रात के दस बजे, अचानक फोन बजा। फोन उठाने से पहले कट गया। नम्बर देखा, अनजाना था। फोन में इतिहास देखा , पता चला कि पिछले सप्ताह तीन मिस कॉल थे। आम तौर पर अनजाने नम्बर से आये मिसकॉल पर मैं वापस काल नही करता। अपनी जासूसी आरम्भ की, दो मिनट में पता कर लिया कि महाराष्ट्र से किसी राम का फोन है। नाम से फिर भी ढंग से याद नही आया।
सोचा काल बैक करते है, नम्बर पहुँच के बाहर। दोबारा मिस कॉल आई। काल बैक की तो नम्बर फिर से पहुंच के बाहर। तीसरी बार में रिंग गई।
बन्दे ने फोन उठाया। हमने पूछा भाई कौन ?
वो : आशीष हो ना।
हम : आशीष ही हूं, आप कौन ?
वो : पहचान , आवाज से पहचान !
हम : अरे भाई नही पहचान पा रहा हूँ।
वो : मैं राम प्रसाद
हम : अबे साले, 25 साल बाद मिस कॉल दे रहा है और पहचानने कह रहा है...
वो: तू बड़ा आदमी हो गया है, अब कैसे पहचानेगा ?
हम : अबे मुझे तो पता ही नही था कि तू जिंदा है या मर गया , ऐसे अचानक कैसे पहचानूंगा ?
वो : तू गांव आता है तब भी भी मिलने नही आता है। कल राधे मिला था, उसने तेरा नम्बर दिया। उसी ने मम्मी के बारे में बताया।
हम : .....
वो : अबे कम से कम एक फोन तो कर देता
हम : तेरा फोन नम्बर नही था यार, राधे को ही मैंने सभी लोगो को खबर करने कहा था।
ये फोन मेरे हाई स्कूल के समय के दोस्त का था। मेरे गाँव के पास के एक गाँव मे रहता था। बड़े किसान परिवार से था। किसी दिन स्कूल से देर हो जाती थी और वह घर नही जा पाता था तो हमारे घर ही रुक जाता था। मम्मी-पापा को बहुत मानता था। पापा स्कूल में हम लोगो को गणित पढ़ाते थे तो उन्हें वह गुरुजी कहता था लेकिन मम्मी को मम्मी ही कहता था।
जब हम कक्षा दस में थे, उसकी शादी हो गई थी। अगले बरस एक बच्ची भी। वह दसवीं में फेल हो कर पास के ही एक आदिवासी क्षेत्र में खेती में लग गया था। हम आगे पढ़ने निकल गए। इंजीनियरिंग के बाद नौकरी के चक्कर मे घूमते रहे, और अपने गांव से बहुत दूर निकल आये थे।
इससे आखिरी बार मिलना 1998 में पापा के जाने पर हुआ था, जब वह घर आया था। आज पूरे 22 वर्ष बाद उसने फोन किया था।
काफी देर बाते होते रही, उसे मेरे बारे में सब पता था। यह भी पता था कि कब मैं अमरीका में, कनाडा में, यूके में, आस्ट्रेलिया में रहा। कब मुंबई से दिल्ली, दिल्ली से चेन्नई, चेन्नई से पुणे पहुंचा और अंततः बैंगलोर में डेरा डाला। उसे गार्गी के बारे में भी सब पता था। बस वह संपर्क इसलिए नही कर रहा था कि उसे लगता था कि शायद मैं उसे भूल गया हूं।
हम थोड़े शर्मिंदा थे। मेरे साथ मुश्किल यह थी कि मेरे गांव में घर के सिवाय कुछ नही है। मैं गाँव भी साल दो साल में एक बार कुछ घण्टो के लिए जाता हूँ, गाँव मे बचे खुचे दो तीन मित्रो से मिल आता हूं। जबकि यह मित्र मेरे गांव से 20 किमी दूर वाले दूसरे गाँव मे बसा है।
बातों में पता चला कि उसकी बेटी की शादी हो गई है और बेटा भी ग्रेड्यूशन कर चुका है।
अब यह सोचा है कि अगली बार जब गाँव जाऊँगा तो कुछ घण्टो के लिए नही एक दो दिन के लिए जाऊँगा। जितने अधिक मित्रों से मिल सकूं मिलूंगा। इससे तो मिलना बनता ही है।
ये मेरे स्कूली जीवन के वो दोस्त है जो तकनीक से अब भी बहुत दूर है। खास कर वे जो पहली से दसवीं तक साथ पढ़े है। साठ-सत्तर लोगो की कक्षा रही होगी जिसमें से मुश्किल से सात आठ लोगो ने ग्रेड्यूशन किया, जिसमे से केवल दो लड़कीयां थी। जब तक हमने ग्रेड्यूशन किया अधिकतर बाल बच्चे वाले हो चुके थे।
सोचा काल बैक करते है, नम्बर पहुँच के बाहर। दोबारा मिस कॉल आई। काल बैक की तो नम्बर फिर से पहुंच के बाहर। तीसरी बार में रिंग गई।
बन्दे ने फोन उठाया। हमने पूछा भाई कौन ?
वो : आशीष हो ना।
हम : आशीष ही हूं, आप कौन ?
वो : पहचान , आवाज से पहचान !
हम : अरे भाई नही पहचान पा रहा हूँ।
वो : मैं राम प्रसाद
हम : अबे साले, 25 साल बाद मिस कॉल दे रहा है और पहचानने कह रहा है...
वो: तू बड़ा आदमी हो गया है, अब कैसे पहचानेगा ?
हम : अबे मुझे तो पता ही नही था कि तू जिंदा है या मर गया , ऐसे अचानक कैसे पहचानूंगा ?
वो : तू गांव आता है तब भी भी मिलने नही आता है। कल राधे मिला था, उसने तेरा नम्बर दिया। उसी ने मम्मी के बारे में बताया।
हम : .....
वो : अबे कम से कम एक फोन तो कर देता
हम : तेरा फोन नम्बर नही था यार, राधे को ही मैंने सभी लोगो को खबर करने कहा था।
जिला परिषद हाई स्कूल कावराबांध |
जब हम कक्षा दस में थे, उसकी शादी हो गई थी। अगले बरस एक बच्ची भी। वह दसवीं में फेल हो कर पास के ही एक आदिवासी क्षेत्र में खेती में लग गया था। हम आगे पढ़ने निकल गए। इंजीनियरिंग के बाद नौकरी के चक्कर मे घूमते रहे, और अपने गांव से बहुत दूर निकल आये थे।
इससे आखिरी बार मिलना 1998 में पापा के जाने पर हुआ था, जब वह घर आया था। आज पूरे 22 वर्ष बाद उसने फोन किया था।
काफी देर बाते होते रही, उसे मेरे बारे में सब पता था। यह भी पता था कि कब मैं अमरीका में, कनाडा में, यूके में, आस्ट्रेलिया में रहा। कब मुंबई से दिल्ली, दिल्ली से चेन्नई, चेन्नई से पुणे पहुंचा और अंततः बैंगलोर में डेरा डाला। उसे गार्गी के बारे में भी सब पता था। बस वह संपर्क इसलिए नही कर रहा था कि उसे लगता था कि शायद मैं उसे भूल गया हूं।
हम थोड़े शर्मिंदा थे। मेरे साथ मुश्किल यह थी कि मेरे गांव में घर के सिवाय कुछ नही है। मैं गाँव भी साल दो साल में एक बार कुछ घण्टो के लिए जाता हूँ, गाँव मे बचे खुचे दो तीन मित्रो से मिल आता हूं। जबकि यह मित्र मेरे गांव से 20 किमी दूर वाले दूसरे गाँव मे बसा है।
बातों में पता चला कि उसकी बेटी की शादी हो गई है और बेटा भी ग्रेड्यूशन कर चुका है।
अब यह सोचा है कि अगली बार जब गाँव जाऊँगा तो कुछ घण्टो के लिए नही एक दो दिन के लिए जाऊँगा। जितने अधिक मित्रों से मिल सकूं मिलूंगा। इससे तो मिलना बनता ही है।
ये मेरे स्कूली जीवन के वो दोस्त है जो तकनीक से अब भी बहुत दूर है। खास कर वे जो पहली से दसवीं तक साथ पढ़े है। साठ-सत्तर लोगो की कक्षा रही होगी जिसमें से मुश्किल से सात आठ लोगो ने ग्रेड्यूशन किया, जिसमे से केवल दो लड़कीयां थी। जब तक हमने ग्रेड्यूशन किया अधिकतर बाल बच्चे वाले हो चुके थे।
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