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ग्रंथो में लिखी ऊटपटांग बातों को सही ठहराने के तर्क

  1. आपने तथ्य को संदर्भ से हटकर प्रस्तुत किया है, उस कथन के पहले के दो अंश और बाद के दो अंशों को देखें तो अर्थ कुछ और बनता है।
  2. इस कथन में इस शब्द का अर्थ "अलाँ" नही "फ़लाँ" है, इस संदर्भ में अलाँ शब्द का प्रचलित अर्थ का प्रयोग सही नही है। 
  3. यह गुढ रहस्य वाला ग्रंथ है, इस वाक्य का अर्थ समझने आपको उसके संकेतों को समझना होगा, इन संकेतों को समझने आपको, अलाँ, फ़लाँ और टलाँ ग्रंथ पढ़ना होगा।
  4. आपने इस कथन का अर्थ अलाँ की टिका से लिया है आपको इसे फ़लाँ की टिका से पढ़ना चाहिये।
  5. आप पूर्वाग्रह से ग्रस्त है, इसलिये इस कथन को समझ नहीं पा रहे है, आप को इस कथन का सही अर्थ समझने पूर्वाग्रह से मुक्त होना होगा।
  6. आप पर पश्चिमी संस्कृति/शिक्षा पद्धति/मैकाले का प्रभाव है, जिससे आप हीन भावना से ग्रस्त है , जिससे आप इस कथन का सही अर्थ नहीं पा रहे है।
  7. आपको अपनी प्राचीन परंपराओं/ग्रंथो पर गर्व होना चाहिये, उल्टे आप उस पर प्रश्न उठा रहे है? शर्म आना चाहिये आपको!
  8. इस कथन की सही व्याख्या फ़लाँ ग्रंथ में कि गयी है और वह ग्रंथ दुर्लभ है। वह ग्रंथ फ़लाँ के पास था लेकिन उनकी मृत्यु के पश्चात लुप्त हो गया है।
  9. इस ग्रँथ में आक्रमणकारींयो ने मिलावट कर दी है, यह कथन मूल ग्रंथ का भाग नहीं है, इसे बाद में जोड़ा गया है।
  10. आपने इस ग्रंथ की आलोचना कर दी है लेकिन फला धर्म के टलाँँ ग्रंथ की आलोचना करने की हिम्मत नहीं है आपके पास!
  11. प्राचीन ग्रंथो की असली पांडुलिपि अब उपलब्ध नही है, इसे अंग्रेज/जर्मन/फ्रांसीसी/नासा ......... वाले ले गये है और इन्हे पढ़ पढ़ कर नये आविष्कार कर रहे है।
  12. आप सेक्युलर/सिक-यु-लायर/शेखुलर/कमिनिस्ट ..... ..... विचारधारा से ग्रस्त मनोरोगी है।

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