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दीवाली : साफ सफाई और रंगाई पुताई

 

दीपावली आ रही है। हम घर पेंट करने में जुटे हुए है। इसके पहले चरण में हमने छत पर डैम्प प्रूफ पेंट किया था।


दूसरे चरण में दीवारों पर से कुछ जगह जहाँ दरारें आई थी, पेंट की पपड़ी बन गई थी, उन जगहों को खरोंच कर साफ किया। पुट्टी लगाई और समतल करने घिसाई की।


तीसरे चरण में सारी छतों पर सफेद पेंट किया। एक पाईप में रोलर बांधा और पेंट बाल्टी में डूबा कर छत पर रोल कर दिया। तीन बेड रूम, तीन बाथ रूम, किचन, डायनिंग हाल, बॉलकनी और मेन हॉल की छत पेंट करने में दो दिन लग गए। पूरा दिन पेंट नही करते थे, सुबह के दो घण्टे और रात में दो तीन घण्टे मात्र।


चौथा चरण है दीवारों को पेंट करने का जो अपेक्षाकृत रूप से आसान हैं, दो तीन दिन में निपटा देंगे।


वर्तमान में पेंट करना बहुत आसान काम है, पेंट का डिब्बा खोलो, रोलर डुबाओ और घुमा दो, हो गया पेंट। एक समय था कि हमारे बचपन के छोटे से घर कि पुताई में पूरे 10 दिन लग जाते थे। पुताई होती थी चूने और पेड़ की जड़ से बनी कूची से।


1983-84 में पापा ने झालिया ग्राम में मकान खरीद लिया था, मिट्टी की दीवारों वाला, मिट्टी की खपरैल और बांस से बनी छत वाला मकान। दीवारों की पुताई छुई से हुई थी। छुई चूने के परिवार का सदस्य है, बस रंग पीलापन लिए होता है। पापा ने उसे अब चूने से पुतवाया, चुने में नीला रंग मिलाकर घर पोता गया। यह पुताई पड़ोस जे ही जयलाल नागपुरे ने की थी। अगले चार पांच बरस वही पुताई करते रहे। लेकिन जयलाल साहब थोड़े आलसी, मनमौजी किस्म के इंसान थे। पुताई का काम कभी भी शुरू करे समाप्त दीवाली के दिन ही करते थे। जिससे हम लोग थोड़े चिढ़ जाते थे, दीवाली के दिन घर जमाने का का काम जो करना होता था। 



1990 के आसपास हमने सोचा कि बहुत हो गया, अब पुताई खुद करेंगे और दीपावली से एक सप्ताह पहले समाप्त कर देंगे। बस क्या था, तैयारी शुरू की गई। चूने की बोरी , नीला रंग खरीद कर लाया गया। समस्या थी पुताई की कूची की। एक पलाश के पेड़ की जड़ खोद कर काटी गई। उसके एक सिरे को पत्थर से कुचल कर कूची का रूप दिया।


अब बारी थी चूने को तैयार करने की। चूने को पानी में मिलाने पर ऊष्मा निकलती है, इतनी कि पानी उबलने के तापमान तक पहुंच जाता है। और उस चूने से सीधे पुताई नही कर सकते, हाथ की चमड़ी जल जाती है। तो चूने को एक मटके में डाला गया, उसमें पानी डालकर दो दिनों के लिए छोड़ दिया गया। तीसरे दिन उसमें रंग घोला गया।


और हमने पुताई शुरू की। बांस की सीढी पर चढ़ कर बाल्टी में चूने के घोल में कूची डुबाकर सीधे सीधे ऊपर नीचे वाले स्ट्रोक लगाए गए। जोश जोश में एक दिन में सारी बाहरी दीवार पोत दी।


अब रात में सारी बांहे दुख रही थी, इतनी अधिक कि सो नही पाए। दूसरे दिन पस्त थे। सोचा कि आज ब्रेक ले लेते है। तीसरे दिन फिर जुटे, बाहरी दीवार पोतना आसान था, कमरे मुश्किल। सामान या तो बाहर करो या ढंको, उसके बाद पोतों। दूसरा ढेर सारे व्याधान, कभी मम्मी को कोई चीज चाहिए, कभी पापा को कुछ चाहिए। पूरे दिन में एक कमरा ही हुआ। अगले दिन फिर से पस्त। एक दिन पुताई एक दिन छुट्टी मार कर पूरा घर आखिर कार पोत ही लिया। 


अंतिम दिन जब पूजा का कमरा पोत रहे थे वह दिन दीपावली का ही था।


चित्रों में पेड़ के जड़ से बनी कूची और मेरा घर

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1 टिप्पणियाँ

Pawan Kumar ने कहा…
मेरे नानी का घर भी कच्चा था, मैं खुद कच्चे घर में तो नहीं रहा लेकिन नानी के घर रहकर बड़ा अच्छा लगता था,, आपकी फोटो में जो कच्चा घर मुझे वहीं कि याद दिलाता है.. बड़ा अच्छा होता होगा,, मिटटी के लिपे हुए घर में सोना, बैठना