आज सुबह देर से उठा, ७:३० के करीब। अपने कमरे से बाहर आया, देखा हमेशा सुबह रोनी सूरत बनाये रखने वाला अन्ना गुनगुना रहा था और मेरा डिब्बा(CD Player) बज रहा था। मै चकराया ये क्या हो रहा है। सुबह सुबह गाने तो मै सूनता हुं, ये आज डिब्बा किसने शुरू कर दिया ?
मेरे कमरे की दिनचर्या कुछ ऐसी है, सबसे पहले मै उठ जाता हुं, नहा धो कर तैयार होने के बाद डिब्बा चालु करता हुं। आवाज इतनी तेज होती है कि नन्दी और अन्ना दोनो भुनभुनाते हुये उठ जाते हैं। किसी दिन मै देर से जागा तो बाकि दोनो भी देर से ही जागते है। लेकिन आज ये क्या …।
मैने अन्ना को आवाज लगायी
” क्या हुवा बे, इतनी जल्दी कैसे उठ गया, और डिब्बा भी चालू कर दिया ?”
” दादा आज १४ फरवरी है ना !?”
” तो इसमे क्या है कल १३ फरवरी थी कल १५ फरवरी होगी।”
” दादा, इसलिये आपको पिछले २९ साल मे कोई नही मिली।”
” क्यो सुबह सुबह पिटने के काम कर रहा है, सीधे सीधे बोल चक्कर क्या है ?”
” दादा सुबह सुबह सूमन का फोन आया था।”सूमन अन्ना की मंगेतर है।
” तो इसमे नया क्या है ?”
” दादा आज वेलेन्टाइन डे है ना!”हमारा ट्युबलाईट जला। इतने मे नन्दी अपनी आंखे मलता हुआ आया। मुझे रात के कपडो मे देखा और अन्ना को तैयार देखा। उसको दिल का दौरा पडते पडते बचा।
नन्दी महाराज बोले
“आज सूरज पश्चिम से उगा क्या ?”
” अरे नही यार,आज सूमन ने इसे सूबह फोन कर वेलेण्टाईन डे की बधाई दे दी इसलिये ये नमूना इतना उछल रहा है।”नन्दी महाराज के जख्म हरे हो गये। उनका एकतरफा प्रेम कुछ दिनो पहले चकनाचूर हो गया था।
नन्दी महाराज दहाडे
” अन्ना, साले अंगरेज, तूझे शरम नही आ रही है”मै और अन्ना दोनो चकराये इसे अचानक क्या हो गया।
अन्ना बोला
“अबे क्या हो गया तुझे सूबह सूबह ?”नन्दी :
“तु साले पश्चिमी संस्कृति का पालन कर रहा है, वेलेंटाइन डे मना रहा है, तुझे शर्म आना चाहिये। तेरे जैसे लोगो के कारण हमारी संस्कृति पतन के रास्ते जा रही है।जब तक तेरे जैसे पश्चिमी गुलाम रहेंगे देश का भला नही हो सकता।”
मुझे याद था कि ये नन्दी खुद कुछ दिनो पहले तक वेलेन्टाईन डे के दिन एक कन्या को प्रेम प्रस्ताव देने की योजना बना रहा था। लेकिन जब वो कन्या उनके हाथ से निकल गयी नन्दी महाशय आडवाणी की तरह बदल गये थे। अपने बयानो से ठीक वैसे पल्टी मारी थी जैसे आडवाणी ने जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष करार दिया था।
नन्दी महाराज मेरी तरफ मुडकर बोले
“आप बोलो मै गलत कह रहा हूं तो ?”
मैने बर्र के छत्ते को छेडना उचित नही समझा। वैसे भी अन्ना का समर्थन करने का कोई मतलब था नही। ऐसे भी चेन्नई मे हमारी कोई ऐसी कन्या थी नही कि हम वेलेण्टाईन डे मनाते। हम भी बजरंगदल मे शामिल हो गये। मेरा अनुभव रहा है कि बजरंग दल और शिवसेना के नाम इस दिन हुडदंग मचाने वाले वो कालेजवीर होते है जिन्हे कोई कन्या भाव नही देती।
संत श्री १००८ श्री आशीष कुमार जी महाराज उवाच ;
“वेलेण्टाईन डे हमारी संस्कृती नही है। ये भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य प्रभाव है। प्रेम की अभिव्यक्ति के लिये हमारा अपना वसंत उत्सव है, मदनोत्सव है। हमे अपने त्योहार मनाना चाहिये ना कि पश्चिमी।”
” आप तो तोगडिया की भाषा बोल रहे हो, आपका बस चले तो आप महिलाओ को परदे के पिछे बंद कर दे!”
” जी नही हम तोगडिया की भाषा नही कह रहे हैं। भारतिय संस्कृती ने प्रेम का विरोध कभी नही कीया। श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम तो विवाह बाह्य प्रेम था, लेकिन समाज उसे सम्मान से देखता है। भारतीय संस्कृती मे तो गंधर्व विवाह एक मान्यता प्राप्त विवाह पध्दति है। मदनोत्सव कुछ और नही वेलेंटाईन डे है। मदनोत्सव का प्रारम्भ पौराणिक काल में हुआ था । उसे कामसूत्र में ‘सुवसंतक’ कहा गया है । मूल रुप में यह ॠतु का उत्सव ‘ॠतूत्सव’ था, जो वसन्त ॠतु के आगमन पर होता था । ॠतु की अगवानी में पुरुष और स्त्रियाँ गीत-नृत्य करते थे । पुराणों ने ‘काम’ की पूजा को महत्त्व दिया, अतएव यह ‘मदनोत्सव’ हो गया । घर में ‘काम’ की पूजा आम के और टेसू के फूल से की जाती थी और बाहर आयु, रंग एवलं जाति के भेद-भाव को भुलाकर एक-दूसरे से प्रेम दर्शाते और मिलते-जुलते थे ।”नन्दी महाराज उवाच
” इ़सका मतलब तो ये हुवा कि वेलेण्टाइन डे को प्रेम प्रस्ताव ना दे कर मदनोत्सव को देना चाहिये। लेकिन ये तो गलत है, अश्लिलता का प्रदर्शन है।”
“प्रेम की स्वस्थ अभिव्यक्ति गलत नही हो सकती। समाज मे हम जितनी वर्जनाये रखेंगे, उल्लघंन उतना ज्यादा होगा। भारतिय संस्कृती मे धर्म और काम को समान माना गया है। खजुराहो और कोणार्क इसका उदाहरण है। हमारे यहां तो गणिका को भी समाज मे सम्मान्जनक स्थान दिया गया है, आम्रपाली इसका उदाहरण है”
” आप वेलेंटाईन डे का विरोध करते है या समर्थन ?”
“मै वेलेन्टाईन डे का विरोध नही करता हूं, लेकिन मै वेलेन्टाईन डे मदनोत्सव के मुल्य पर नही चाहता। मै तो १ जनवरी को नया साल भी नही मनाना चाहता, मेरा नया साल तो १ चैत्र से शूरू होता है। मै किसी पाश्चात्य परंपरा और त्योहार का विरोध नही करता बशर्ते वह भारतिय परंपरा और संस्कृती की किमत पर न हो”
2 टिप्पणीयां “वेलेंटाईन डे और हम” पर
ड्यूड,
यह सब कमाने-खाने का धंधा है और कुछ नहीं। हम में से कितने लोग यह जानते हैं कि सन्त वैलेंटाइन कौन थे और यह दिन क्यों मनाया जाता है? पर अधिकतर यही जानते हैं कि आज के दिन उपहार, फूल इत्यादि दिये जाते हैं। तो अन्त में यह डे किसका हुआ - हॉलमार्क या आर्चीज़ गैलरीज़ का
और आशीष भाई, कार्यालय दूर हुआ तो क्या हुआ, बाइक के और भी कई उपयोग हैं - वैलेंटाइन डे पर मोटरबाइक पर तो पीछे बिठा कर सब घुमाते हैं, आप आगे बिठा के घुमा सकते हो…
निशांत
निशांत द्वारा दिनांक फरवरी 14th, 2006
अपने प्रेम को एक दिन के लिये मत रख बालक।साल भर प्रेमगीत गा।
अनूप शुक्ला द्वारा दिनांक फरवरी 16th, 2006
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