आज ही चेतन भगत की “वन नाईट एट काल सेंटर” खत्म की।
पढने के बाद समझ मे आया कि यह उपन्यास “इंडियन एक्स्प्रेस” की लोकप्रिय पुस्तको मे पिछ्ले तीन महिनो से क्रमांक एक पर क्यो हैं। चेतन भगत के लिखने का तरीका बेहतरीन है, कथा मे एक निरंतरता और उत्सुकता बनी रहती है। यही निरंतरता और उत्सुकता उपन्यास की जान है।
यह कहानी एक कुछ ऐसे नौजवानो ( २ युवक और ३ युवतीयां) की है, जो एक “काल सेंटर” मे काम करते है। पूरा कथानक एक रात का है जो शाम से शूरू होकर सुबह खत्म हो जाता है।
यह कथानक काल सेंटर से जुडा है, जबकि मै सुचना तकनीकी क्षेत्र मे कार्यरत हूं। दोनो क्षेत्रो के वातावरण मे जमीन आसमान का अंतर है,लेकिन ना जाने मुझे इसके सारे के सारे पात्र अपने आसपास के ही लगे।
उपन्यास की शूरूवात कुछ ऐसी है कि लेखक को अपनी एक रेलयात्रा मे एक युवती मिलती है। वह युवती लेखक को यह कहानी इस शर्त पर सुनाती है कि वह इस कहानीको उपन्यास के रूप मे प्रकाशीत करवायेगा। एक अजीब सी शर्त लेकिन लेखक इसे मान लेता है।
इस कहानी के प्रमुख पात्र है श्याम, प्रियकां,व्रूम, राधिका, इशा,मिलट्री अंकल और खलनायक मैनेजर ‘बक्शी’। सभी के अपने अपने सपने है, और अपनी अपनी परेशानियाँ। लेकिन सब मे एक समानता है, सभी किसी ना किसी तरह से विद्रोही है ,लेकिन अपना आत्मविश्वास खो चुके है।
कहानी की रात मे घटनाये कुछ इस तरह से घटना शूरू होती है कि सबकी जिंदगीयो मे तुफान आना शूरू हो जाता है । सबके सपने एक के बाद एक टूटने लगते है, एक उथलपुथल सी मच जाती है। सभी की जिदंगी के सूत्र इस तरह से उलझ जाते है जिसे सुलझाना कठीन हो जाता है ।
इतने मे कहानी के पात्रो को एक फोन काल आती है ,“भगवान” से। जी नही , भगवान किसी पात्र का नाम नही है, यह वही ईश्वर, अल्लाह , गाड है। भगवान उन्हे अपनी मुसीबतो से निकलने का रास्ता बताते है।
लेखक ने कहानी का तानाबाना काफी अच्छा बुना है। सभी पात्र और घटनायें कहानी के चरमोत्कर्ष से पहले तक स्वभाविक लगती है। लेकिन भगवान के द्वारा फोन सारे उपन्यास को एक नाटकीय मोड दे देता है, और आगे का सारा का सारा कथानक नाटकीय हो जाता है। मेरी राय मे यही इस उपन्यास की सबसे बडी कमजोरी है । अंत मे लेखक ने “भगवान के फोन”की अवश्यकता को सही ठहराने की कोशीश जरूर की है,जो तर्क संगत नही लगती है।
उपन्यास की एक बात जो सबसे ज्यादा चुभने वाली लगी वह यह कि आज भी पता नही क्यों काल सेंटर मे नौकरी को एक सम्माननीय दॄष्टी से नही देखा जाता है । मेरे कुछ अभियंता(इंजीनियर दोस्त है जो आज भी ५-६ हजार रूपयो की नौकरी कर रहे है, वह भी दिन और और रात की पालियो मे। जब मै इन्हे काल सेंटर की नौकरी की सलाह देता हूं, नाक भौ सिकोड्ना शूरू कर देते है, जबकि इस काल सेंटर की नौकरी मे कम से कम १०-१५ हजार महीने के आसानी से मिल जाते है और काम सिर्फ ८ घंटे का होता है।
लेखक ने युवावर्ग को उपदेश देने का प्रयास किया है । आत्म विश्वास को वे सफलता की कुंजी बताते है, साथ मे वे ये बताना नही भुलते की नयी शुरूवात करने कभी भी देर नही होती है। युवा वर्ग या जो अपने करियर से संघर्ष कर रहे है, इसे जरूर पढना चाहिये।
कुल मिलाकर उपन्यास पठनिय है। उपन्यास मे कुछ “एक लाईना” है जो हंसाते है और गुदगुदाते है।
मेरी पसंद का एक लाईना
“Girls handbags have enough to make a survival kit for Antarctica.”उपन्यास का खलनायक बख्सी भी मैनेजर है, जो हमेशा “मैनेजमेंट गुरूओ” के कोट देते रहता है। हर बात को समझाने के लिये ग्राफ या आकृतीयां बनाता है, यह सब मै आज से बंद करने जा रहा हूं।
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6 टिप्पणीयां “पुस्तक समीक्षा : वन नाईट एट काल सेंटर” पर
इनकी इसके पहले वाली पुस्तक ‘Five point someone: what not to do at IIT’ भी बहुत अच्छी है|
Unmukt द्वारा दिनांक अप्रैल 10th, 2006
मजा आया ना। मै तो पहले से ही कह रहा था, झकास है। अभी पिछली बार इन्डिया गया था(दिसम्बर में) तब यूं ही बुक स्टाल पर उलटते पलटते किताब ले ली। लेकिन किताब पढने के बात तो मै चेतन भगत का मुरीद हो गया। पिछली किताब भी ढूंढ रहा हूँ, यहाँ कुवैत मे नही मिल रही।वो भी सुना है बहुत झकास थी, आई आई टी स्टूडेन्ट्स के ऊपर थी।
जीतू द्वारा दिनांक अप्रैल 10th, 2006
इस ऊपन्यास के बारे में इस बार के विश्व पुस्तक मेले में बहुत सुना था, पर बेपर की हाईप समझ कोई भाव न दिया था। लगता है कि अब पढ़कर देखना होगा कि यह कैसा है!!
और चिट्ठे का प्रकरण बदलकर बहुत अच्छा किया, वह पुराना प्रकरण अब बोरिंग लगने लगा था!!
Amit द्वारा दिनांक अप्रैल 11th, 2006
बढ़िया !
अनूप शुक्ला द्वारा दिनांक अप्रैल 11th, 2006
लगता हैं अब तो यह किताब पढनी ही पङेगी. मैने भी काफी सुना था इसके बारे में, लेकिन अंग्रेजी साहित्य को सिडनी-सेल्डन के उपन्यासों से आगे कभी पढा ही नहीं (अपना अंग्रेजी-ज्ञान ही इतना हैं )
sanjay | joglikhi द्वारा दिनांक अप्रैल 11th, 2006
नया ब्लोग-आवरण अच्छा हैं.
sanjay | joglikhi द्वारा दिनांक अप्रैल 11th, 2006
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