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अथ श्री फटफटिया पूराण



फटफटीया लिए हुये पूरे छह महीने गुज़र चुके हैं, लेकिन दिल की सबसे बड़ी तमन्ना अभी तक अधूरी है। कल हम हमेशा की तरह पिछली सीट पर अन्ना को बिठाये हुये कार्यालय से अपने दडबे की ओर जा रहे थे । रास्ता वही पुराना था, शोलींगनल्लुर से पुराने महाबलीपूरम मार्ग द्वारा एन आई एफ टी(राष्ट्रीय फैशन तकनीकी विद्यालय) के पास से होते हुये अपने दडबे अड्यार तक। रास्ता अच्छा नही है, गड्डो मे सडक ढूंढनी पड़ती है। लेकिन एन आई एफ टी के पास रास्ता खूबसूरत हो जाता है। अजी नही! गढ्ढे खत्म नही होते, वे तो अपनी जगह ही रहते है लेकिन सड़कों पर एन आई एफ टी की खूबसूरती उतर आती है । कमर का दर्द आंखों के रास्ते दिल मे उतर आयी खूबसूरती की ठंडक से छूमंतर हो जाता है।

कल ऐसे ही हम अपने अलग मूड मे थे, धीरे धीरे चले जा रहे थे। इतने मे सामने जो नज़ारा हमने देखा, आंखों पर भरोसा नही हुआ। ऐसा लगा कि हम सपना देख रहे हैं। फटफटिया और धीमी हो गयी। इतने मे सामने से आ रहे भीमकाय ट्रक ने भोंपू बजाया, तब हमे जा कर विश्वास हुआ कि हम सपना नही देख रहे है, और जो कुछ हम देख रहे है वह माया नही है, यथार्थ है । सामने एक कन्या हमसे लिफ्ट लेने के लिये अंगूठा दिखा रही थी । हम खुश हुये, इच्छा हुयी की फटफटिया खड़ी कर पहले जोरो से बीच सडक मे ही भांगड़ा किया जाये और बाद मे कन्या को लिफ्ट दी जाये।

लेकिन हाय री हमारी बदकिस्मती, पिछली सीट पर अन्ना बैठा हुआ था। देर से ही कन्या की नजर अन्ना पर पडी और उसने अंगूठा नीचे कर लिया। अब इसमे उस लडकी का दोष नही है, अन्ना को उजाले मे देखने के लिये भी भरपूर रोशनी चाहिये होती है । वैसे मेरा पूरा इरादा तो था ही कि अन्ना को नीचे उतार कर उसे बिठा लेने का। लेकिन कन्या अगली फटफटीया को लिफ्ट के लिये अंगूठा दिखा रही थी। हम अपना माथा पीट रहे थे और अन्ना चंद्रकांता वाले क्रूरसिंह की तरह मुस्करा रहा था। यहां हमारा दिल जल रहा था और वो हमारे जले पर नमक छिड़क रहा था ।

अख्खी जिंदगी मे पहली बार किसी ने लिफ्ट मांगी थी, और काले कलुटे अन्ना के कारण ये मौका भी हाथ से जाता रहा !

खैर हम मुंह लटकाये हुये अपने रूम पर पहुंचे ! खा-पीकर (पानी) सो गये !

सपने मे नारदजी अवतरित हुये, पूछा “वत्स इतने दुखी क्यों लग रहे हो , अपने दुख का कारण कहो हम उसका निवारण करेंगे”

हमने अपनी सारी व्यथा कथा कह सुनाई। साथ मे ये भी जोड़ दिया कि पिछले छह महीनों मे नयी फटफटिया लेने के बावजुद किसी कन्या ने हमे लिफ्ट नही मांगी है !

नारदजी बोले ” हे मूढ बालक , सारी समस्या की जड़ तुम्हारी फटफटीया है, तुमने ऐसी फटफटीया ली है कि जिस पर कोई भी खूबसूरत कन्या बैठना पसंद नही करती है”

हम “महाराज आप यह क्या कह रहे है ! हमारी फटफटिया तो सबसे ज्यादा स्टाइलिश फटफटिया है ! पांच गियर वाली 180 सी सी की बजाज एवेन्जर है। जब हम इस पर निकलते है,तो लोग मुड़ मुड़ कर देखते है !”

नारद जी बोले “वत्स दिखावे पर मत जाओ, अपनी अक्ल लगाओ। हम तुम्हारे दुखों के निवारण के लिये फटफटिया पूराण सुनाते है!”

अथ श्री फटफटिया पूराण

फटफटिया यह एक यंत्र चालित द्विचक्री वाहन होता है ! इस वाहन का प्रयोग कलयुग मे अश्व या हाथी के स्थान पर किया जाता है। इस वाहन की महिमा अपरंपार है। अमरीका देश मे यह वाहन विलासीता का प्रतीक है, वहीं भारत देश मे यह मध्यमवर्ग का प्रमुख वाहन है। इस वाहन के प्रयोग के लिये लायसेंस रूपी पत्र की जरूरत होती है। यह आपको सरकारी कार्यालय मे कुछ पत्र पुष्प अर्पण करने के बाद मिल जाता है। यदि आपके कुटुंब मे कोई पुलिस मे या राजनीति मे है तब आप को इस पत्र की कोई आवश्यकता नही होती है।

फटफटिया वाहनो को भिन्न भिन्न श्रेणियों मे विभाजित किया जा सकता है। कुछ प्रमुख श्रेणीया इस प्रकार है:-

पारिवारिक फटफटिया : इस श्रेणी के वाहन पर पूर्ण परिवार के साथ यात्रा की जा सकती है। इस वाहन की सीट सपाट(समतल) होती है। वाहन चालक की पत्नी पिछली सीट पर अपने दोनो पैर वाहन के एक ओर कर गोद मे बच्चा लिये स्थान ग्रहण करती है। पेट्रोल की टंकी पर दूसरे बच्चे(बच्चों) को बिठाया जाता है। यह वाहन अत्यंत धीमी गति से चलाया जाता है। तेज़ गति से चलाने पर पारिवारिक शांति के भंग होने की सम्भावना होती है। यह भी संभव है कि इस वाहन को तेज़ चलाने से रात मे भोजन की प्राप्त ना हो। यह वाहन शादीशुदा श्रेणी के मानवों मे लोक प्रिय होते है । इस श्रेणी के वाहनो मे प्रमुख है, हीरो होण्डा के सी डी 100, डॊन, बजाज के सभी स्कूटर तथा सी टी 100 इत्यादि.

महिला मित्र (विक्रम बेताल ) फटफटिया : इस श्रेणी के वाहन की सीट वाहन चालक के लिये निची और पिछ्ली सीट पर उंची होती है। पिछली सीट पर बैठने वाला हमेशा सामने चालक पर झुका हुआ रहता है। इस श्रेणी के वाहन मे पिछली सीट पर वाहन के एक ओर पैर रख कर बैठना शोभनीय नही होता है, इसे पिछड़े पन की निशानी माना जाता है। इसके गतिरोधक तीव्र होते है, जिनका उपयोग वाहन रोकने के लिये कम, सवारीयों मे निकटता बढ़ाने के लिये ज्यादा किया जाता है। इस तरह के वाहनों की लोकप्रियता नयी पीढ़ी के लोगो मे होती है, कालेज छात्रो इसे ज्यादा पसंद करते है। इस श्रेणी के वाहनों मे प्रमुख है, बजाज पल्सर, हीरो होण्डा की एम्बीशन, ग्लैमर, करीझ्मा इत्यादि.

मस्तमौला फटफटिया: यह एक अलोकप्रिय श्रेणी का वाहन है। इसमे चालक की सीट और पिछली सीट एकदम अलग होती है।चालक और सवारी सामाजिक प्रेम भावना के विपरीत, एक दूसरे से अलग अलग आराम से बैठ सकते है। इस श्रेणी के वाहनो मे गतिअवरोधक के उपयोग से भी प्रेमभाव नही बढता है। यह वाहन तीव्र गति से चलाया जा सकता है, लेकिन वाहन ईंधन की खपत ज्यादा करने से परिवार और मित्रगण पैसा उड़ाने का आरोप लगाते है। इस श्रेणी के वाहनो मे प्रमुख है, बजाज एवेन्जर, बुलेट थण्डरबर्ड और यामहा एंटाइजर !

हे वत्स इस पुराण का श्रवण करने के पश्चात तुम्हें अपनी ग़लती का अहसास हो गया होगा। इतना कहकर नारद जी अंतर्धान हो गये।
अब हम सोच रहे है कि बजाज एवेन्जर बेचकर हीरो होण्डा की करीझ्मा लेंगे.
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6 टिप्पणीयां “अथ श्री फटफटिया पूराण” पर
“हम खुश हुये, इच्छा हुयी की फटफटिया खड़ी कर पहले जोरो से बिच सडक मे ही भांगड़ा किया जाये और बाद मे कन्या को लिफ्ट दी जाये।”
Excellent!  हीरो होन्डा स्लीक बननी बन्द हो गई क्या देस में?
ई-स्वामी द्वारा दिनांक मई 6th, 2006

अरे भाई अन्ना को कोसने के बजाय उसका धन्यवाद दो. यह तो नया तरीका निकाला है जेबकतरों ने, सुंदर लड़कियों को खड़ा कर देते हैं बीच सड़क पर तुम जैसे भोले भाले लड़कों की जेब काटने के लिए. वह तो भला हो अन्ना का जिसने तुम्हे बचा लिया. आगे से बिना अन्ना के फटफटिया मत चलाना क्योकि यह जान कर भी, किसी सुंदर कन्या को देखोगे तो यह बात भूल जाओगे. सुंदर कन्या के सामने दिमाग काम ठीक नहीं करता, और तुम फिर से यही गलती कर सकते हो.
सुनील द्वारा दिनांक मई 7th, 2006

लोगों की बातों में आये बिना अपने इरादे पर अमल करो! जो होगा देखा जायेगा।
अनूप शुक्ला द्वारा दिनांक मई 8th, 2006

सही राह है, गुजर जाओ.बाद की बाद मे.
समीर लाल द्वारा दिनांक मई 8th, 2006
आशीष भाई, ईमानदारी से कहूँ तो शादी कर लो भाई, पर उसके लिये किसी कन्या को पहले लिफ्ट देनी होगी। और उसके लिये अन्ना को कुछ दिन लेफ्ट-राइट करा दो ना।
e-shadow द्वारा दिनांक मई 9th, 2006

भई मैं आपकी बात से पूर्ण इत्तिफ़ाक नहीं रखता। कारण यह है कि मेरे पास तो “महिला मित्र फ़टफ़टिया” है पर फ़िर भी डेढ़ साल होने को आया, किसी कन्या ने लिफ़्ट नहीं दी(मतलब है नहीं दी)!! दूसरे, मैंने बहुत सी “पारिवारिक फ़टफ़टियाओं” तथा उससे भी निचले दर्जे की फ़टफ़टियाओं(कभी हीरो होन्डा की एस.एस. आई थी) पर खुशनसीबों की लॉटरी निकलते देखा है।
तो अंत पंत तो मैं यही कहूँगा जो कि आम भाषा में ऐसे टैम कहा जाता है, “खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान”!!
Amit द्वारा दिनांक मई 10th, 2006

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