इंटरनेट पर दावा किया जाता है कि ऋग्वेद मे प्रकाश गति दी गई है। इस तरह की अफवाहों को बढ़ावा एच सी वर्मा की किताब "Concepts of Physics" से भी मिलता है।
ऋग्वेद मे एक सूक्त है :
‘तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य ।
विश्वमा भासि रोचनम् ।।’ ।।ऋृग्वेद 1.50.4।।
अर्थात् हे सूर्य ! तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो ।
इस सूक्त पर भाष्य करते हुए महर्षि सायण ने लिखा है -
‘तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते-द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते ।।’ ।। सायण ऋृग्वेद भाष्य 1.50.4 ।।
अर्थात् आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है ।
दोनों स्थानों पर स्पष्ट रूप से सूर्य या सूर्य की गति की बात कही गयी है ।
लेकिन वर्माजी अपनी किताब मे इसे प्रकाश गति बताते है।
मनुस्मृति 1-64 के अनुसार :पलक झपकने के समय को 1 निमिष कहा जाता है !
निमेषे दश चाष्टौ च काष्ठा त्रिंशत्तु ताः कलाः |
त्रिंशत्कला मुहूर्तः स्यात् अहोरात्रं तु तावतः || ……..मनुस्मृति 1-64
लेकिन निमेष की इस परिभाषा को ना मानते हुए वे उलटी गणना करते है, वे श्रीमद्भागवत के संदर्भ से कहते है
- 15 निमेष =1 काष्ठा
- 30 काष्ठा =1 कला
- 30.3 कला =1 मूहुर्त
- 30 मूहुर्त =1 अहोरात्र
- 1 अहोरात्र = 1 दिन-रात
- 1 दिन-रात =24 घंटे
अतः 24 घंटा = 30x30.3x30x15निमेष = 24x60x60 सेकेण्ड
अर्थात् 409050 निमेष =86,400 सेकेण्ड
अतः 1/2 निमेष = 0.1056 सेकेण्ड
अब वर्माजी आते है योजन पर! योजन दूरी गणना के लिए पौराणिक ईकाई है। ऐसा माना जाता था कि जब सेनाएँ लम्बी दूरी की यात्रा करती थीं तो यह एक योजन एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव की दूरी थी जो एक दिन में तय की जाती थी। योजन शब्द का प्रयोग हिन्दू महाकाव्य रामायण में हुआ। योजना शब्द भी इसी से बना है। अधिकांश भारतीय विद्वान इसका माप 13 कि॰मी॰ से 16 कि॰मी॰ (8-10 मील) के लगभग बताते हैं।
लेकिन वर्माजी के अनुसार एक योजन अर्थात चार कोस, एक कोस अर्थात 8000 यार्ड, एक यार्ड = 0.9144 मीटर
इस तरह से 2200 योजन प्रति आधे निमेष को वर्मा जी 3.0 x 10 8 m /s घोषित कर देते है! अर्थात सायण प्रकाश गति जानते थे जोकि उन्होंने ऋग्वेद से ज्ञात की थी।
हमारी जिज्ञासा :
- ऋग्वेद के वास्तविक सूक्त मे सूर्य की महिमा है , (सूर्य या प्रकाश) गति पता नहीं कहाँ से आ गई है ।
- गति मान भी लें तो सायण अपने भाष्य मे सूर्य गति की बात कर रहे है, प्रकाश गति की नहीं। सारे प्राचीन ग्रंथों मे सूर्य गति का तात्पर्य उदय से अस्त तक आकाश मे गति से ही होता था।
- अब यदि इसे प्रकाश गति माने तो यह स्पष्ट नहीं है कि यह निर्वात मे है या वायु मे या किसी माध्यम मे।
- निमेष का मूल्य स्थाई नहीं है, मनु स्मृति इसे आंखों के झपकने मे लगने वाला समय मानती है। क्या इस तरह की चर (variable) राशि को किसी गणना के लिए पैमाना मान सकते है ?
- सायण कहीं पर भी स्पष्ट नहीं कर रहे है कि 2200 योजन कहाँ से आया? मूल सूक्त मे कोई आंकड़ा नहीं है।
- दूरी गणना के लिए प्रयुक्त योजन का मूल्य भी स्थिर नहीं है, कहीं इसे 8 मील कहीं 10 मील माना जाता है। मतलब कि जो अपनी गणना मे बैठे उस मूल्य को मान लो!
कालेज के दिनों निरीक्षण के आंकड़ों से परिणाम की गणना करना होती थी लेकिन हमे वास्तविक परिणाम के अनुसार निरीक्षण के आंकड़ों को बनाने मे महारत हासिल रही है, उसे हम खोज नहीं, रिवर्स इंजीनियरिंग कहते थे!
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