कहां से शुरु करुं ?
तो भैया हमने अपने चीठ्ठे का श्रीगणेश कर दिया. लेकीन विधीवत शुरुवात अभी शेष है .जिन्दगी के २८ वसन्त गुजार दीये हैं. यादो के झरोखे से देखो तो पता चलता है कि यदी लिख्नना शुरु कर दिया तो शायद एक पुरा ग्रन्थ बन जाएगा,शायद महाभारत से भी बडा.लीखना तो सब कुछ् है. लेकीन कहां से शुरु करुं ?
जब कुछ होश सभांला था, तब खुद को प्राथमिक पाठ्शाला मे पाया था. बचपन की उन खट्टी मिठि यादो की काफी स्मृतीयां शेष हैं. मेरा बचपन महाराष्ट्र के गोंदिया जनपद के एक छोटे से गाँव झालिया मे बीता था. यह १९८० के आस पास की बात है, जब मैं ४-५ वर्ष का था. क्रिकेट् का भुत उस व्क्त देहातो मे नही पहुन्चा था, पुरा बचपन हमने गुल्ली-ड्न्डा, कन्चे, लुका छीपी खेलते, लडते झगडते बीताया था. वो सुबह उठ्कर यार दोस्तो के साथ खेलने भाग जाना. १-२ घन्टे खेलने के बाद घर आना,नहा कर पाठशाला जाना. ए बात और है की मम्मी को हमे नहलाने के लिए कम से कम १ घन्टे मेहनत करनी होती थी, जिसमे १/२ घन्टा हमे नहाने के लिए मनाने,पकडने मे जाता था. यदि पापा आसपास हो तो हमारा नहाने का कार्यक्रम १० मिनिट मे निपट जाता था. लेकिन ऐसा काफी कम होता था,क्योकि पापा सुबह से ही अपने छात्रो को पढाने मे व्यस्त हो जाते थे. पापा पास के ही एक गावँ कावराबाँध मे उच्च माध्य्मीक शाला मे विज्ञान, गणित के शिक्षक थे. पापा का स्कुल आसपास के २०-२५ गावोँ के लिए ईकलौता हाई स्कुल था. और पापा ईकलौते विज्ञान, गणित के शिक्षक. पापा का अपने छात्रो को पढाना घर मे सुबह ७ बजे से १०.३० तक चलत्ता था(ट्युशन नही). उसके बाद स्कुल मे ११.०० से शाम के ५ बजे तक्. पापा के ईस एक सुत्री कार्यक्रम से कभी कभी मम्मी-पापा की झडप जाती थी, लेकिन जब मम्मी को सब्जिँया , फल, दुध और दही पापा के छात्र मुफ्त दे जाते मम्मी का गुस्सा शाँत हो जाता. मुझे याद नही आता कि हम लोगो ने कभी गाँव मे होने वाली कोई भी चीज खरीदी हो. सभी कुछ् गाँव वाले या पापा के छात्र बीना बोले दे जाते थे. गाँव और आस पास के गाँवो मे हम लोगो( मै और मेरे भाई बहन) को काफी प्यार और सम्मान मिलता था, और आज भी मिलता है,शायद ये मेरे पापा की सबसे बडी कमाई और हम लोगो को दिया गया सबसे बडा उफहार है.मेरा ये प्यारा सा गाँव् ज्यादा बडा नही था, शायद ३००-४०० लोगो की आबादी, मीट्टी के मकान्. हर घर मे आगन और एक तुलसी का पौधा. गाँव् के मध्य मे एक हनुमानजी का मन्दिर्. शाम को हनुमान जी का मन्दिर चौपाल बन जाता था. जँहा गान्व वाले या तो चर्चा करते या भजन गाते.गाँव के सामने सडक किनारे एक बडा सा बरगद का पेड जिसके नीचे राज्य परिवहन की सुबह और शाम चलने वाली बसे रुका करती थी. बरगद के नीचे नन्दु पटेल की चाय की दुकान,जहाँ पीपरमीन्तट और बीस्कुट भी मीलते थे.बरगद के पेड के पिछे एक तालाब. जहाँ हम गर्मियों मे पुरे दिन घरवालो की नजर बचा कर घुसे रह्ते. उसपर तालाब के किनारे कुछ आम के पेड, ग़र्मियो मे खाली पडे खेत . और अब क्या चाहीये? गर्मियो की छुट्टियो मे कच्चे आम खाना, गुल्ली -डन्डा खेलना और तालाब मे नहाना, बस और कुछ नही. पुरी छुट्टिया पलक झपकते बीत जाती.
मेरा स्कुल गाँव के दुसरे कोने मे था, स्कुल के पिछे एक छोटी सी पहाडी थी. दोपहर मे पहाडी के उपर्,एक चट्टान से दुर से जाती हुई रेल दिखाई देती थी. रेलजाते हुवे देखना हम लोगो के लिए एक बहुत बडी बात होती थी. पूरे दोस्तो मै अकेला था जिसने रेल का सफर किया था. और मै अपने उन रेल यात्राओ की कहानीया नमक मिर्च लगा कर सुनाया करता था, मेरे दोस्त मुन्ह खोले हुवे सुनते रहते . स्कुल की दिनचर्या काफी साधारण थी,एक कक्षा एक शिक्षक जो सभी विषय पढाया करते थे. हर कालांश के बाद एक पुस्तक बंद कर दुसरी खोल कर पढाई होती थी. किसी दिन यदि कक्षाध्यापक नही आये तो पुरा दिन मस्ती. शाम के अंतिम २ कालांश खेलकुद के होते थे. हमारे स्कुल का प्रागण काफी बडा था, जहाँ हम लोग कब्ड्डी और खोखो खेला करते थे. जब खेलकुद के कालाश खत्म होत और छुट्टी की घन्टी बजती तब स्कुलका माहौल देखने लायक होता. खेलकुद के कालांश मे सभी छात्र प्रांगण मे होते, घन्टी बजते साथ ही सभी के सभी एक साथ बस्ते लाने कक्षा मे दौड लगाते थे. जो क्क्षा मे होते वो बाहर आने की कोशिश करते जो बाहर होते वो अन्दर जाने की. बस एक कोलाहल और अफरातफरी मच जाती थी, जो मुख्याध्यापक के द्वारा एक दो छात्रो की पिटाई के बाद शान्त होती थी. लेकीन अगले दिन वही ढाक के तिन पात !
आह वो बचपन की वो यादे.....खैर ये किस्सा तो अन्तहीन है, बाकी फिर कभी.कीसने सोचा था कि ये सब यादे मै कभी लिखुन्गा वो भी अपने वतन से ईतने दुर,अमरीका मे ! लगता है लौट जाउ फिर अपने गांव , फीर से सुनाउ किस्से दोस्तो कों, इस बार रेल के नही, विमान यात्रा के नही, अपनी मिट्टी के, अपने वतन के.. अपनी बचपन की यादों के...
याद आ रही है जगजीत की वो गजल्
कोई लौटा दे वो मेरे बचपन के वो दिन , वो कागज की कश्ती , वो बारीश का पानी ...........
7 टिप्पणियाँ
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स्वागत है आपका हिन्दी चिट्ठाकारों के परिवार में.
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आशा है आप लिखते रहेंगे.
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जोरदार शुरूआत पर बधाई
आपका
आशीष