दरिया किनारे बैठाइस सप्ताहांत पर मै अपने घर “गोण्दिया” महाराष्ट्र मे था। अपनी पूरानी डायरीयां और कागजात देख रहा था। अचानक एक कागज़ बाहर आ गीरा जिसपर यह कविता लिखी थी।
कभी उंचे पहाडो पे
विचरता यह मन सोचता है
क्या है तेरी तलाश
क्या है तेरी तलाश
क्या है जो तु खोजता है
भावनाओं से भरा हर क्षण
कभी आशाओ का प्रतिक
कभी निराशाओ से भरा मन
फिरता है ये चंचल
उस समय के ईंतजार मे
जब मिलेगी तुझे तेरी मंजील
होगा तेरे जिवन मे भी प्रकाश
सामना कर इन कठीनाईयो का
रख अपने पर विश्वास
ये ही नियम है संसार का
कि पतझड के बाद ही आता है
मौसम बहार का
और यही है उसकी रीत
कि हार के बाद आती है जीत
ए मन ! रख सिर्फ ये अहसास
कि तुझमे है आत्म विश्वास
इसलिये सफल होंगे तेरे प्रयास
कविता तो मेरी एक मित्र ने लिखी थी, यह तो मुझे अच्छी तरह से याद है। लेकिन मेरे पास यह कविता क्या कर रही है, समझ मे नही आया। सोचा चलो अपने चिठ्ठे पर डाल दो, कभी वह भटकते हुये आ जाये, तो रहस्य खुल जायेगा।
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3 टिप्पणीयां “सफल होंगे तेरे प्रयास” पर
आपके दोस्त की कविता पसंद आई. अच्छा लिखा है.
समीर लाल द्वारा दिनांक अप्रैल 18th, 2006
कविता कह रही होगी हमारा जन्म सफल हुआ हम दुबारा पढ़े गये।
अनूप शुक्ला द्वारा दिनांक अप्रैल 18th, 2006
SAhi hai baap. U have kept that Kavita habbit still alive. Wk numer. All the best. Ye site kisme banaye hai?
Sandeep द्वारा दिनांक मई 8th, 2006
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