सामान्यत: दिसंबर मे मेरे पास काम कम होता है, इसलिये पहले से योजना बना कर रखी थी कि इस वर्ष छुट्टीयाँ दिसंबर मे ली जायेंगी। वैसे भी मै जिस प्रोजेक्ट मे काम कर रहा था उसमे दिसंबर मे क्रिसमस के आसपास दो सप्ताह तक काम बंद रहता है और सभी को छुट्टीयाँ लेनी होती है। सब कुछ योजना के अंतर्गत ही चल रहा था लेकिन अक्टूबर मे मेरे पास अपना प्रोजेक्ट बदलने का अवसर आया, नया प्रोजेक्ट चुनौती पुर्ण और करीयर के लिये महत्वपूर्ण था तो सोचा कि इस चुनौती को स्वीकार कर लिया जाये। अब दिसंबर की छुट्टीयों की सारी योजना पर पानी फिरते नजर आया क्योंकि दिसंबर के मध्य मे ही इसी प्रोजेक्ट के सीलसीले मे कुछ दिन हैद्राबाद जाना था। अंत मे एक मध्यमार्ग निकाला गया कि सभी के सभी पहले गोंदिया गृहनगर जायेंगे, उसके पश्चात मै अकेले हैद्राबाद आ जाउंगा, तीन दिन हैद्राबाद मे बिताने के पश्चात मै वापिस गोंदिया आ जाउंगा।
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बैंगलोर एअरपोर्ट |
अठारह दिसंबर की सुबह निकल पढ़े, पहला चरण बैंगलोर से नागपुर हवाई यात्रा, उसके पश्चात ट्रेन से गोंदिया। उड़ान सुबह 6:30 की थी, इस उड़ान के लिये घर से 3:30 को निकलना पड़ा। सुबह सुबह हम लोगो के स्नान और तैयार होने मे कोई समस्या नही थी लेकिन गार्गी को नींद से उठाकर तैयार करना एक बड़ी समस्या थी। आखीर मे उसे रात मे तैयार कर ही सुला दिया गया ताकि सुबह उसकी नींद तोड़े बीना ही गोद मे लेकर चल दें। सुबह ठीक 3:00 बजे टैक्सी हाजीर थी, हम लोग भी तैयार थे। गार्गी को उठाया और लगभग 3:30 को चल पड़े हवाई अड्डे की ओर। हवाई अड्डे पहुंचते तक पांच बज गये थे, गार्गी अभी तक सो रही थी, जैसे ही टैक्सी से उतरे और गार्गी जाग गयी। नींद पूरी होने से गार्गी तरोताजा थी और हम परेशान क्योंकि अब गार्गी हवाई अड्डे पर दौड़ लगाना शुरु कर देगी।
गार्गी के साथ होने से कुछ फायदे तो होते ही है, कतार मे लगे बीना ही बोर्डींग पास मिल गये, सुरक्षा जांच मे भी कतार मे नही लगना पड़ा और विमान मे चढ़ने के लिये गेट पर पहुंच गये। विमान के अंदर जाने मे पूरे 45 मिनट बाकी थे, गार्गी सभी लोगो के पास जाकर उनके सामान की जांच कर रही थी। शायद हम लोगो की उड़ान के सभी यात्री तो अब गार्गी को जान ही गये थे।
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नागपुर एअरपोर्ट |
इस उड़ान मे गेट से सीधे ही विमान के अंदर जाना था, बस और सीढीयो वाली परेशानी नही थी, चैन आया। गेट से बस से विमान तक जाना और उसके पश्चात सीढीयों से विमान मे जाने मे मेरी आफत हो जाती है। निवेदिता गार्गी को सम्हालती है और मुझे अपने बैग के साथ मम्मी, निवेदिता और गार्गी के बैग भी सम्हालने होते है। खैर विमान के अंदर पहुंचे, अब मुझे लग रहा था कि विमान के उड़ान भरने के समय गार्गी थोड़ा परेशान कर सकती है, उसके कानो मे दर्द हो सकता है, उसके लिये मैने एक लालीपाप जेब मे रखा था लेकिन जैसे ही विमान ने टैक्सींग प्रारंभ की गार्गी सो गयी और नागपुर तक सोते रही। नागपुर मे विमान के उतरने के बाद थोड़ी भाग दौड़ करनी थी क्योंकि हम लोगो को 9:15 को गोंदिया के लिये ट्रेन लेनी थी। मैने निवेदिता और मम्मी को बहर निकल कर टैक्सी बुक करने कहा और स्वयं सामान के आने का इंतजार करने लगा। सामान आया लेकर बाहर टैक्सी मे लादा गया और चल पड़े रेल्वे स्टेशन की ओर। सुबह का समय था, रास्ता खाली था, जल्दी ही स्टेशन पहुंच गये।
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नागपुर रेल्वे स्टेशन |
मैने सामान एक ओर रखा और स्वयं टिकट की कतार मे लग गया। टिकट लेकर जैसे ही कतार से बाहर आया कि घोषणा हुयी कि हमारी ट्रेन प्लेटफार्म 4 पर आ रही है। अब हमे सारे सामान को लादकर प्लेटफार्म एक से चार पर जाना था। ट्रेन आकर खड़ी हो गयी थी, सारे सामान को लेकर कुली ढुंढकर लेजाने का समय नही था, बस निवेदिता और मम्मी को कहा कि तुम लोग प्लेटफार्म चार पर पहुंचो, मै सामान ले कर आता हु। पिठ्ठू बैग पीठ पर लादा, लैपटाप बैग कंधे पर, चार छोटे वाले सुटकेस थे, एक के उपर एक सुटकेस रख कर दो समूह बनाये और दोनो हाथो से खींचकर चलना शुरु, शुरुवात मे कुछ कदम परेशानी हुयी लेकिन एक बार लाय मे आ गये तो सब कुछ ठीक। ओवरब्रीज पर चढ़ भी आसानी से गये, लेकिन अब उतरे कैसे ? दिमाग चलाया और अब सामान खींचने की बजाये उन्हे सामने कर दिया और स्वयं पीछे होकर चलना शुरु कर दिया, ढलान होने से कुछ करना नही था, बस गति नियंत्रण करना थी। नीचे उतर गए, सोचा था कि सब लोग किसी डिब्बे मे बैठ गये होंगे लेकिन वे सब मेरा इंतजार कर रहे थे, वे तय नही कर पा रहे थे कि किस डिब्बे मे चढें।
ये ट्रेन विदर्भ एक्सप्रेस थी, इस ट्रेन मे अधिकतर यात्री नागपुर मे उतर जाते है और शयनयान श्रेणी के डिब्बे मे यात्रा की जा सकती है, टिकट निरिक्षक प्रति यात्री 50 रूपये अतिरिक्त लेकर टिकट बना देते है। बस सामने जो डिब्बा था उसी मे घुस गये। सीट मील गयी।
ये गार्गी की पहली ट्रेन यात्रा थी, इसके पहले वह विमान मे, कार मे यात्रा कर चुकी है लेकिन पहली बार ट्रेन मे यात्रा कर रही थी। सोचा कि गार्गी के लिये खिड़की के पास वाली सीट तलाशी जाये। लेकिन गार्गी ने अपने लिये सीट खुद ही तलाश, खिड़की के पास वाली सीट पर बैठे अंकल के पास जा कर उसने पता नही किस भाषा मे क्या कहा, उसे सीट मील गयी। गार्गी के लिये हर चीज नयी थी, ट्रेन के बाहर , गाय, बकरी, पक्षी सभी पहली बार दिख रहे थे उसे, वह हर चीज के लिये उंगली दिखाकर खुशीयाँ व्यक्त कर रही थी।
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वैनगंगा नदी, ट्रेन से ली तस्वीर, तुमसर |
कुल डेढ घंटे का सफर था। गार्गी के नाश्ते का समय हो गया था, उसके लिये हम लोगो ने अपने साथ दलिया रखा था, उसे नाश्ता कराया। खुद पूरी और अचार का भोग लगाया। सुबह से चाय नही पी थी, चायवाले आवाज लगा रहे थे। लेकिन इस रास्ते पर इतनी बार चला हुं कि इन विक्रेताओं की चाय पीकर मुंह का स्वाद बिगाड़ने की हिम्मत नही हुयी। वैसे भी एक घंटे का सफर ही बचा था।
भंडारा रोड और उसके बाद तुमसर आया। तुमसर के बाद वैनगंगा नदी और उसपर बना लंबा पुल। यह वैनगंगा रुडयार्ड किपलींग के उपन्यास जंगल बुक मे वर्णित वैनगंगा ही है। जंगलबुक का सारा कथानक इसी नदी के आसपास घुमता है। गार्गी खीड़की के पास खड़ी होकर बाहर देख रही थी, उसके लिये हर चीज नयी थी।
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गोंदिया रेल्वेस्टेशन |
कुछ ही देर मे गोंदिया आ गया। एक बार फिर से सारा सामान लादकर स्टेशन से बाहर लेजाने की जद्दोजहद थी। नागपुर स्टेशन वाले तरिके से सारा सामान लादा और चल पढे स्टेशन के बाहर। बाहर आकर आटो रिक्शा किया और चल पले घर की ओर....
शेष अगले भाग मे
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