हमारा बचपन ठेठ गाँव में बीता है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ की सीमा के पास महाराष्ट्र के गोंदिया जिले में झालिया गांव! आदिवासी , नक्सली तहसील सालेकसा का गाँव। स्कूली शिक्षण भी पहली से सांतवी तक हिंदी माध्यम में झालिया के सरकारी प्राथमिक स्कूल में पढ़ी, उसके बाद बगल के गाँव कावराबांध से आंठवी से दसंवी पढ़ी। इसी स्कूल में पापा भी गणित और विज्ञान पढ़ाते थे।
कक्षा 11 और 12 पड़ोस के कस्बे आमगांव के सरकारी स्कूल से की, विज्ञान लिया था जोकि महाराष्ट्र में केवल अंग्रेजी माध्यम में …
पिछले चार वर्ष से अर्ध मैराथन मे भाग ले रहा हुं। साल मे कम से कम दो अर्ध मैराथन हो ही जाती है। इससे अधिक कभी कोशिश नही की।
पहली बार अर्ध मैराथन मे 38 वर्ष उम्र मे भाग लिया था, उसके पहले 2015 मे एक बार दस किमी मे भाग लिया था। 2006 मे पहली बार स्पिरिट ऑफ़ विप्रो मे 5 किमी की दौड़ मे भाग लिया था। उसके बाद हर वर्ष 5 किमी वाली श्रेणी मे भाग ले ही लेता था। स्पिरिट आफ़ विप्रो मे 5 किमी वाली श्रेणी दौड़ कम सेल्फ़ीदौड़ होती है, लोग केवल मनोरंजन और दोस्तों, परिवार के साथ टहलते, दौड़ते या …
2000-2002 दिल्ली युग
हम कालकाजी में अलकनंदा अपार्टमेंट्स के पास एक 1 BHK फ्लैट में छह मित्रो के साथ रहते थे। इनमें से तीन कमाने वाले तीन नौकरी की तलाश में लगे थे। रहने, खाने और बेरोजगार दोस्तो की नौकरी तलाश का खर्च कमाने वाले ही सम्हालते थे।
एक मेड रखी थी जो सुबह नाश्ता, दोपहर का खाना और शाम को रात का खाना बनाने के साथ बर्तन, और घर की सफाई कर जाती थी।
समस्या यह थी कि वह रविवार को छूट्टी लेती थी। उस अपार्टमेंट में हमारे आविर्भाव से पहले रविवार को खाना बनाना का काम अरविंद लाल क…
कन्याकुमारी मे सूर्यास्त के पश्चात हम रामेश्वरम की ओर रवाना हुये। दूरी 310 किमी है और गूगल महाराज ने कहा था कि पांच घंटे लगेंगे। अब तक हम गूगलदेव के समय से कम समय मे ही लक्ष्य तक पहुंच जा रहे थे। लेकिन अब रास्ते मे अंतर था। बैंगलोर-मदुरै-कन्याकुमारी का रास्ता हमने अधिकतर 4 लेन, और कुछ भागो मे 6 लेन वाले रास्ते से किया था। कन्याकुमारी से रामेश्वरम का रास्ता अच्छा है लेकिन दो लेन वाली बिना डीवाईडर की सिंगल सड़क है, गति हम होनी थी।
नाश्ता
कन्याकुमारी से ईस्ट कोस्ट रोड पर आने के…
दूसरा दिन 17 मई
सुबह पांच बजे अलार्म बजने से ठीक पहले ही नींद खुल गई। खुद उठे, बाथरूम मे घुसकर नहा धो कर बाहर निकले। तब तक गार्गी भी जाग गई थी, उसे नहला कर तैयार किया। तब तक निवेदिता सामान पैक कर रही थी। अंत मे निवेदिता के नहा धोकर तैयार होने पर बाहर निकले।
पता चला कि कार पार्किंग मे कार के आगे और पीछे कारें इस तरह से पार्क थी कि अपनी कार निकल नही सकती थी। होटल के रिसेप्शन पर शिकायत की तो उन्होने अपने ड्राईवर को भेजा। उसने हमारी कार के पीछे वाली कारों को हटाया, तब हमारी कार…
गार्गी की छुट्टीयाँ समाप्त हो रही थी। सारी छुट्टी निकल गई और वो शिकायत करते रह गई कि पापा "हालीडे" जाना है। तो हमने भी सोचा कि चलो तीन चार दिन कहीँ घूम आते है।
अचानक बाहर घूमने का कार्यक्रम था तो ट्रेन या फ़्लाईट से जाने का मौका नही था, अंतिम समय पर ट्रेन आरक्षण नही मिल पाता और फ़्लाईट की तो आसमान छूती कीमत होती। सोचा कि अपनी कार से ही चलते है।
लेकिन अब जायें कहाँ? ऐसी जगह जो तीन चार दिनो मे अच्छे से घूमी जा सके, जेब को अधिक नुकसान ना हो। ऊटी, कोडैकनाल जाना नही चाहत…
बचपन की जितनी धुँधली याद है, मेरे जीवन की सबसे पहली पुस्तक चंदामामा या नंदन ही रही होगी। इसमे से चंदामामा पौराणीक कहानीयों के लिये जानी जाती है, इसकी खासीयत इसके रंगबिरंगे खूबसूरत चित्र होते थे। विक्रम बेताल का परिचय चंदामामा से ही हुआ। चंदामामा ने ही भारत ही नही विश्व की पौराणीक गाथाओं से भी परिचय कराया, जिसमे तमिळ काव्य शिलप्पादिकारम (जिसकी नायिका कण्णगी है), इलियड और ओडीसी भी शामिल है।
इसके दूसरी ओर नंदन थी, परीकथा और जादुई दुनिया वाली बाल पत्रिका। विश्व बाल साहित्य से …
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