिस्पर्धी अस्पताल की स्कीम : आईये आईये , हमारे पास से अपना ईलाज करवायीये। अस्पताल मे बिताये दिन पर संस्मरण लिखने के लिये सात दिन की कार्यशाला मुफ्त मे ! आप लिख सकते हैं एक हृ…
“गलती से हमारे हत्थे फुरसतिया जी की डायरी का एक पन्ना लग गया । हमने बिना सेंसर किये हुये इस ज्यों का त्यों छाप दिया है!”
रोज़ सुबह भगवान का नाम लेना चाहिये ऐसा बुजुर्ग कहते है। मैं नास्तिक नही हूं लेकिन भगवान की याद किसी और कारण से आती है। भगवान ने हाथ पैर, कान नाक, आँख वगैरह अंग दिये जिसके लिये मैं उनका आभारी हूं । मनुष्य इन सभी का उपयोग(दुरुपयोग) कर खुद का जीवन ज्यादा से ज्यादा सुखी(मतलब आलसी) करने के लिये करता है। लेकिन भगवान ने दाढ़ी ये मनुष्य के मत्थे क्यो मढ़ दी है, स…
फटफटीया लिए हुये पूरे छह महीने गुज़र चुके हैं, लेकिन दिल की सबसे बड़ी तमन्ना अभी तक अधूरी है। कल हम हमेशा की तरह पिछली सीट पर अन्ना को बिठाये हुये कार्यालय से अपने दडबे की ओर जा रहे थे । रास्ता वही पुराना था, शोलींगनल्लुर से पुराने महाबलीपूरम मार्ग द्वारा एन आई एफ टी(राष्ट्रीय फैशन तकनीकी विद्यालय) के पास से होते हुये अपने दडबे अड्यार तक। रास्ता अच्छा नही है, गड्डो मे सडक ढूंढनी पड़ती है। लेकिन एन आई एफ टी के पास रास्ता खूबसूरत हो जाता है। अजी नही! गढ्ढे खत्म नही होते, वे तो…
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