2004 : दिल्ली से चेन्नई पहुंचे। दिल्ली में थे तो सुबह नाश्ते में अधिकतर पराँठे या सैंडविच ही खाते थे। चेन्नई में नाश्ते में इतनी
विविधता थी कि दिल खुश हो गया था। इडली, दोसा, वड़ा, पोंगल, पूरी, उत्तपम .....
तमिल नाश्ता |
विविधता थी कि दिल खुश हो गया था। इडली, दोसा, वड़ा, पोंगल, पूरी, उत्तपम .....
हर दिन नया नाश्ता या दो तीन व्यंजन एक साथ भोग लगाते थे।
अब किसी ने आंध्रा मेस दिखा दी थी। स्वाद बदल गया। तमिल खाना अधिक तीखा, चटपटा नही होता। लेकिन आंध्रा खाना तीखा चटपटा होता है, अचार, पोड़ी की ढेर सारी वेराइटी,घोंगुरा चटनी में मजा आ जाता था।
अब तमिल और आंध्रा खाना खा रहे थे। अधिकतर दिन में तमिल और रात में आंध्रा खाते थे।
आंध्रा थाली |
तीन चार महीने मस्त गुजरे, उसके बाद रोटी, पराँठे याद आने लगे। अब तो चेन्नई में उत्तर भारतीय खाना आसानी से मिल जाता है, उस समय रोटी (फुल्का, चपाती, तंदूरी) आसानी से नहीं मिलती थी। उसके लिए सावकार पेट तक जाना होता था। तमिल/आंध्रा स्टाइल चपाती हमे तेल लगी कच्ची रोटी लगती थी, पसंद नही आती थी।
एक दिन तिरुवनमियूर में एक रेस्त्रां में घुसे। वेटर को कहा कि रोटी परांठा मिलेगा ? वो बोला,
सार परोटा है, मिलेगा।
हम बोले ले आओ।
पता चला कि परोटा मतलब लच्छा परांठा। तेल में तैरती कई परतों वाली मैदे की रोटी। चबाने में दांतो की सर्कस। जैसे तैसे निगला।
दूसरे दिन ऑफिस में जाकर तमिल खाने को गरिया दिए। टीम में बालाजी ने दिल पर ले लिया। उसने कहा कि रविवार को मेरे घर आना परोटा खिलाते है।
परोटा ऊर्फ लच्छा परांठा |
अगले रविवार सुबह दस बजे ही तिरुवनंतमियूर से पूरा चेन्नई पार कर उसके घर कोयमबेडु पहुंचे। आंटी का बनाया लच्छा परांठा नाश्ते में खाया। दोपहर के खाने में तमिल भोजन को खाने का तरीका सीखा। सबसे पहले सब्जी के साथ चावल खाओ। यदि वेराइटी राइस है, उसको निपटाओ। उसके बाद सांबर के साथ चावल। अगली बारी रसम चावल की है। रसम चावल के बाद दही चावल या मठ्ठा चावल। इन सब के साथ पापड़, चटनी या कोई तला हुआ व्यंजन साथ मे चखते रहो। उसके बाद पायसम(खीर) की बारी। आखिरी में केला।
मन भर कर खाया। कब लौटने लगे तो आँटी ने रात के लिए भी खाना दे दिया, हमने नानकूर करते हुए खुशी से ग्रहण किया।
कुछ दिनों बाद हमने अपने ऑफिस से कुछ दूर पुन्नू दा ढाबा भी खोज लिया था।
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