जिन्दगी
शनिवार, जुलाई 23, 2005
जिन्दगी
एक शाम
बैठा था एकान्त में
गुनगुना रहा था
वही पुराना एक तराना
मै और मेरी जिन्दगी .
अचानक मन मे उठा
एक सवाल
उससे जुङे फ़िर अनेकों सवाल
क्या इन्ही सवालो का
नाम है जिन्दगी ?
या इन सवालो का जवाब
है जिन्दगी ?
मैने देखा है
अपने खूबसूरत कल का एक सपना
क्या यही है जिन्दगी ?
या अपने ख्वाबो को पा लेना
है जिन्दगी ?
अपनी मंजिल की ओर हर कदम
है मेरी जिन्दगी
कोई पडाव नहीं
एक सफर है मेरी जिन्दगी.
1 comments:
भइये, ये क्या हो रहा है कि प्रेमचंद वाली पोस्ट पर टिप्पणी चिपक ही नहीं रही है।बहुत बढ़िया लगा बहाने पढ़ना-शादी करने के।एक ये भी जोड़ दो-ब्लागर पीछे पड़े थे कि शादी करके विवाहित
जीवन के अनुभव लिखो सो विवाहगति को प्राप्त हो गया।
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