विज्ञान फ़ंताशी मेरा फेवरेट जॉनर है। फाउंडेशन, ड्यून , स्टार ट्रेक, स्टार वार पढ़े और देखे है।
लगभग सारी विज्ञान फ़ंताशी गाथाओं में लोकतंत्र पर गंभीर चिंतन हुआ है। यहां पर मैं लोकतंत्र और विज्ञान फ़ंताशी पर संक्षिप्त लेकिन व्यावहारिक दृष्टिपात कर रहा हूं, मैने मुख्य तौर पर फ़ाउंडेशन, स्टार ट्रेक, स्टार वार्स और ड्यून का संदर्भ लिया है।
विज्ञान कथाओं में लोकतंत्र
विज्ञान कथाएँ अक्सर उन्नत तकनीक, अंतरतारकीय साम्राज्यों, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और परग्रही सभ्यताओं जैसी भविष्य की चुनौत…
हम सर्वाहारी है। हर वो चीज खा सकते है जो परोसी गई हो। फिर भी अब तक बीफ और पोर्क से दूर रहे है।कारण यही है कि जिस माहौल में पले, बढ़े उसमे ये दोनों चीजे खाने की मनाही थी, वही बाद में रूढ़ी हो गई और इन्हें खाने की कभी इच्छा नहीं हुई, बस कोई विकल्प खोज कर खा लिया।एक लम्बा अरसा विदेशों में बिताया है। इस दौरान अकेला रहा हूं या निवेदिता के साथ, लंच अधिकतर घर से टिफिन में ले जाता रहा हूं।ऑफिस में अधिकतर शाकाहारी लंच ही ले कर जाता रहा हूं। इस दौरान कई बार ऐसा हुआ है कि भारत से कोई …
और पढ़ेंआजकल लगभग रोज हाथी से ऑफिस आ रहे है। बचपन में कभी सोचा नहीं था कि कभी एक क्रूजर जैसी बाइक चलाएंगे, सोचना तो दूर जानते ही नहीं थे कि बाइक के भी प्रकार होते है। होशवाला बचपन 80 के दशक और 90 के दशक के शुरुवात का है, उस समय बाइक मतलब राजदूत और बुलेट! कभी कभार भूले भटके येजदी और जावा दिख जाती थी। हीरो होंडा, टीवीएस सुजुकी और कावासाकी बजाज का ज़माना आया नहीं था। बाइक से सबसे पहला वास्ता 12 की परीक्षाओ में पड़ा था। उस समय हम स्कूल साइकिल से जिला परिषद ज्युनियर कॉलेज आमगांव जाते थ…
और पढ़ेंभारतीय भाषाओं में कम्प्यूटिंग पर मेरी रुचि कालेज के दिनो से थी। यूनिकोड से पहले यह सब फॉन्ट का खेल होता था, डेटा (text) अंग्रेजी में होता था , उसे फ़ॉन्ट्स के जरिए हिंदी में दिखाते थे। सारे हिंदी और अन्य भारतीय भाषा के अखबार यही करते थे। DTP कार्य, पुस्तके, कार्ड्स, मुद्रण यही तरीके अपनाते थे। इंटरनेट पर आपको भारतीय भाषा में पढ़ना हो तो उस वेबसाइट वाला फॉन्ट डाउनलोड करो और पढ़ो। लेकिन भारतीय भाषाओं में आम लोगो के लिए लिखना आसान नहीं था।फिर आया यूनिकोड का जमाना। लेकिन यह लोकप…
और पढ़ेंजेम्स हिल्टन का उपन्यास लॉस्ट होराइजन समाप्त किया।
इस पुस्तक को जो चीज पठनीय बनाती है वह है कहानी की कसावट और प्रवाह। साथ में कहानी के अंत को खुला छोड़ दिया है, आप स्वयं सोचे कि नायक के साथ क्या हुआ होगा। कहानी को अनावश्यक विस्तार नही दिया है।कथा द्वितीय विश्वयुद्ध के तुरंत बाद के समय में है लेकिन इसका कोई असर नही है।थियोसोफिकल सोसाइटी की विचारधारा, गाथाओं को पढ़ चुका था। सांगरीला की कहानी भी कई जगह पढ़ी थी, डैन ब्राउन भी लिख चुके है।कथानक आश्चर्य जनक नही लगा।इस कहानी के कथा…
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