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भारतीय वैज्ञानिक चेतना

 आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस है।



विज्ञान से होने वाले लाभों के प्रति समाज में जागरूकता लाने और वैज्ञानिक सोच पैदा करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तत्वावधान में हर साल 28 फ़रवरी को भारत में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है। 28 फ़रवरी सन् 1928 को सर सीवी रमन ने अपनी खोज की घोषणा की थी। इसी खोज के लिये उन्हे 1930 में नोबल पुरस्कार दिया गया था।


कुछ बरस पहले अनमोल ने एक लिंक दी थी "The Great Debate - The Storytelling of Science", दो भागो मे है। आम लोगो मे विज्ञान को लोकप्रिय करने मे वर्तमान के सभी बड़े नाम है वे सभी इस चर्चा मे है। कुछ मुख्य नाम है बिल ने, निल डीग्रेस टायसन, रिचर्ड डाकिंस, ब्रायन ग्रीन, इरा फ़्लैटो, नील स्टीफ़नसन, ट्रेसी डे तथा लारेंस क्रास।(युट्युब पर दो भागो मे चर्चा है, एक बार अवश्य देखीये।)








इस तरह की चर्चाओं को देखकर हमेशा दु:ख होता है कि इस तरह की उच्च स्तरीय बहस भारत मे क्यों नही होती है! 


भारत मे भी विज्ञान कांफ़्रेंस होती है जिसमे वेंकटरामन रामकृष्णन एक बार भाग लेने के बाद दोबारा भाग लेने से मना कर देते है। वेंकटरामन रामकृष्णन गलत भी नही है, उनके पास वाजिब कारण है इस तरह की कांफ़्रेंस को समय की बर्बादी मानने के लिये। इन कांफ़्रेंसो मे शल्य, जीवक या सुश्रत जैसे प्राचीन भारतीय चिकित्सको की चर्चा ना होकर गणेश पर हाथी मस्तक लगाने की चर्चा होती है। आर्यभट, भास्कर, वराहमिहीर, नागार्जुन, बोधायन जैसो की चर्चा ना होकर फ़र्जी वैमानिक शास्त्र की चर्चा होती है। आधुनिक भारतीय वैज्ञानिको के नाम से अधिकतर लोग अंजान ही है।


हमारे संविधान के अनुसार "भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण , मानववाद और ज्ञानर्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।" 


लेकिन  इस कर्तव्य की पूर्ति  कौन करता है ? क्या हमारे विश्वविद्यालयों मे इस तरह का वातावरण है कि नये विचार आये, खूली चर्चा हो जिससे वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार हो ?


हम रोते रहते हैं कि भारत मे नई खोजे नही होती है, प्रतिभा पलायन होता है ? क्या कारण है ?


हमारे विश्वविद्यालयो को पूर्ण स्वायत्ता क्यों नही दी जाती है? क्यों उनके कार्यप्रणाली मे राजनैतिक हस्तक्षेप होते है ? क्यों उनके पाठ्यक्रमो को राजनैतिक विचारधारा से बांधने का प्रयास होता है ? क्यों शैक्षणिक संस्थानो को किसी विशिष्ट विचारधारा के दायरे मे बांधा जाता है ? उस विचारधारा का विरोध करने पर उनपर हमले क्यों होते है ? विशिष्ट विचारो के समर्थन मे गुंडागर्दी क्यों की जाती है ? अनुदानो पर रोक लगने की या विश्वविद्यालय बंद करने की बात क्यों होती है ?


वर्तमान मे अधिकतर खोज, पेटेंट अमरीका या युरोप के विश्वविद्यालय से आते है। गूगल, फ़ेसबुक जैसी कंपनीयाँ की नींव इन्ही विश्वविद्यालयो मे रखी जाती है। क्योंकि ये विश्वविद्यालय खूलापन देते है, विचारों का, रहनसहन का, खाने पीने का, कपड़े पहनने का। यहाँ कोई आदेश नही देता कि छात्रो का ड्रेसकोड क्या हो ? यहाँ छात्रो को कोई नही बताता कि वे क्या खांये क्या नही ? यहाँ के पुस्तकालय को रात मे चालु रखने विद्यार्थीयों को खूले मैदान मे महिनो तक प्रदर्शन नही करना होता है। यहाँ किसी रेस्टारेंट को रात मे बंद रखने का आदेश नही दिया जाता! किसी एक विशिष्ट विचारधारा को थोपा नही जाता है।


इन कालेजो मे खूलापन है लेकिन ऐसा भी नही है कि उन्हे कानून व्यवस्था से खिलवाड़ करने की इजाजत है! कानून के दायरे मे पूरी आजादी है। 


जब तक आप अपने शैक्षणिक संस्थानो को ऐसी आजादी नही देंगे, भूल जाईये कि भारत कभी भी विकसीत राष्ट्रो के बराबर आ पायेगा। जो भारतीय प्रतिभा भारत मे कुछ नही कर पायेगी, वह अपना योगदान इन राष्ट्रो के विकास मे देगी।


अब वह समय नही है कि कोई भाभा, राजा रमन्ना, विक्रम साराभाई या सतिश धवन भारत वापसी करेगा। राष्ट्र की सीमायें नई पीढी के वैज्ञानिको को नही बांध पाती है, वे उत्थान के लिये आजाद वातावरण चाहते है, वे वहीं काम करेंगे जो उन्हे ऐसा वातावरण देगा।


भारतीय संविधान के भाग - 4 क के अनुच्छेद - 51 क ( ज ) के अनुसार


" भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण , मानववाद और ज्ञानर्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें "

( It shall be the duty of every citizen of India to develop the scientific temper , humanism and the spirit of inquiry and reform )।


लेकिन क्या हम इस कर्तव्य की पूर्ति कर रहे है ?


नोट : इस चर्चा मे अधिकतर लोगो के शोध कार्य सरकारी सहायता पर ही होते है लेकिन उन्होने सरकारो की बखिया उधेड़ने मे कोई कसर नई छोड़ी है। ये लोग अमरीकी रिपब्लीकन पार्टी के विरोधी रहे है। रिचर्ड डाकिंस के प्रहारों से कोई भी धर्म नही बच पाया है।



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