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मेरी कल्लो बेगम


१९९७-१९९८, संगणक अभियांत्रीकी का अंतिम वर्ष। इस समय तक हम डेनिस रिची के परम भक्त बन चुके थे, यशवंत कान्हेटकर हमारे दूसरे देवता थे । ‘सी’ कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा पर मेरा अच्छा खासा अधिकार हो गया था। मै इस भाषा का उपयोग सामान्य प्रोग्रामिंग के अतिरिक्त ,वायरस बनाने, टी एस आर(टर्मिनेट एंड स्टे रेसीडेन्ट प्रोग्राम), सिस्टम प्रोग्रामिंग के लिये भी करता था। यह वह दौर था जब कंप्यूटर प्रोग्रामिंग मेरे लिये एक दीवानगी बन चुकी थी, मैं गर्व से कहता था ‘कंप्यूटर’ मेरा पहला प्यार है।

इन्ही दिनो मैं एप्टेक मे पार्ट टाईम नौकरी भी कर रहा था। मुझे शाम की दो बैचो को ‘सी’ पढानी होती थी। अब किस्मत कुछ ऐसी थी कि यहां भी दोनो बैचो मे कन्याओ का प्रतिशत ज्यादा था। दोनो बैच की अधिकांश कन्याये बी एस सी संगणक विज्ञान की छात्राये थी। सामान्यत: प्रोग्रामिंग पढाना एक कठिन कार्य होता है, यह एक ऐसी विधा है, जो पढायी नही जा सकती। ये खुद सीखनी होती है। हमारे पढ़ाने का अंदाज कुछ ऐसा था कि हम यहां भी लोकप्रिय हो गये थे। लोकप्रिय होने का एक कारण ये भी था कि मैं प्रोग्रामिंग के हर पहलू को माईक्रोप्रोसेसर के स्तर तक ले जाकर समझा देता था।

एप्टेक की प्रयोगशाला मे एक ही काला सफेद मानीटर वाला कंप्यूटर था जिस पर सामान्यतः कोई नही बैठता था। मै उसी पर काम करता था। मेरे उल्टे सीधे प्रोग्राम वही पर चलते थे। मैने इस कंप्यूटर का नाम ‘कल्लो बेग़म’ दिया हुआ था। सभी को मेरे पहले प्यार और ‘कल्लो बेग़म’ के बारे मे मालूम था।

मेर छात्रो मे एक कन्या काफी तेज़ थी, उसे भी 'सी' मे सिस्टम प्रोग्रामिंग अच्छी लगती थी। वह हमेशा मेरे प्रोग्रामों के साथ छेड़छाड़ करती रहती थी। मैं उसे मना नही करता था, क्योंकि मैने भी इसी तरह से सीखा था। उसने इस तरह से ‘सी’ पर अच्छा खासा अधिकार कर लिया था। जब मैं प्रोग्रामिंग करता रहता था, तो वह भी साथ मे बैठकर देखते रहती थी कि मैं क्या कर रहा हूं। उसे जब भी समय मिलता था, आ जाती थी और खोद खोद कर पूछते रहती थी। मुझे उसके सवालों का जवाब देना अच्छा लगता था क्योंकि कभी कभी उसके जवाबों के लिए मुझे कॉलेज के ग्रंथालय मे घंटो बैठना होता था।

एक दिन उसने मुझसे कहा
"आप झूठ बोलते हो, आपको ‘कल्लो बेग़म’ से प्यार नही है !”
मैं चकराया
“किसने कहा ? कल्लो बेग़म के बिना मेरी ज़िदग़ी अधूरी है!”
“तो आपका पासवर्ड “Ihatekallo” क्यों है ?”
उस कन्या ने मेरे एक टी एस आर (जो कीबोर्ड की हर कुंजी को एक फाइल मे रीकार्ड करता था), का दुरुपयोग कर मेरा ही पासवर्ड हैक कर लिया था !

मैं उससे काफी प्रभावित हुआ था। लेकिन मेरी उस कन्या से नज़दीकी का कुछ लोगो ने(मेरे एपटेक के सहयोगियों) ने कुछ और मतलब निकाल लिया था।

इस दौरान मेरा जुलाई आ गया था, मेरी बी. ई. पूरी हो गयी थी। मेरे पास एक नौकरी का प्रस्ताव था और मुझे १ अगस्त को अपनी नौकरी के लिये मुंबई जाना था। ये सभी को मालुम हो गया था। जुलाई के पहले सप्ताह मे ‘गुरू पुर्णीमा’ थी। उस कन्या ने मुझे गुरू दक्षिणा मे एक पूस्तक दी थी जिसमे स्वामी विवेकानंद के भाषणो का संग्रह था।

एक दिन मैं उन लोगो को पढाकर कर बाहर आया तब शुभांगी(मेरी सहयोगी) ने मुझे एक बधाई पत्र ला कर दिया और कहा कि ये स्वागत कक्ष मे रखा था।

मैने बधाई पत्र खोला । लिखा था
I love you !
Miss. You Know very Well

मैं चकराया।
“ये कौन है?” 
शुभांगी ने कहा
 ” इतने भोले मत बनो, आपको सब मालूम है !”
“अरे नही यार मै ऐसे भी एप्टेक मे दिन मे सिर्फ २ घंटे रहता हूं, वह भी पढ़ाते रहता हूं !”
” लेकिन कुछ ऐसे भी लोग है जो उन दो घंटो मे आपके आसपास ही रहते है|”
बाकी जनता भी उसकी हां मे हां मिलाने लगी। मै उन लोगो का इशारा समझ रहा था। मै उस कन्या को जानता था, वो ‘बोल्ड’ लड़की थी। उसे कुछ कहना होता तो शर्तिया वह सीधे कहती। वह कम से कम “Miss You Know very Well” का उपयोग तो नही करती। उसके पास एक तरिका और भी था, मेरे प्रोग्राम ! वह उनमें छेड़छाड़ तो करती ही थी , वह उसमे अपना संदेश छोड़ सकती थी।

मैने सोचा “छोडो यार, जो होगा सामने आयेगा!”

दूसरे दिन शाम को वो लड़की आयी। वो सामान्य थी। हमेशा की तरह वो शुरू हो गयी अपने प्रश्नों की बौछार लिये। मेरा जो बचा खुचा शक था , वो भी चला गया। मैं थोड़ा असामान्य था जो उसने भांप लिया ।
उसने पूछा
“क्या हुआ सर, कल्लो बेगम नाराज़ है क्या ?”
मैने कहा
 “हां, सोच रहा हूं ,मेरे जाने के बाद उसका क्या होगा ?”
” सर उसकी चिंता छोडो, भौजाई और बच्चों (मेरे प्रोग्रामों)की देखभाल मैं करते रहूँगी”
मैने चैन की सांस ली, ये कारनामा(बधाई पत्र) किसी और का है ! इस का तो नही वर्ना वह “भौजाई” तो नही कहती। बाद मे लोगो ने मुझे उकसाने की कोशिश भी की जिसपर मैने ध्यान नही दिया !

३० जुलाई मेरा एप्टेक मे आखिरी दिन, शाम को मैने एप्टेक के सहयोगियों को पार्टी दी । बातों ही बातों मे मैने किसी बात पर कहा
“अभी तक ऐसी कोई कन्या मेरे आसपास नही फटकी है,जो मुझे उल्लु बना सके!”
सोहेल काजी उवाच
“अरे जाने दो ना, शुभांगी ने तो तुम्हे पिछले महीने भर से उल्लु बना रखा है !”
मेरा ट्युबलाईट जला! मैं शुभांगी की ओर मुडा
“तो ये बधाई पत्र तुम ने लिखा था ?”
वो सिर्फ मुस्करायी ! अब मेरा मुंडा(खोपडा) खिसका ! लेकिन मैने धैर्य नही खोया
“अरे यार तुमने मेरी मौज़ लेनी थी वो तो ठीक है, लेकिन तुम लोग उस लड़की की ओर इशारे क्यो कर रहे थे ? मैने उससे कुछ कह दिया होता तो ?”
“हम वही तो चाहते थे कि तुम उससे कुछ कहो ! वो तुम्हे पसंद करती है, तुम तो खैर पत्थर दिल हो। तुम तो कुछ करोगे नही। तो सोचा हम ही कुछ मदद कर दें !”
मैने अपना माथा पिट लिया, अब इन्हे कौन समझाये कि एक लडके और लडकी मे निकटता का मतलब प्रेम नही होता । इच्छा तो हो रही थी कि शुभांगी को एक थप्पड रसीद कर दूं। लेकिन मन मार लिया !

मेरी छात्र कन्या HUGES मे है, उसके पास एक Dell का काला कम्प्युटर है, जिसका की बोर्ड, माउस ,मानीटर सब कुछ काला है। वह उसे ‘कल्लो बेगम’ के नाम से बुलाती है। मेरे पास हर ५ सितंबर शिक्षक दिवस पर उसका बधाई पत्र आता है।

हमारे अध्यापन के दौरान के हमारे कुछ सुभाषित :
१.चलो कंप्युटर देव को जोड घटाना सीखाया जाये !
२.पोईन्टर एक प्रेमिका की तरह होता है। प्रेमिका के साथ यदि कुछ भी होता है तो उसका असर प्रेमी पर होता है।
३.संगणक प्रोग्रामर पास्कल की खूबसूरती से प्यार कर बैठते है लेकिन शादी के लिये ‘सी’ जैसे अख्खड का चयन करते है।(यशवंत कान्हेटकर से चुराया हुआ)।
४.सी++, सी के प्रवाह को कक्षा की चारदिवारी मे बांधने का प्रयास है ! एक अनियंत्रित प्रवाह से नियंत्रीत प्रवाह अच्छा होता है ।
५.सी मे पाईंटर को गुढ रहस्य को ना जाने बगैर प्रोग्रामींग करवाना , बंदर के हाथ मे उस्तरा थमाना है।
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7 टिप्पणीयां “मेरी कल्लो बेगम” पर
मज़ा आया कल्लो बेगम से परिचय पाकर
pratyaksha द्वारा दिनांक मई 26th, 2006

आषीश, तुम कुछ भी कहो, तुम्हारे बात लिखने से तो अवश्य लगता है कि शायद छोटी सी आशा थी तुम्हारे मन में भी जो किसी बात से होठों तक न आ पायी?
सुनील द्वारा दिनांक मई 26th, 2006

आषीश, तुम कुछ भी कहो, तुम्हारे बात लिखने से तो अवश्य लगता है कि शायद छोटी सी आशा थी तुम्हारे मन में भी जो किसी बात से होठों तक न आ पायी?
आपकी बात में दम तो है सुनील जी।  
Amit द्वारा दिनांक मई 26th, 2006

कल्लो बेगम के बारे में जान कर खूशी हुई।
SHUAIB द्वारा दिनांक मई 26th, 2006

अमित जी, सुनील जी, बात में दम है। आशीष जी, इस बार थप्पड पर नियंत्रण के लिये बधाई।
e-shadow द्वारा दिनांक मई 27th, 2006

हमेशा की तरह लाजवाब संस्मरण !
अनूप शुक्ला द्वारा दिनांक मई 28th, 2006

भाई, तुम कभी कोई ऐसी कहानी भी लिखोगे जिसमें तुम किसी लड़की पर आशिक हुए, कुछ प्यार का इज़हार किया आदि?
वैसे मुझे लगता है कि उस समय भी आपकी ज़िंदगी में कोई लड़की थी। वर्ना किसी लड़की के साथ सामान्य रह पाना कम से कम मेरे बस की बात तो नहीं।
बाकी सब अच्छा है।
रजनीश मंगला द्वारा दिनांक जून 5th, 2006

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2 टिप्पणियाँ

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