Looking For Anything Specific?

ads header

प्रगति का मार्ग


हमारा देश हमेशा प्रगति के मार्ग पर रहता है, इसका मूल कारण यह है कि मार्ग पर हमेशा कार्य चलते रहता है। मार्ग पर कार्य रूकने का मतलब होता है प्रगति का मार्ग अवरुद्ध हो गया है। हर तरफ पहले गहरे गड्डे खोदना, उसमे से अलग अलग तरह के पाईप निकाल कर रख देना। कितने ही तरह की पाईप-लाईन होती है पीने के पानी की, गटर लाईन(ये दोनो पास पास ही होती है, आवश्यकता होने पर एक दूसरे की मदद करती है),टेलीफ़ोन की, बिजली की, गैस की,टाटा की, रिलायंस की… वगैरह वगैरह। इन सभी पाईपलाईने किसी हसीना की चोटी के बालो की तरह एक दूसरे से गुंथी हुयी रहती है। ये गुंथन वे कैसे सुलझाते है, यह प्रश्न मुझसे सुलझाते नही बनेगा। हां तो मै कह रहा था कि रास्ते खोदकर, बाजु मे मिट्टी के पहाड खड़े कर दिये जाते है। अभी स्कूलों मे छुट्टियाँ है। बच्चों के लिये हर जगह शिविर लगे हुये है। रास्ते के किनारे ये मिट्टी के पहाडो का उपयोग पर्वतारोहण के शिवीर के लिये किया जा सकता है। समय भी बचेगा और पैसा भी।

पहले रास्तो के किनारे गढ्ढे खोद कर दुर्घटना से बचने बांस से एक कठघरा बना दिया जाता था। लेकिन इस कठघरों से टकरा कर दुर्घटना ज्यादा होती थी। अब कठघरा ना होने के बावजूद दुर्घटना कम हो गयी है। इसका कारण यह है कि कठघरा ना होने से लोग पूरी सावधानी से चलते है ! रास्ते पर एक समय मे अनेक तरह के कार्य चलते रहते है, साथ मे यातायात भी चलते रहता है। इस कारण अनेक बाधाओं का निर्माण होता है। इन बाधाओ(गढ्ढो और मिट्टी के ढेरो) के बीच से चलना एक चमत्कार है। यदि इस जगह बाधा दौड की तैयारी करवायी जाये तो २००८ मे बीजिंग ओलंपिक का स्वर्ण पदक हमारी झोली मे ही आयेगा। स्वर्ण इतिहास लिखने की यह एक स्वर्ण संधि है यह !

पहले छोटे मोटे कारणो से “रास्ता रोको” आयोजित होता था,पानी के जैसे क्षुद्र कारणो पर भी ! उससे पहले पानी के मुद्दे पर नलो पर सिर्फ झगडे हुआ करते थे। इस ‘रास्ता रोको’ आंदोलनो से आंदोलनकारीयो को छोड़कर सभी को परेशानी हुआ करती थी। अब ये आंदोलन अपने आप बंद हो गये है। कारण यह है कि रास्तो पर चल रहे कार्य के से हर तरफ ट्रैफिक जाम है। सभी वाहन पहले से ही रुके हुये है,अब रास्ता रोक कर क्या करे ?

कोई कहेगा कि ऐसे ट्रैफिक जाम से देश का कीमती समय, शक्ति और पैसा व्यर्थ जाता है। लेकिन इन लोगो यह समझ मे नही आता कि सारी तरफ यातायात रूक जाने से पेटोल की कितनी बचत होती है। कितनी विदेशी मुद्रा बचतीं है। “पेट्रोल की बचत यानी पेट्रोल का निर्माण” ! इस तरह से हम पेट्रोल का निर्माण करते रहे तो एक दिन ऐसा आयेगा की हम अरब राष्ट्रों को पेट्रोल बेचेंगे! वैसे भी हमारी शक्ति व्यर्थ नही जाती है। ट्रैफिक मे फंसकर एक जगह बैठे होने से शक्ति कैसे बर्बाद होगी ? उल्टे लोग सुबह सुबह जागींग कर अपनी शक्ति(कैलरी) बर्बाद करते है !

लोगबाग आजकल काफी सोना(स्वर्ण) ख़रीद रहे हैं ,सोने की किमंते आसमान छूने के बाद भी। इसका असली कारण ट्रैफिक जाम मे छुपा है। इस ट्रैफिक के कारण चोरो की संख्या मे कमी आयी है, खास कर सोने की चेन या मंगलसुत्र खींच के भाग जानेवालों की। बेचारा चोर घट्ना स्थल पर ही माल के साथ बरामद हो जाता है। जिस ट्रैफिक मे हम ढंग से चल नही सकते,चोर भागेगा कैसे ? चोरो और चोरी मे कमी का श्रेय पुलिस का नही ट्रैफीक जाम का है।

पकडे गये चोरो का या अपराधियों का मुंह खुलवाने पुलिस ‘थर्ड डिग्री’ का प्रयोग करती है।(शिक्षण मे ही नही, नौकरी मे, कहीं भी थर्ड डिग्री का ही बोलबाला है !) पुलिस अब थर्ड डिग्री की बजाये अपराधी को ट्रैफिक जाम मे फंसा देते है, बेचारा परेशान हो कर अपराध कबूल कर लेता है।

कभी कभी ऐसे ट्रैफिक जाम मे रूग्णवाहीनी फंस जाती है, जाने के लिये जगह नही होती। मरीज उपर जाने के मार्ग पर होता हओ। इस परिस्थिती मे रूग्णवाहिनी शववाहिनी मे रूपांतरीत ना हो ऐसी मनोभावना होती है। लेकिन नियति के आगे किसकी चलती है !

कुछ जगह पर रास्ता चौडे करने के लिये जगह ही नही बची है,उड्डान पूल बनाना मजबूरी है। लताजी कहती हैं कि इससे उन्हे परेशानी होगी। अब इसमे गलत क्या है ? लोगो ने खिडकी के किनारे गाडी खडी कर आटोग्राफ मांगना शूरू कर दिया तो ? उड्डान पूल पर ही ट्रफिक जाम हो जायेगा ! क्या मतलब रहा पैसे बरबाद कर पूल बनाने का ?

देखा गया है कि शापिंग माल के आसपास ट्रैफिक जाम ज्यादा होता है। वैसे ये नजारा फुटपाथ की दूकानो के बाहर ‘माल′ के कारण भी पैदा होता है। लेकिम ट्रैफिक जाम और शापिंग मे एक अटूट रिश्ता है।आप अपनी सीट पर डमी बिठाकर शान से शापिंग कर के वापिस आ सकते है।

आस्तिको की मदत के लिये लोगो ने फुटफाथ पर छोटे छोटे मंदिर बना दिये है। लोग रास्ते मे चप्पलो जूते सहित खडे खडे पूरे मन से भगवान के दर्शन कर सकते है। पैरो मे चप्पल/जूते होने से मन भगवान प्रतिमा की तरफ ही होता है,चप्पल/जूते चोरी होने का डर जो नही होता है।

सुना है कि रास्ते चौडे हो रहे है। इसके लिये सडक किनारे के पेड काटे जायेंगे। भविष्य मे स्वच्छ हवा की जरूरत महसूस होने पर एक और पाईप लाईन डाल दी जायेगी। रास्ते चौडे होंगे, नये वाहनो के लिये भरपूर जगह उपलब्ध होगी। ये मालूम होने पर कार कंपनीयां अपना उत्पादन बढा रही हैं। बाजार मे कारो के नये नये माडेल आये हैं। अनेक बैंक लोगो के पीछे हाथ धोकर पिछे लगे है। आप कार लिजिये, हम कर्ज देते है !

कल मुझे एक बैंक से फोन आया। एक कर्णप्रिय मधूर आवाज “मै लेनादेना बैंक से बोल रही हूं”
हम : “हां जी कहिये !”
उसने प्रश्न पूछा “आपके पास गाडी है ?”
हम : ” हांजी है”
वह : “कौनसी गाडी है ?”(जैसे कह रही हो तुम्हारे पास मारूती या होंडा हो तो उसे बेच डालिये और रोल्स रायस , बेण्टले, बी एम डब्ल्यु या मर्सडीज खरीदीये। हम कर्ज देते है।)
हमने उत्तर दिया “बैलगाडी, अभी तो मैने उसे अपने गांव मे ही रखी है।”
उत्तर मे आवाज आयी “भडाक” !

हमारी समझ मे आज तक ये नही आया कि कन्याये फोन को इतनी बेदर्दी से क्यों पटकती है !
****************************************************************
5 टिप्पणीयां “प्रगति का मार्ग” पर

अरे यार क्या लिखते हो माउसतोड़ के! खासकर ये पढ़कर-
पुलिस अब थर्ड डिग्री की बजाये अपराधी को ट्रैफिक जाम मे फंसा देते है, बेचारा परेशान हो कर अपराध कबूल कर लेता है।
अनूप शुक्ला द्वारा दिनांक जून 9th, 2006

…पिछले कमेंट के आगे
बहुत मजा आया।
अनूप शुक्ला द्वारा दिनांक जून 9th, 2006

हकीकत बयान की है आपने।
e-shadow द्वारा दिनांक जून 10th, 2006

ही ही ही, सही लिखे हो आशीष भाई!!
Amit द्वारा दिनांक जून 10th, 2006

[…] क्या आशीष खाली-पीली चिंता कर रहे हैं? सुना है कि रास्ते चौडे[यथा] हो रहे है[यथा]। इसके लिये सडक[यथा] किनारे के पेड[यथा] काटे जायेंगे। भविष्य मे स्वच्छ हवा की जरूरत महसूस होने पर एक और पाईप लाईन डाल दी जायेगी। रास्ते चौडे[यथा] होंगे, नये वाहनो[यथा] के लिये भरपूर जगह उपलब्ध होगी। […]
DesiPundit » Archives » प्रगति पर उतारू भारत द्वारा दिनांक जून 11th, 2006

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ