प्रत्याक्षाजी ने हमारे पुराने जख्म हरे कर दिये। हमने अपनी आधी अधूरी ही सही; दास्तान ए इश्क सुना दी।
बहरहाल हमारी इस कहानी पर काफी सारी टिप्पणियां मिली। आगे लिखने का अनुरोध किया गया।
कल का सारा दिन पूरानी हसीन यादो मे डूबा रहा। कहते है जब हमे हिचकी आती है तो उसका मतलब होता है कि कोई आपको याद कर रहा है। तब तो शायद उसे सारा दिन बिना रूके हिचकी आती रही होगी।
शाम को घर गये। खाना बनाना शुरू किया। रोटियाँ सेकीं। और सब्जी बनाने की तैयारीया शुरू की।
जब मै किसी की याद मे खाना बनाता हुं, तब खाना काफी अच्छा बनता है, लोग उंगलिया चाटते हुये खाते है। ऐसा मेरा नही अन्ना का मानना है।
अब सब्जी बनाना शूरू किया, इतने मे अन्ना आ गया। अब उससे बाते चलती रही और खाना बनता रहा। वो भी मेरा चिठ्ठा कभी कभार पढ लेता है। और आज उसने पढा था।
अन्ना उवाच :
अचानक कुछ जलने की बू आयी, पता चला सब्जी जल गयी थी . काफी रात हो चुकी थी. तय हुआ की अब इसी से काम चलाया जाये.
खाने बैठे , सब्जी जलने के बाद भी स्वादिष्ट थी. आखीर कैसे नही होती…….
सब्जी नही हमारा दिल जो जला था।
3 टिप्पणीयां “कल रात सब्जी जल गयी” पर
शादी कर लो . फिर जली हुई सब्ज़ियाँ नहीं खानी पडेगी.
मतलब अकेले ! फिर दुकेले खानी पडेंगी. क्या पता बाद में भी जली हुई स्वादिष्ट सब्ज़ी बनाने का सौभाग्य तुम्हें ही मिलता रहे )
प्रत्यक्षा
pratyaksha द्वारा दिनांक फरवरी 3rd, 2006
हा हा हा, वाह, पुरानी यादें ताज़ा करने बैठे और सब्ज़ी जला बैठे, यार एक लड़के से ऐसी आशा नहीं थी मुझे, अमूमन यह काम लड़कियाँ ही करती हैं!! वैसे यह बात सही है, कभी कभी थोड़ी जली सब्ज़ी या दाल अधिक स्वादिष्ट लगती है!! और प्रत्यक्षा जी का कहना भी ठीक है, ब्याह कर लो, फ़िर अकेले जली सब्ज़ी नहीं खानी पड़ेगी!!
Amit द्वारा दिनांक फरवरी 3rd, 2006
पढ के तो यही लगता है कि आज भी दुकेले ही खा रहे थै. आपका शिकार हलाल हो चुका है.
Tarun द्वारा दिनांक फरवरी 3rd, 2006
बहरहाल हमारी इस कहानी पर काफी सारी टिप्पणियां मिली। आगे लिखने का अनुरोध किया गया।
कल का सारा दिन पूरानी हसीन यादो मे डूबा रहा। कहते है जब हमे हिचकी आती है तो उसका मतलब होता है कि कोई आपको याद कर रहा है। तब तो शायद उसे सारा दिन बिना रूके हिचकी आती रही होगी।
शाम को घर गये। खाना बनाना शुरू किया। रोटियाँ सेकीं। और सब्जी बनाने की तैयारीया शुरू की।
जब मै किसी की याद मे खाना बनाता हुं, तब खाना काफी अच्छा बनता है, लोग उंगलिया चाटते हुये खाते है। ऐसा मेरा नही अन्ना का मानना है।
अब सब्जी बनाना शूरू किया, इतने मे अन्ना आ गया। अब उससे बाते चलती रही और खाना बनता रहा। वो भी मेरा चिठ्ठा कभी कभार पढ लेता है। और आज उसने पढा था।
अन्ना उवाच :
“दादा आपने ये कहानी तो कभी बतायी नही !”
” इसमे कुछ बताने लायक हो तो बताउ ना”
“नही दादा, आपकी वो कहानियां जिसमे आप कहते थे कि यदि आपको किसी की प्रेमकथा पता चल जाये वो कुछ ही दिन मे टूट जाता है. इसकी शुरूआत तो आपने ही कर दी थी”
“ऐसा ही कुछ है…”
” ये आपने पहले क्यों नही बताया ?”हम शुरू हो गये… खो गये पूरानी यादो मे…….हम कहते रहे … अन्ना सुनता रहा………
अचानक कुछ जलने की बू आयी, पता चला सब्जी जल गयी थी . काफी रात हो चुकी थी. तय हुआ की अब इसी से काम चलाया जाये.
खाने बैठे , सब्जी जलने के बाद भी स्वादिष्ट थी. आखीर कैसे नही होती…….
सब्जी नही हमारा दिल जो जला था।
3 टिप्पणीयां “कल रात सब्जी जल गयी” पर
शादी कर लो . फिर जली हुई सब्ज़ियाँ नहीं खानी पडेगी.
मतलब अकेले ! फिर दुकेले खानी पडेंगी. क्या पता बाद में भी जली हुई स्वादिष्ट सब्ज़ी बनाने का सौभाग्य तुम्हें ही मिलता रहे )
प्रत्यक्षा
pratyaksha द्वारा दिनांक फरवरी 3rd, 2006
हा हा हा, वाह, पुरानी यादें ताज़ा करने बैठे और सब्ज़ी जला बैठे, यार एक लड़के से ऐसी आशा नहीं थी मुझे, अमूमन यह काम लड़कियाँ ही करती हैं!! वैसे यह बात सही है, कभी कभी थोड़ी जली सब्ज़ी या दाल अधिक स्वादिष्ट लगती है!! और प्रत्यक्षा जी का कहना भी ठीक है, ब्याह कर लो, फ़िर अकेले जली सब्ज़ी नहीं खानी पड़ेगी!!
Amit द्वारा दिनांक फरवरी 3rd, 2006
पढ के तो यही लगता है कि आज भी दुकेले ही खा रहे थै. आपका शिकार हलाल हो चुका है.
Tarun द्वारा दिनांक फरवरी 3rd, 2006
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