विज्ञान के फ़ोरमो, चर्चा समूहों मे अक्सर यह चर्चा चलते रहती है कि सर्वश्रेष्ठ/महानतम वैज्ञानिक कौन है या था ? इस प्रश्न के कुछ रूपान्तरण भी मिलते है जैसे अब तक का या इस सदी का या पिछली सदी का, या इस देश का वगैरह। इसमे यदि विकल्प दिये हुये है तो दो तीन नाम हमेशा मिलेंगे , दो नाम का उल्लेख मै विशेष तौर पर कर रहा हुँ, वे है स्टीफ़न हाकिंग और निकोला टेस्ला। इन दो नामो के विशेष उल्लेख का कारण है, जिस पर चर्चा आगे करते है।
सबसे पहले यह स्पष्ट होना चाहिये कि विज्ञान कोई एक स्थिर या विशिष्ट विचारधारा नही है कि एक सिद्धांत का प्रवर्तक सर्वश्रेष्ठ हो। यह एक सतत ज्ञान अर्जन की वह इमारत है जिसमे हर नया कार्य पिछले कार्यो की नींव पर खड़ा होता है। ऐसे मे नये कार्य को सर्वश्रेष्ठ कैसे घोषित कर दे।
हम पिछली सदी के बेहतरीन मस्तिष्को मे से एक अलबर्ट आइंस्टाइन का उदाहरण लेते है। वे एक ऐसा नाम है जिन्होनें भौतिक विज्ञान की धारा बदलने मे एक क्रांतिकारी भूमिका निभाई थी। प्रश्न है कि हम उन्हे महान माने या महानतम ? इन दो विशेषणो के मध्य एक महीन रेखा है। विज्ञान का हर छात्र जानता है कि अलबर्ट आइंस्टाइन का कार्य उनके समकालीन या उनसे पूर्व के कम से कम एक दर्जन वैज्ञानिको के कार्यो पर आधारित है। यदि हम आइंस्टाइन को महान कहते है तो हम उनके साथ उन एक दर्जन वैज्ञानिको को भी सम्मान दे रहे होते है। लेकिन जब हम आइंस्टाइन को महानतम कहते है तो कहीं ना कहीं हम उन एक दर्जन वैज्ञानिको को नीचा दिखा रहे होते है! यह व्यक्ति पूजा के वह दुष्प्रभाव है जो वैज्ञानिक विचारधारा मे उत्पन्न होना ही नही चाहिये।
जब हम निकोला टेस्ला की बात करते है तो लोग निकोला टेस्ला के कार्यो की चर्चा की बजाय एडीसन को गरियाना शुरु कर देते है। निकोला टेस्ला और एडीसन दोनो वैज्ञानिक कम इंजीनियर अधिक थे। दोनो की खोजो के लिये विश्व उनका ऋणी है, लेकिन एडीसन वैज्ञानिक/इंजीनियर से अधिक एक व्यवसायी थे। जिस कंपनी की स्थापना और विकास एडीसन के द्वारा हुआ था , वह एक सदी से अधिक के बाद भी विश्व की सबसे अग्रणी कंपनियों मे से एक है। एडीसन और निकोला टेस्ला मे मतभेद थे लेकिन इसका अर्थ यह नही होता कि टेस्ला महान और एडीसन शैतान थे। निकोला टेस्ला एडीसन की कंपनी मे कार्य करने वाले कर्मचारी थे। जब आप किसी भी कंपनी मे कार्य करते है तो आपके समस्त कार्यो का पेटेंट आपको नही, आपकी कंपनी को मिलता है। यह एडीसन के साथ हुआ, उन्होने प्रतिभाओं को पहचाना, उन्हे कार्य दिया, तो उन प्रतिभाओं का पेटेंट उनकी कंपनी को हासिल हुआ, जिसमे कुछ भी गलत या अनैतिक नही है।
निकोला टेस्ला एक विलक्षण वैज्ञानिक थे, उनके द्वारा प्रोत्साहित(अविष्कृत नही) AC विद्युत से आज समस्त विश्व संचालीत हो रहा है। लेकिन वे हद दर्जे के सनकी भी थे। उन्होने कई विचित्र और अव्यवहारिक अवधारणाओं पर भी काम किया है, जिसमे से एक बेतार ऊर्जा संचार प्रणाली, मृत्य किरण(Death Ray) जैसे हथियार का भी समावेश है। उस युग के अन्य प्रसिद्ध वैज्ञानिको जैसे एडीसन, विलियम क्रुक के समान ही टेस्ला भी असामान्य चिजो जैसे आत्माओं की दूनिया, परग्रही का पृथ्वी पर अस्तित्व पर विश्वास करते थे। उनकी कई सनक भरी आदते थी, उन्हे तीन अंक से विशेष प्रेम था। उन्हे बहुत सी चीजो से डर भी लगता था। अब यह माना जाता है कि वे मनोग्रसित-बाध्यता विकार (Obsessive–compulsive disorder /OCD) से पिड़ीत थे, जो कि उन जैसे एकाकी वैज्ञानिको के लिए सामान्य है। टेस्ला इतने सफल वैज्ञानिक थे कि उनके कुछ ऐसे आइडीये जोकि सैद्धांतिक/वैज्ञानिक/व्यवहारिक रूप से असंभव होने के बावजूद केवल उनके नाम जुड़े होने से विज्ञान की अच्छी शिक्षा ना पाये व्यक्तियो के आकर्षण का केंद्र होते थे और आज भी है। कुछ मामलो मे ऐसा भी पाया गया है कि छद्म विज्ञानीयों और धोखेबाजो ने टेस्ला के नाम का प्रयोग कर उल्टे-सीधे प्रयोगो और उपकरणो से पैसा कमाने का प्रयास किया है।
इन सबसे होता यह है कि टेस्ला कई कांसपिरेसी थ्योरीयों का केंद्र रहे है। और एक विशिष्ट वर्ग उन्हे सबसे महानतम लेकिन उपेक्षित वैज्ञानिक घोषित करता है। जबकि हक़ीकत यह है कि उन्हे वह सम्मान मिला है जिसके वह हक़दार थे।
स्टीफ़न हाकिंग वर्तमान मे सबसे चर्चित सैद्धांतिक भौतिक वैज्ञानिक रहे है। व्याधि से उत्पन्न अपनी शारीरीक विकलांगता के बावजूद उन्होने उस पर विजय पाई और उस पद को हासिल किया जिसपर कभी न्युटन जैसे वैज्ञानिक विद्यमान थे। लेकिन क्या वह सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक है ? वे अपने समय के चोटी के वैज्ञानिक रहे है लेकिन उनके समकालीन और भी ऐसे बहुत से वैज्ञानिक है जिन्होने स्टीफ़न हाकिंग के कार्यो के जैसे ही महत्वपूर्ण कार्य किये है जैसे पीटर हिग्स, स्टीवन वेनबर्ग, कीप थार्न, लिओनार्द सस्किंद इत्यादि। क्या व्यक्ति पूजा वास्तविकता मे हमे सम्मान करने की बजाय हमे अन्य का अपमान करना नही सीखा रही है ?
यही बात हम भारत के संदर्भ मे भी देखते है। कितनी ही जगह किसी एक व्यक्ति को भारत का सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक घोषित किया गया है। जब इन जगहो पर चर्चा आरंभ करो तो पता चलता है कि अधिकतर लोगो को प्रफ़ुल चंद्र राय, जगदीश चंद्र बोस, सत्येंद्रनाथ बोस का नाम नही पता, कार्य तो जाने दिजीये। सीवी रामन , सुब्रमन्यम चंद्रशेखर का नाम इसलिये नही ले रहा क्योंकि वे नोबेल पुरस्कार के कारण उन्हे लोग जानते है, नाही अठारहवी सदी के पहले के कार्यो की चर्चा कर रहा हुं।(नोबेल पुरस्कार भी श्रेष्ठता का पैमाना नही है, उदाहरण के लिये फ़्रेड हायल के किये गये काम पर नोबेल उन्हे ना देकर किसी और को दिया गया था।) प्रश्न यह उठता है कि आप सभी को नही जानते है तो किसी एक को सर्वश्रेष्ठ कैसे घोषित कर सकते है ?
विज्ञान मे व्यक्ति पूजा वैज्ञानिक विचारधारा कतई नही हो सकती है, इसे समझना आवश्यक है। विज्ञान मे चर्चा कार्य की होना चाहिये, सिद्धांत की होना चाहिये, विचारधारा की होना चाहीये, व्यक्ति की नही। तुलना सिद्धांतो, अवधारणाओ की गुणो के आधार पर होना चाहीये, व्यक्ति या प्रवर्तक की नही।
विज्ञान को विचारधारा पर रहने दे, व्यक्ति पूजा कर इसे धर्म ना बनाये!
सबसे पहले यह स्पष्ट होना चाहिये कि विज्ञान कोई एक स्थिर या विशिष्ट विचारधारा नही है कि एक सिद्धांत का प्रवर्तक सर्वश्रेष्ठ हो। यह एक सतत ज्ञान अर्जन की वह इमारत है जिसमे हर नया कार्य पिछले कार्यो की नींव पर खड़ा होता है। ऐसे मे नये कार्य को सर्वश्रेष्ठ कैसे घोषित कर दे।
हम पिछली सदी के बेहतरीन मस्तिष्को मे से एक अलबर्ट आइंस्टाइन का उदाहरण लेते है। वे एक ऐसा नाम है जिन्होनें भौतिक विज्ञान की धारा बदलने मे एक क्रांतिकारी भूमिका निभाई थी। प्रश्न है कि हम उन्हे महान माने या महानतम ? इन दो विशेषणो के मध्य एक महीन रेखा है। विज्ञान का हर छात्र जानता है कि अलबर्ट आइंस्टाइन का कार्य उनके समकालीन या उनसे पूर्व के कम से कम एक दर्जन वैज्ञानिको के कार्यो पर आधारित है। यदि हम आइंस्टाइन को महान कहते है तो हम उनके साथ उन एक दर्जन वैज्ञानिको को भी सम्मान दे रहे होते है। लेकिन जब हम आइंस्टाइन को महानतम कहते है तो कहीं ना कहीं हम उन एक दर्जन वैज्ञानिको को नीचा दिखा रहे होते है! यह व्यक्ति पूजा के वह दुष्प्रभाव है जो वैज्ञानिक विचारधारा मे उत्पन्न होना ही नही चाहिये।
जब हम निकोला टेस्ला की बात करते है तो लोग निकोला टेस्ला के कार्यो की चर्चा की बजाय एडीसन को गरियाना शुरु कर देते है। निकोला टेस्ला और एडीसन दोनो वैज्ञानिक कम इंजीनियर अधिक थे। दोनो की खोजो के लिये विश्व उनका ऋणी है, लेकिन एडीसन वैज्ञानिक/इंजीनियर से अधिक एक व्यवसायी थे। जिस कंपनी की स्थापना और विकास एडीसन के द्वारा हुआ था , वह एक सदी से अधिक के बाद भी विश्व की सबसे अग्रणी कंपनियों मे से एक है। एडीसन और निकोला टेस्ला मे मतभेद थे लेकिन इसका अर्थ यह नही होता कि टेस्ला महान और एडीसन शैतान थे। निकोला टेस्ला एडीसन की कंपनी मे कार्य करने वाले कर्मचारी थे। जब आप किसी भी कंपनी मे कार्य करते है तो आपके समस्त कार्यो का पेटेंट आपको नही, आपकी कंपनी को मिलता है। यह एडीसन के साथ हुआ, उन्होने प्रतिभाओं को पहचाना, उन्हे कार्य दिया, तो उन प्रतिभाओं का पेटेंट उनकी कंपनी को हासिल हुआ, जिसमे कुछ भी गलत या अनैतिक नही है।
निकोला टेस्ला एक विलक्षण वैज्ञानिक थे, उनके द्वारा प्रोत्साहित(अविष्कृत नही) AC विद्युत से आज समस्त विश्व संचालीत हो रहा है। लेकिन वे हद दर्जे के सनकी भी थे। उन्होने कई विचित्र और अव्यवहारिक अवधारणाओं पर भी काम किया है, जिसमे से एक बेतार ऊर्जा संचार प्रणाली, मृत्य किरण(Death Ray) जैसे हथियार का भी समावेश है। उस युग के अन्य प्रसिद्ध वैज्ञानिको जैसे एडीसन, विलियम क्रुक के समान ही टेस्ला भी असामान्य चिजो जैसे आत्माओं की दूनिया, परग्रही का पृथ्वी पर अस्तित्व पर विश्वास करते थे। उनकी कई सनक भरी आदते थी, उन्हे तीन अंक से विशेष प्रेम था। उन्हे बहुत सी चीजो से डर भी लगता था। अब यह माना जाता है कि वे मनोग्रसित-बाध्यता विकार (Obsessive–compulsive disorder /OCD) से पिड़ीत थे, जो कि उन जैसे एकाकी वैज्ञानिको के लिए सामान्य है। टेस्ला इतने सफल वैज्ञानिक थे कि उनके कुछ ऐसे आइडीये जोकि सैद्धांतिक/वैज्ञानिक/व्यवहारिक रूप से असंभव होने के बावजूद केवल उनके नाम जुड़े होने से विज्ञान की अच्छी शिक्षा ना पाये व्यक्तियो के आकर्षण का केंद्र होते थे और आज भी है। कुछ मामलो मे ऐसा भी पाया गया है कि छद्म विज्ञानीयों और धोखेबाजो ने टेस्ला के नाम का प्रयोग कर उल्टे-सीधे प्रयोगो और उपकरणो से पैसा कमाने का प्रयास किया है।
इन सबसे होता यह है कि टेस्ला कई कांसपिरेसी थ्योरीयों का केंद्र रहे है। और एक विशिष्ट वर्ग उन्हे सबसे महानतम लेकिन उपेक्षित वैज्ञानिक घोषित करता है। जबकि हक़ीकत यह है कि उन्हे वह सम्मान मिला है जिसके वह हक़दार थे।
स्टीफ़न हाकिंग वर्तमान मे सबसे चर्चित सैद्धांतिक भौतिक वैज्ञानिक रहे है। व्याधि से उत्पन्न अपनी शारीरीक विकलांगता के बावजूद उन्होने उस पर विजय पाई और उस पद को हासिल किया जिसपर कभी न्युटन जैसे वैज्ञानिक विद्यमान थे। लेकिन क्या वह सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक है ? वे अपने समय के चोटी के वैज्ञानिक रहे है लेकिन उनके समकालीन और भी ऐसे बहुत से वैज्ञानिक है जिन्होने स्टीफ़न हाकिंग के कार्यो के जैसे ही महत्वपूर्ण कार्य किये है जैसे पीटर हिग्स, स्टीवन वेनबर्ग, कीप थार्न, लिओनार्द सस्किंद इत्यादि। क्या व्यक्ति पूजा वास्तविकता मे हमे सम्मान करने की बजाय हमे अन्य का अपमान करना नही सीखा रही है ?
यही बात हम भारत के संदर्भ मे भी देखते है। कितनी ही जगह किसी एक व्यक्ति को भारत का सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक घोषित किया गया है। जब इन जगहो पर चर्चा आरंभ करो तो पता चलता है कि अधिकतर लोगो को प्रफ़ुल चंद्र राय, जगदीश चंद्र बोस, सत्येंद्रनाथ बोस का नाम नही पता, कार्य तो जाने दिजीये। सीवी रामन , सुब्रमन्यम चंद्रशेखर का नाम इसलिये नही ले रहा क्योंकि वे नोबेल पुरस्कार के कारण उन्हे लोग जानते है, नाही अठारहवी सदी के पहले के कार्यो की चर्चा कर रहा हुं।(नोबेल पुरस्कार भी श्रेष्ठता का पैमाना नही है, उदाहरण के लिये फ़्रेड हायल के किये गये काम पर नोबेल उन्हे ना देकर किसी और को दिया गया था।) प्रश्न यह उठता है कि आप सभी को नही जानते है तो किसी एक को सर्वश्रेष्ठ कैसे घोषित कर सकते है ?
विज्ञान मे व्यक्ति पूजा वैज्ञानिक विचारधारा कतई नही हो सकती है, इसे समझना आवश्यक है। विज्ञान मे चर्चा कार्य की होना चाहिये, सिद्धांत की होना चाहिये, विचारधारा की होना चाहीये, व्यक्ति की नही। तुलना सिद्धांतो, अवधारणाओ की गुणो के आधार पर होना चाहीये, व्यक्ति या प्रवर्तक की नही।
विज्ञान को विचारधारा पर रहने दे, व्यक्ति पूजा कर इसे धर्म ना बनाये!
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