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हम , वो और बरसात



एक शाम मैं अपने रूम पर अकेला ही था। बादल घिरे हुये थे। मौसम ठंडा हो गया था। अंधेरा छा रहा था। देखते देखते ही बुंदाबांदी शुरू हो गयी। बालकनी पर खडा बारिश की भटककर आती हुये बुंदो का आनंद लेते हुये रीम झीम बारिश के निनाद का आनंद ले रहा था।

कुछ देर बाद ऐसे ही टीवी चालू किया हिमेश बाबू नाक दबा कर गा रहा था
“एक बार आजा आजा.. झलक दिखला जा……"
गुस्से मे आकर टी वी बंद कर दिया और आकाशवाणी की शरण ली…
विविध-भारती के क्या कहने….. सुभा मुदगल गा रही थी…..
“अब के सावन ऐसे बरसे……”
पूरा मुड़ हो गया बारिश मे भिगते हुये झुमने का… अपना तो ऐसा है कि मन हुआ नही कि शुरू भी जाते है …सामने के मकान वाले अंकल-आंटी मुझे घुर घुर कर देख रहे थे… क्या लड़का है.. अभी तक बचपना नही गया….बारिश मे भीग रहा है…

इतने मे एक मधुर आवाज़ आयी
“कोई घर पर है ?”
हमने रेडियो को घुरा… शुभा मुदगल की मस्ती भरी आवाज़ के बीच मे ये मधुर आवाज़ कंहा से आयी… हमने सोचा की अपने कान बज रहे होंगे….इतने मे दरवाज़े की घंटी के साथ आवाज़ भी आयी
“कोई घर पर है ?”
हमने दरवाजे पर जाकर देखा और देखते रह गये। अहाहा ! बारिश मे भीगा हुआ एक खूबसूरत शिल्प कंधे पर एक बैग लटकाये हुये खड़ा था।
“घर मे कोई है क्या ?” 
आवाज़ से हमारी समाधी भंग हुयी।

हमने कहा
“आईये आईये, आप भींग क्यो रही है ? अंदर आईये ?”
मोहतरमा के बैठने के लिये हमने कुर्सी सरकाई। पूछा
“आप काफी भींग गयी है, टावेल ला दूं“।
गर्दन मे हल्की सी जुंबीश हुयी और हमने आदेश का पालन किया। टावेल प्रदान किया। वह अपने केशराशी को सुखा रही थी और हम अपनी आंखों को ठंडक प्रदान कर रहे थे।

हम क्या कहे कुछ सुझ नही रहा था और उसकी बड-बड चालू थी
“आज अचानक बारिश के कारण मुसीबत हो गयी. वो तो गनीमत थी की आपका दरवाजा खुला था…..”
ऐसे मौसम मे हम उसे चाय के एक प्याले के लिये पूछ लेते तो क्या बात होती लेकिन हाय री किस्मत… रूम मे चाय की पत्ती हमेशा की तरह नदारद थी…शक्कर का डिब्बा हमने खोलकर नही देखा…।

उसे अपने बालो को सुखाते देखकर हमारी इच्छा हो रही थी कि ऐसी ही बारीश होती रहे और हम गाते रहें “इक लडकी भीगी भागी सी…..“। इतने मे बारीश तेज हो गयी, वो एकदम से घबरा गयी। उसके बालों से एक पाने की बूंद गालो पर बह कर मोती के समान लग रही थी।

मैं क्या करता हूं, कहां काम करता हूं यह सब पूछते हुये उसने अपना बैग खोलना शुरू किया। उसने बैग से चाकलेट और बिस्कुट निकाले और मेरे हाथ मे रखे। मुझे लगा कि इस कन्या को भूख लगी होगी, काश मेरे रूम पर गैस होती… कम से कम इसे एक आमलेट तो खीला देता…।

ये क्या इसका बैग तो भानुमति का पिटारा है.. साबुन निकाल रही है…. मेरे रूम पर स्नान भी करेगी क्या ?
ब्रश भी निकाल लिया.. अरे बिस्कुट , पाउडर, कंघी भी….. अरे ये तो सेल्स गर्ल है !

अब सुंदर कन्या कुछ बेचे और हम ना खरीदे ऐसे सन्यासी तो हम है नही। वो एक एक सामान निकाल रही थी, हम हां हां कहते हुये रखते जा रहे थे। अंत मे उसके पास उपलब्ध हर चिज का एक एक सामान हमने खरिद लिया। लग रहा था कि उसके पास और भी चिजें होती। वह जब एक एक सामान हमारे हाथों मे थमा रही थी, उसके स्पर्श से हमारा सारा शरीर रोमांच से कांप जा रहा था!

अरे ,ये क्या बारिश रूक गयी, उन्होने बिल नुमा बिजली हमारे सामने चमकायी। पूरे ५०० रूपये की ख़रीददारी हम कर चुके थे। हमने अपनी जेब टटोली, जेब मे कुल जमा ३०० रूपये ही निकले। पूरी इज्जत का भाजीपाला हो गया। लेकिन कन्या समझदार निकली, कहा
“कोई बात नही कल आकर बाकी पैसे ले जाउंगी…“।
हम भी खुश , चलो कल भी आयेगी।

बाहर हल्की बुंदा बांदी जारी थी। अबतक बारिश से घबरानेवाला भीगा हुआ शिल्प फिर से बारिश मे भीगने जा रहा था। काश मेरे पास छाता होता, कम से कम उसे बस स्टैंड तक छोड आता। एक छाते के निचे….”प्यार हुआ ईकरार हुआ ….”

आज फिर बारिश हो रही है, वही रूम है, वही बालकनी है और वही मैं हूं… मुझे फिर इंतजार है उसका… मुझे चिढ हो रही है बारिश से…

जिंदगी भर नही भुलेगी वो बरसात की रात।
एक अंजान हसीना से मुलाकात की रात।

ना जी ना मुझे उससे फिर से मिलना नही है, उससे उसके बकाया पैसे भी नही देने है….मुझे तो उससे अपने ३०० रूपये वापिस लेने है। चूना लगा गयी है। उसके हुआ साबुन से झाग नही आता है, बिस्कुट तो पडोस का टामी भी नही खाता, पाउडर लगाने पर लोग पुछते है, आज नहाकर नही आया क्या ? अब बाकी चीजों की क्या कहुं…..

जिंदगी भर नही भुलेगी वो बरसात की रात।
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13 टिप्पणीयां “हम , वो और बरसात” पर
आपकी किस्सागोई अच्छी लगी। आपके नक्षत्र बताते हैं कि आपको कन्याओं से बचकर रहना चाहिये।
ई-छाया द्वारा दिनांक अगस्त 24th, 2006

वाह जी वाह, आपकी तो बल्ले-बल्ले हो गई जी!! दिन दहाड़े, बढ़िया बरसात में आपका तो “काम” हो गया!!  
Amit द्वारा दिनांक अगस्त 24th, 2006

क्या बात है? आपके अँदा बदल गये। धाँसू लिखा है। अच्छी लगी यह आपबीती।
अतुल द्वारा दिनांक अगस्त 24th, 2006

बहुत बढ़ियां अंदाज है किस्सागोही का. मजा आ गया आप का बरसाती विवरण पढ़कर.
समीर लाल द्वारा दिनांक अगस्त 24th, 2006

ये लुटने का भी सुख सबको कहाँ मिलता है?
अनूप शुक्ला द्वारा दिनांक अगस्त 24th, 2006

एकाध ऐसे झटकों से घबडाना नहीं चाहिये । प्रयास जारी रखें । सफलता अवश्य मिलेगी ।
pratyaksha द्वारा दिनांक अगस्त 24th, 2006

अन्य सेल्स गर्ल को अब तक आपकी दरियादिली की खबर लग गई होगी,शीघ्र ही आप के दर पर कोई और आने वाली होगी। उसके लिए हमारी शुभकामनाएं।
ratna द्वारा दिनांक अगस्त 24th, 2006

वाह वाह क्या मज़ेदार किस्सा है। मज़ा आया पढ़ के। वैसे कौन सी कम्पनी थी जो घटिया साबुन से ले कर घटिया चॉकलेट तक सब बनाती है  …बता दीजिये तो बच के रहें।
Nidhi द्वारा दिनांक अगस्त 24th, 2006

मजेदार वाकया सुनाया आपने भी !
मनीष द्वारा दिनांक अगस्त 24th, 2006

कहानी पुरी फ़िल्मी है.
विजय वडनेरे द्वारा दिनांक अगस्त 24th, 2006

मजेदार किस्से का मजेदार विवरणॅहै.
rachana द्वारा दिनांक अगस्त 24th, 2006

***अब सुंदर कन्या कुछ बेचे और हम ना खरीदे ऐसे सन्यासी तो हम है नही।
मस्त लिखा है
अगली बार फिर से बारिश में भीगने का इरादा नही लगता, एक छोटी सी बात को क्या मजेदार शब्दों में पिरोया मजा आ गया।
यार एक बात बताओ, तुम्हारा प्रोवाइडर कौन है, १०० में से ९० बार आने पर पेज नॉट फाउंड का पेज नजर आता है।
Tarun द्वारा दिनांक अगस्त 25th, 2006

Ashish, hamesha ki tarah hansaya hai tumne…
मानोशी द्वारा दिनांक अगस्त 25th, 2006

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7 टिप्पणियाँ

travel ufo ने कहा…
ं आपका ब्‍लाग सुंदर है और आपका चिठठा संकलक भी मुझे जानकारी नही कि आपके चिठठा संकलक में अपना ब्‍लाग कैसे शामिल करें मेरा पता है www.onetourist.blogspot.in
धन्‍यवाद
300 रूपये में इतनी बढ़िया पोस्ट और वो मस्ती!! सौदा बुरा नहीं है। :)
कभी-कभी दिल के हाथों जेब का नुकसान हो ही जाता है...
Unknown ने कहा…
क्या सोचे थे भइया?
दीप्ति नवल आएंगी?
चमको बेचेंगी?