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हाथीनामा : अवेंजर 180 से सुपर मिट्योर 650 तक




आजकल लगभग रोज हाथी से ऑफिस आ रहे है। बचपन में कभी सोचा नहीं था कि कभी एक क्रूजर जैसी बाइक चलाएंगे, सोचना तो दूर जानते ही नहीं थे कि बाइक के भी प्रकार होते है। 

होशवाला बचपन 80 के दशक और 90 के दशक के शुरुवात का है, उस समय बाइक मतलब राजदूत और बुलेट! कभी कभार भूले भटके येजदी और जावा दिख जाती थी। हीरो होंडा, टीवीएस सुजुकी और कावासाकी बजाज का ज़माना आया नहीं था। 

बाइक से सबसे पहला वास्ता 12 की परीक्षाओ में पड़ा था। उस समय हम स्कूल साइकिल से जिला परिषद ज्युनियर कॉलेज आमगांव जाते थे, जो कि घर से 8 किमी दूर था। लेकिन परीक्षा केंद्र भवभूति महाविद्यालय में था जो 12 किमी दूर था।  

करियर की नींव वाली परीक्षा थी, तो परीक्षा के दिनों में साइकिल से आने जाने को टालने का जुगाड़ सोच रहे थे। तब राधेश्याम(Radheshyam Sharnagat) ने गाँव के ही एक बन्दे तोषराम से एक येजदी बाइक का इंतजाम कर लिया।

तोषराम ने उस येजदी में कुछ कारस्तानी की थी जिससे उसे मिट्टी तेल (केरोसिन) से चला सकते थे। वह बाइक स्टार्ट तो पेट्रोल से होती थी, लेकिन उसके बाद उसे केरोसिन पर स्विच कर देते थे। इंजन में यदि पेट्रोल की जगह केवल केरोसिन ही हो तो स्टार्ट करने कभी कभार धक्के भी देने होते थे। 

येजदी की इस बाइक में किक और गियर एक ही होते थे, किक ही पलट कर गियर बन जाती थी! 

बस सारी 12 वी की परीक्षा उसी बाइक से दी, बाइक चलाना राधेश्याम का काम था , हम पीछे लद कर जाते थे।  

खुद बाइक चलना इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में सीखी जब एक और दोस्त राजेश (Rajesh Jumde) ने सीखने के लिए कहीं से यामाहा RX 100 जुगाड़ी थी।  

सबसे पहली बाइक 2000 में छोटे भाई के लिए हीरो होंडा CD 100 ली थी , वह भी किश्तों में !

अब अपने लिए बाइक का सपना तो था लेकिन इंतज़ार था एक क्रूजर बाइक का। ये सपना 1994-95 के दौरान टर्मिनेटर फिल्म में हार्ले डेविडसन पर सवार अर्नाल्ड स्वार्जनेगर ने दिखाया था, जिसे धूम , मिशन इम्पॉसिबल और मेट्रिक्स जैसी फिल्मे भी नहीं बदल सकी! वो एक अलग गाथा है, फिर कभी .... 

वर्ष 1993-94 था, कॉलेज के दोस्तो के साथ टर्मिनेटर 2 देखने गए। अर्नोल्ड स्वर्जनेगर को हार्ले डेविडसन पर सवार देखा। पहली बार हार्ले डेविडसन जैसी भारी भरकम बाइक के आभासी ही सही लेकिन दर्शन हुए। एक जादू सा हो गया। तब तक हम अपनी छह साल पुरानी 720₹ की साबू साइकिल से अपग्रेड कर 1580₹ वाली हरक्यूलिस रॉकशॉक पर आ गए थे। सारी इंजीनियरिंग रॉकशॉक से की।



इंजीनियरिंग पूरी कर मुंबई, दिल्ली भटकते रहे। अर्नोल्ड साहब खो गए थे। वर्ष 2002 में हम पहुंचे चेन्नई। 2003 में आई टर्मिनेटर 3 और हमारा सपना पुनर्जीवित हुआ। उस समय हार्ले इंपोर्ट हो सकती थी लेकिन कीमत उस समय की हमारी चार पांच वर्ष की कमाई के बराबर थी।

इन्ही दिनों आई यामाहा की एंटाइजर। टाईम्स ऑफ इंडिया में बड़ा पोस्टर छपा था। मैने और विक्रम दोनो ने उस पोस्टर को अपने ऑफिस क्यूबिकल में चिपका रखा था। घंटो घूरते रहते थे। एक सहकर्मी अनिता ने टोका भी था, 

तुम दोनो पागल हो, लड़कियों को घूरने की उम्र में बाइक के पोस्टर घूरते हो।

2003 के आसपास विक्रम के साथ यामाहा एंटाइजर की टेस्ट ड्राइव की सोची। बाइक देख दिल टूटा। यामाहा ने पता नही क्या सोच कर 125सीसी की क्रुजर बनाई थी। कीमत ठीक ठाक थी, 56 हजार रूपए लेकिन विक्रम के अनुसार 

" इश्क केट विंसलेट से हो तब शादी नौटंकी होरोइन से नही करेंगे।"

दूसरे दिन पोस्टर उतर गए। अब आई बजाज कावासाकी की एलिमिनेटर। 175सीसी का इंजन , दमदार आवाज, और क्रुजर स्टाइल। दिल को भा गई। कीमत अधिक थी, 97 हजार रुपए लेकिन सोचा जा सकता था। लेकिन कुछ कर पाते उससे पहले कम्पनी ने दौड़ाना शुरू कर दिया। 2004-2005 दो सूटकेसों के साथ गुज़रे। मतलब शुरू हुआ तीन महीने चार महीने से लेकर एक सप्ताह दो सप्ताह वाली विदेश यात्राओं का दौर। बाइक का सपना फिर पोस्टपोन हुआ।

2006 में जब जिंदगी थोड़ी ठहरी तब तक बजाज एवेंजर 180 आ गई थी। सब कुछ बजाज कावासाकी एलिमिनेटर जैसा था , इंजन कावासाकी का ना होकर बजाज का था। कीमत भी ठीक थी, 67 हजार रूपए। एलिमिनेटर से 30 हजार कम। इस बार ज्यादा नहीं सोचा, कुछ पैसे जमा हो गए थे। और बाइक खरीद ली। नामकरण हुआ "हाथी"।

 एवेंजर 180 को चेन्नई अडयार में खरीदा था। नंबर मिला था TN 07 सीरीज का।  दूसरे दिन ऑफिस पहुंचे विक्रम ने छूटते ही कहा 

"केट विंसलेट ना सही माधुरी दीक्षित चलेगी.."।

बजाज एवेंजर ऐसी पहली महंगी चीज थी जो मैने केवल अपने लिए अपनी कमाई से खरीदी, वो भी नौकरी करते हुए पूरे 8 बरस बाद। इस निर्णय के पीछे एक कारण यह भी था कि पापा 1972 से 1998 तक के दौरान साइकिल से स्कूल जाते रहे, उनका खुद का स्कूटर का सपना लूना टीएफआर तक आ गया था लेकिन अंत तक सपना ही रह गया था। इसलिए जब पहली बार एक अच्छी बाइक खरीद लेने की क्षमता हुई, बेहिचक खरीद ली, कोई सपना सपना ना रह जाए।



अभी बजाज एवेंजर आम बाइक है लेकिन उन दिनों उसे भी लोग मुड़ मुड़ कर देखते थे। अच्छा खासा सेंटर ऑफ अट्रैक्शन होती थी, विप्रो चेन्नई में पहली एवेंजर थी।

हाथी खरीदने से पहले हम अडयार स्थित किराए के घर से शोलिंगनल्लूर ऑफिस कम्पनी बस से जाते थे और आते समय अधिकतर सहकर्मी विक्रम की बाइक या कार से आते थे। लेकिन यदि कम्पनी बस छूट जाए तो चेन्नई की चिपचिपी गर्मियों में बुरे हाल हो जाते थे। बस या प्रायवेट मिनी बस से जाना पड़ता था। इससे अधिक मुसीबत सप्ताहांत में होती थी। यदि कहीं भी जाना हो तो आटो या बस से जाओ। आटो मनमाना किराया वसूलते थे, बस में भीड़ बहुत होती थी। बेसेंट नगर बीच तो पास था, पैदल दो किमी चले जाते थे। लेकिन मरीना बीच दूर होता था। उस समय अच्छा उत्तर भारतीय खाना केवल सावकार पेठ में मिलता था। हिंदी या अंग्रेजी फिल्म देखनी हो तो सत्यम थियेटर या शहर से बाहर माया जाल ही था। खरीददारी के लिए टी नगर या स्पेंसर प्लाजा। 

हाथी आने के बाद ये सब मुसीबतें दूर हो गई। हम अपनी मर्जी और टाइम टेबल के मालिक हो गए। अधिकतर सप्ताहांत सत्यम या मायाजाल में बितने लगा, खाना खाने रास्ते में सावकरपेठ रुक जाते थे। कभी कभार टी नगर में।

एवेंजर से खूब मजे किए। चेन्नई से ईस्ट कोस्ट रोड होते हुए कई बार पॉन्डिचेरी , महाबली पुरम गए। एक लंबी यात्रा चेन्नई कन्या कुमारी की भी हुई।

ईस्ट कोस्ट रोड पर बाइक दौड़ाते थे, गति उन नवजवानी के दिनों में भी अधिकतम 70-80 किमी/घंटा थी। केवल पांडिचेरी या महाबली पुरम जाते समय खाली स्ट्रेच पर 100 किमी/घंटा तक पहुंचाई, वह भी तब जब साथ में कोई हो। अकेले हमेशा हौले हौले ही क्रूज किया।

उन्ही दिनों 2007में ब्याह हुआ और चल दिए पुणे। हाथी साथ आया। ब्याह हुआ। शादी के एक महीने बाद ही निवेदिता के पहले जन्मदिन पर पूछा 

"आती क्या खंडाला?"

दोनो बाइक से पुणे से खंडाला गए। शादी के बाद पहली आउटिंग बजाज एवेंजर पर हुई।

लेकिन TN 07 देख महाराष्ट्र पुलिस वाले मामू रोक लेते थे, 100₹ की चपत लगती थी तो रजिस्ट्रेशन ट्रांसफर करने चेन्नई RTO से अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) ले लिया। लेकिन इससे पहले कि रजिस्ट्रेशन बदलवाते हम लोग अमरीका चले गए। 

मेरा हाथी बाकी सामान के साथ छोटा भाई गोंदिया ले गया। हम अमरीका से लौटे और आस्ट्रेलिया चले गए। 2013 में भारत वापिस आए। लेकिन ठिकाना बदल लिया और पुणे से बैंगलोर आ गए।

लेकिन 2008 के जून में हम लोग चल दिए अमरीका, उसके बाद आस्ट्रेलिया। 2013 में वापिस आए। ठिकाना पुणे से बैंगलोर हुआ। हाथी भी बैंगलोर आया।

लगभग छ बरस एवेंजर बंद रही, लेकिन बैटरी चार्ज कर पेट्रोल डालने पर तुरंत स्टार्ट हो गई।

सब में अपना भटकता हाथी भी कर्नाटक में अवैध प्रवासी हो गया था। उसका रजिस्ट्रेशन तमिलनाडु का था, NOC महाराष्ट्र के लिए थी और हम उसे चला रहे थे बैंगलोर कर्नाटक में। आरसी ट्रांसफर के लिए बैंगलोर आरटीओ से बात की तब कुल खर्चा और प्रक्रिया जान कर होश उड़ गए, सारी प्रक्रिया में दस से पंद्रह हजार का खर्च और छह महीने का समय।

एक आरटीओ एजेंट से बात की तो उसने कहा कि बैंगलोर में तमिलनाडू के वाहनों को कोई नही रोकता, ऐसे ही चलाओ। एक दो बार पुलिस वालो ने रोका भी तो PUC, बीमा और लाइसेंस सही देख कर जाने दिया, RC कागज वाली थी, उसपर महाराष्ट्र ट्रांसफर की NOC वाली सील भी ठुकी है लेकिन उन्होंने कभी कुछ नही कहा। वैसे बैंगलोर में गाड़ी ढंग से चलाओ, हेलमेट वगैरह पहने रहो तो ट्रेफिक पुलिस पूरी सभ्यता से पेश आती है।

अब गार्गी आने वाली थी, एवेंजर का उपयोग कम हो रहा था तो कार खरीद ली। एवेंजर उसी वक्त प्रयोग होती जब मुझे अकेले जाना हो। 

जब गार्गी छोटी थी तब बाइक का प्रयोग कम हो गया, कार का प्रयोग अधिक हुआ। लेकिन जब गार्गी दो तीन बरस की हुई तो उसकी पहली पसंद बाइक होती थी। उसे कार या निवेदिता के होंडा Dio की सवारी पसंद नही थी, ना अब है।

ऐसे ही 2020 आ गया। कोरोना काल, तब बाइक से आसपास घूमते थे। एक दिन रास्ते में ट्रेफिक पुलिस ने रोका, कागजात दिखाए तो वो हंसने लगा। हमने पूछा क्या हुआ ? तो उसने बताया कि RC एक्सपायर हो गई है। इसे या तो एक्सटेंड कराओ या बाइक को कबाड़ी में बेच दो। गार्गी साथ में थी तो उसने ऐसे ही जाने दिया।

एवेंजर अब भी मस्त थी। 15 बरस हो गए थे, लेकिन अब तक तो कोई परेशानी नहीं आई थी लेकिन अब आ सकती थी। पर सबसे बड़ी समस्या RC एक्सपायर होना थी, उससे बीमा नही होगा, PUC नही बनेगा। मतलब सड़क पर कानूनी तौर से नही निकल सकते। आरसी नवीनीकरण में पूरी सर्कस थी। आरसी तमिलनाडू की लेकिन उन्होंने महाराष्ट्र ट्रांसफर के लिए NOC दे दिया है और नवीनीकरण कर्नाटक में करना है। इसलिए सोचा कि अब नया हाथी ले लिया जाए, पुराने हाथी को आस पास ही चलाया जाए। शुरू हुई नए हाथी की तलाश।

रॉयल एनफील्ड मेरी पसंद कभी नहीं रही थी। पहले तो कारण था कि बाएं ब्रेक और दाएं गियर वाली उल्टी व्यवस्था, बाद में वो रॉयल एनफील्ड वाले भी सीधे हो गए। 

लेकिन 2021 में इसकी मिट्योर 350 सुपरनोवा पर नजर गई। नीले रंग की वो बाइक भा गई। पहली बार रॉयल एनफील्ड का कोई मॉडल पसन्द आया । 

ये बाइक एन्फ़ील्ड परिवार की नही लगी। आवाज अलग है, फ़िनिशिंग अलग है। एन्फ़ील्ड के बाईक़ो में हमेशा ऐसा लगता है कि अंत में कुछ जल्दबाजी कर दी, फ़ाइनल फिनिश नही आया, एक अनगढ़पन झलक़ जाता है। लेकिन ये अलग लग रही थी, अब रॉयल एनफील्ड वाले भी दिखने और स्टाइल में विदेशी माडलों को टक्कर दे रहे है।

मिट्योर 350 की टेस्ट ड्राइव ली, चलाने में मस्त है, आराम से 90 तक पहुँच गए। स्मूथ लगी, आश्चर्य यह रहा कि गियर ट्रांसफ़र स्मूथ मिला । क्लच टाइट है, बोमसाँद्रा सिगनल ट्रेफ़िक से आराम से निकाल लाए, स्मूथ U टर्न। होसुर रोड पर 90 से 100 तक पहुँचे। 

सोचा कि बुक कर लेते है। तब सतीश अंकल ने हार्ले डेविडसन के लिए उचकाया।  

खोजबीन शुरू की। कोरोना काल जारी था, ऐसे भी कोई जल्दी नहीं थी, आराम से जानकारी ले रहे थे, रिव्यू पढ़ रहे थे। हार्ले के दो मोडल अपनी पहुँच में थे स्ट्रीट 750 और आयरन 883। हार्ले स्ट्रीट 883 ऑन रोड 11 लाख तक आ रही थी। जबकि स्ट्रीट 750 सात साढ़े सात लाख तक आती। रॉयल एनफील्ड की कोंटीनेंटल जीटी और इंटर सेप्टर पसंद नही आई।

मन बनाया, अकाउंट चेक किया, उससे अधिक मेहनत निवेदिता को मनाने में की, इतने में खबर आई कि हार्ले ने अपना बोरिया बिस्तर समेट लिया और ये दोनों मोडल बंद कर दिए है। अब हार्ले डेविडसन का सबसे सस्ता मोडल 20 लाख का था। दिल टूट गया, गरीबो की हार्ले डेविडसन बंद हो गई थी। 

कोरोना काल जारी था, घर से काम कर रहे थे, तो 2022 में कुछ नहीं किया। 

2022 के अंत में रॉयल एनफील्ड ने सुपर मिट्योर 650 लांच की, मुझे इसकी खबर यूरोपियन यूटूबर से मिली| उसके बाद इस बाइक के रिव्यू पढ़े, देखे। सारे के सारे पॉजिटिव थे, भारतीय रिव्यू ही नहीं, यूरोपियन, आस्ट्रेलियन और अमरीकन भी।  

हमने अपनी तलाश फिर शुरू की। कावासाकी वल्कन 600 विकल्प था , कीमत 12 लाख। होण्डा रिबेल भारत में उपलब्ध नहीं। अवेंजर 220 लेने का मन नहीं था। हार्ले डेविडसन पहुँच से बाहर। होंडा CB350 अच्छी लगी लेकिन वॉव फैक्टर नहीं था। जावा 42 ठीक ठाक लगी लेकिन इसमें भी कुछ हटकर नही दिखा। पहला प्यार येजदी भी आ गई थी लेकिन इसके मॉडल तो यजदी नाम पर कलंक है।

इन सब में फरवरी 2023 आ गया और आखिरकार हमने सुपर मिट्योर 650 ही बुक कर दी। उन्होंने मई में डिलीवरी का वादा किया लेकिन हर तारीख पर नई तारीख देते रहे। इतने में पता चला की हार्ले डेविडसन हीरो मोटर्स के साथ x440 लेकर आ रहे है। सोचा कि इसे लांच होने दो, अच्छी लगे तो सुपर मिट्योर 650 की बुकिंग रद्द कर देंगे।  

अगस्त में x440 लांच हुई और पता चला कि हार्ले ने फिर दिल तोड़ा है, क्रूजर की जगह रोडस्टर बना दी। सस्ती हार्ले डेविडसन की जगह वो महंगी हीरो बाइक लग रही थी। रॉयल एनफील्ड अब भी तारीख पर तारीख दे रही थी। कावासाकी के शोरूम गए तो उन्होंने भी कम से कम चार महीने का समय माँगा। वही समय होंडा CB 350 के लिए था।  

आखिर 22 सितम्बर 2023 को डीलरशीप से फोन आया और उन्होंने कहा की अक्टूबर के पहले सप्ताह में बाइक दे देंगे। अब निवेदिता अड़ गई कि अक्टूबर के पहले सप्ताह में पितृ पक्ष है जो 29 सितम्बर से 14 अक्टूबर तक चलेगा, पितृ पक्ष में गाड़ी घर नही आयेगी। जबकि आठ महीने के इंतजार के बाद हम एक सप्ताह अतिरिक्त इंतज़ार करने तैयार नहीं थे। तब डीलर ने एक दूसरा रास्ता सुझाया और कहा कि उन्हें बाइक 28 को शाम को मिलेगी। अक्टूबर के पहले सप्ताह का समय उन्हें इंश्योरेंस , रजिस्ट्रेशन के लिए चाहिए। तो जिस दिन बाइक आएगी उस दिन हमें बाइक की चाबी दे देंगे। बाइक बीमा और रजिस्ट्रेशन के बाद ही मिलेगी।

28 सितम्बर शाम हमने बाइक का PDI किया, चेक थमाया और चाबी लेकर घर आ गए। हाथी 6 अक्टूबर को पितृ पक्ष के मध्य में घर आया! 

अब ऐसा है कि हार्ले डेविडसन अब भी नही आई है लेकिन सुपर मिट्योर 650 से खुश हूं। कावासाकी भी अब एलिमिनेटर 400 लेकर आ गए है, वो मस्त लग रही है, 400cc का इंजन है। जब लांच होगी तो टेस्ट ड्राइव तो अवश्य लेंगे।

अगला हाथी अगले सात आठ साल तो नही आयेगा, उसके बाद सोचेंगे।

एवेंजर 180 को बेचने या स्क्रेप करने की हिम्मत नहीं हुई है , अपनी कमाई की अपने लिए खरीदी पहली चीज तो है, काफी सारी यादे जुडी हुई है। उसे पास ही गाँव में रहने वाले एक ऐसे मित्र को दे दिया है जो शहर नहीं आता है। वह उसे गाँव में चला रहा है! 


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